आम आदमी के राज्यसभा सांसद राघव चड्डा ने भारत में गिग वर्कर्स के शोषण को लेकर x पर एक पोस्ट लिखी है. इस पोस्ट में उन्होंने दावा किया कि एक ब्लिंकिट डिलीवरी एजेंट ने 15 घंटे काम किया. इस दौरान 28 ऑर्डर डिलीवर किए और सिर्फ 762 रुपये 57 पैसे कमाए. इस तरह से इस डिलीवरी एजेंट को हर घंटे औसतन 52 रुपये 1 पैसे मिले.
28 जगहों से ऑर्डर, एजेंट को डिलीवरी करने में 15 घंटे लगे, कमाई जानकर दिल बैठ जाएगा!
राघव चड्ढा ने लिखा, “यह ऐप्स और एल्गोरिदम के पीछे छिपा सिस्टमैटिक शोषण है. मैंने हाल ही में संसद में यह मुद्दा उठाया था. कम पैसे में ज्यादा काम. न नौकरी की सुरक्षा, न सम्मान. ब्लिंकिट का यह मामला देश के करोड़ों गिग वर्कर्स की सच्चाई है.”
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पोस्ट में राघव चड्ढा ने इस कैलकुलेशन के पूरे विवरण का स्क्रीन शॉट भी साझा किया. इसमें डिलीवरी एजेंट की कमाई का पूरा ब्योरा दिखाया गया. इसमें 28 ऑर्डर डिलीवरी से कुल 690 रुपये 57 पैसे की कमाई दिखाई गई है. इंसेंटिव के रूप में डिलीवरी एजेंट को 72 रुपये नसीब हुए. अन्य कमाई के नाम पर एक धेला भी नहीं मिला. दावा किया गया कि इस डिलीवरी वर्कर ने 28 ऑर्डर पूरे करने के लिए कुल 14 घंटे 39 मिनट तक काम किया.
राघव चड्ढा ने लिखा, “यह ऐप्स और एल्गोरिदम के पीछे छिपा सिस्टमैटिक शोषण है. मैंने हाल ही में संसद में यह मुद्दा उठाया था. कम पैसे में ज्यादा काम. न नौकरी की सुरक्षा, न सम्मान. ब्लिंकिट का यह मामला देश के करोड़ों गिग वर्कर्स की सच्चाई है.”
उन्होंने ये भी लिखा कि भारत की डिजिटल इकोनॉमी उन लोगों की मेहनत पर नहीं टिकी हो सकती, जिन्हें कम मेहनताना दिया जाए और उनसे जरूरत से ज्यादा काम कराया जाए. किसी भी तरक्की की असली कीमत इंसानों के श्रम का शोषण नहीं होनी चाहिए. गिग वर्कर्स को सम्मानजनक जीवन के लिए उचित वेतन, मानवीय कार्य घंटे और सामाजिक सुरक्षा मिलना अनिवार्य है. ये बुनियादी अधिकार हैं और इनको लेकर कोई समझौता नहीं किया जा सकता.
राघव चड्डा की इस पोस्ट पर रिप्लाई करते हुए एक व्यक्ति ने कमाई के इस गणित को और खोला. उसने कॉमेंट में लिखा, "यह मान लिया जाए कि हर ऑर्डर को पूरा करने में डिलीवरी एजेंट ने लगभग 4 किलोमीटर गाड़ी दौड़ाई (2 किलोमीटर पिकअप और 2 किलोमीटर ड्रॉप करने के लिए) तो हर डिलीवरी एजेंट ने 112 किलोमीटर बाइक चलाई. अगर बाइक या स्कूटी 40 का माइलेज देती है, यानी एक लीटर में 40 किलोमीटर चलती है, तो 3 लीटर पेट्रोल की कीमत लगभग 300 रुपये होगी.ठ
ऐसा भी नहीं होगा कि डिलीवरी एजेंट बिना खाए-पिए डिलीवरी करता रहेगा. इसलिए अगर इसमें खाने-पीने और रोजमर्रा की बुनियादी जरूरतों को भी शामिल किया जाए तो एजेंट की कुल कमाई और भी कम हो जाती है. उदाहरण के लिए, अगर हर दिन के खाने का खर्च करीब 50 से 100 रुपये आता है तो दिनभर की असली कमाई लगभग 150 से 300 ही रुपये होती है.
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