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'5 हजार लोग राह देखते रहे, लेकिन राहुल नहीं गए... ', कांग्रेस नेताओं ने बुरी हार के कारण गिनवाए

Congress के Bihar अध्यक्ष राजेश राम और विधायक दल के नेता शकील अहमद खान तक अपनी सीट नहीं बचा पाए. ‘वोट चोरी’ और ‘सामाजिक न्याय की राजनीति’ के रथ पर सवार Rahul Gandhi की कांग्रेस आखिर बिहार की चुनावी पिच पर सुपर फ्लॉप क्यों हो गई?

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कांग्रेस से जुड़े नेताओं ने पार्टी की हार के कारण बताए हैं. (इंडिया टुडे)

बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election) में कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है. 61 सीटों पर लड़ी पार्टी सिर्फ छह सीटें ही जीत पाई. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम और विधायक दल के नेता शकील अहमद खान तक अपनी सीट नहीं बचा पाए. ‘वोट चोरी’ और ‘सामाजिक न्याय की राजनीति’ के रथ पर सवार राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की कांग्रेस आखिर बिहार की चुनावी पिच पर सुपर फ्लॉप क्यों हो गई?

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इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली से लेकर पटना तक कांग्रेस पार्टी के कुछ नेताओं को पहले से ही अंदाजा था कि पार्टी के मुख्य मु्द्दे जमीनी स्तर पर काम नहीं कर रहे हैं, जिसमें सामाजिक न्याय की राजनीति से वोट चोरी अभियान तक शामिल है. लेकिन पार्टी के भीतर के आलोचकों को भी इतनी करारी हार की उम्मीद नहीं थी. 

कांग्रेस पार्टी से जुड़े नेताओं ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में पार्टी की हार के कारण गिनवाए हैं. उनके मुताबिक सामाजिक न्याय की राजनीति के नाम पर पार्टी ने अगड़ी जाति के बचे-खुचे वोट बैंक को किनारे लगा दिया. वहीं स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) और वोट चोरी अभियान का जमीनी स्तर पर कोई असर नहीं दिखा. पार्टी के कुछ नेताओं ने राष्ट्रीय नेतृत्व तक बात पहुंचानी चाही लेकिन उनकी बात नहीं सुनी गई. राहुल गांधी के करीबी लोग पार्टी की रणनीति को लेकर इतने आश्वस्त थे कि परिणाम की समीक्षा किए बगैर उस पर आगे बढ़ते रहे.

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ईबीसी वोटर्स को जोड़ने में असफल, अगड़े भी टूटे

बिहार कांग्रेस के नेताओं का मानना है कि पार्टी ने पिछड़े (ओबीसी) और अति पिछड़े (ईबीसी) वर्ग के करीब जाने के लिए जो बदलाव किए उससे सवर्ण(सामान्य जाति वर्ग) समर्थक अलग-थलग पड़ गए. वहीं दूसरी तरफ गैर यादव ओबीसी और ईबीसी का समर्थन भी पार्टी को नहीं मिला, क्योंकि उनकी पहली पसंद नीतीश कुमार बने रहे. महिलाओं और ईबीसी वर्ग का नीतीश कुमार की ओर जाने का साफ मतलब है कि महागठबंधन अपना दायरा नहीं बढ़ा पाया. यानी मुस्लिम और यादव के अलावा कोई भी नया वोट बैंक पार्टी के साथ नहीं जुड़ पाया. बिहार कांग्रेस के एक सीनियर नेता ने बताया, 

राहुल गांधी मेरे जिले में एक अति पिछड़ा सम्मेलन में शामिल होने आए थे. थोड़ी दूर पर एक गांव था जहां ब्राह्मणों की अच्छी-खासी आबादी थी. एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के कुलपति समेत 5 हजार लोगों की भीड़ वहां राहुल गांधी के इंतजार में खड़ी थी. लेकिन राहुल नहीं गए. मुझे बताया गया कि उनको ये सलाह दी गई कि अति पिछड़ा वर्ग सम्मेलन के बाद ब्राह्मणों के गांव में जाना अच्छा नहीं होगा. एक वर्ग को जोड़ने के लिए हम दूसरे वर्ग को दुत्कार नहीं सकते. हमको सबको साथ लेकर चलना होगा.

वोट चोरी का मुद्दा नहीं चला

कांग्रेस नेताओं ने बताया कि SIR के खिलाफ चलाए गए अभियान को जनता का समर्थन नहीं मिला. इसके बाद पार्टी ने अपनी रणनीति में बदलाव कर रोजी रोटी का मुद्दा शामिल किया. लेकिन फिर भी सबसे ज्यादा चर्चा वोट चोरी की ही रही. पहले फेज की वोटिंग के पहले 5 नवंबर की शाम राहुल गांधी ने दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके हरियाणा विधानसभा चुनाव में वोट चोरी का मुद्दा उठाया. और यह भी कहा कि बिहार चुनाव के बाद भी वो एक ऐसी ही प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगे.  कांग्रेस से जुड़े एक नेता ने बताया,

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 यह इस बात का संकेत था कि हम चुनाव में अपने प्रदर्शन को लेकर बिलकुल भी आश्वस्त नहीं हैं.

दलबदलुओं को पार्टी में शामिल करना

कांग्रेस पार्टी ने इस बार एनडीए (बीजेपी, जदयू और लोजपा) से आए कई दलबदलुओं को पार्टी में शामिल करके टिकट दिया. कांग्रेस ने सोनबर्षा, कुम्हरार, नौतन, फारबिसगंज, कुचायकोट, बेलदौर और बिक्रम जैसी सीटों पर एनडीए से नाता रखने वाले उम्मीदवारों को टिकट दिया. कांग्रेस से जुड़े नेता ने बताया, हर पार्टी दलबदलुओं को टिकट देती है. लेकिन कांग्रेस और राहुल गांधी खुद बीजेपी और आरएसएस से जी-जान से लड़ रहे थे. और अगर आप उन लोगों को टिकट देते हैं जिनकी सोशल मीडिया वॉल पर अभी भी एनडीए नेताओं के साथ तस्वीरें हैं तो फिर क्या विश्वसनीयता रह जाती है?

राहुल गांधी और तेजस्वी साथ-साथ ‘दिखे भर’

राहुल गांधी और तेजस्वी यादव वोटर अधिकार यात्रा में एक साथ दिखे. लेकिन फिर भी दोनों में कम्युनिकेशन और समन्वय की कमी साफ-साफ दिखी. इस यात्रा के बाद तेजस्वी ने पलायन, नौकरी, पढ़ाई और दवाई जैसे जनता से जुड़े मु्द्दों पर फोकस किया. वहीं अगस्त की यात्रा के बाद राहुल गांधी सीन से गायब हो गए. इसके बाद वो चुनाव की तारीखों की घोषणा के बाद ही बिहार आए.

तेजस्वी यादव IRCTC घोटाले की सुनवाई के लिए दिल्ली आए थे. उस दौरान कांग्रेस और राजद के बीच सीट बंटवारे को लेकर खींचातानी मची थी. उन्होंने राहुल गांधी को फोन किया लेकिन उधर से कोई रिस्पॉन्स नहीं मिला. पहले फेज के नॉमिनेशन के बाद तक भी दोनों पार्टियों के बीच सीट शेयरिंग का मामला सुलझ नहीं पाया. कई सीटों पर तो महागठबंधन के दलों के बीच फ्रेंडली फाइट हुई. कांग्रेस से जुड़े नेता ने बताया कि एक या दो रैलियों को छोड़ दे तो तेजस्वी और राहुल ने एक साथ मंच साझा नहीं किया.

कांग्रेस पार्टी का मानना था कि तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा प्रोजेक्ट करने से गैर- यादव वोटों का ध्रुवीकरण एनडीए के पक्ष में होगा, लेकिन राजद उनकी सुनने को तैयार नहीं था. कांग्रेस से जुड़े नेताओं ने पार्टी की हार के लिए कई कारण बताए लेकिन उनके मुताबिक जो रिजल्ट आए वो उनको लिए बेहद अप्रत्याशित और चौंकाने वाले रहे.

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