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UPI आने से लोगों का खर्चा बढ़ा या सेविंग?

आजकल हेयरपिन से लेकर एयरोप्लेन का टिकट तक, सबका पेमेंट करने के लिए सबसे अच्छा माध्यम है UPI. क्यूआर कोड स्कैन कर भन्न से पेमेंट करने की आदत लोगों से अधिक खर्चा करवा रही है. जानते हैं इसमें कितनी सच्चाई है.

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यूपीआई से पेमेंट के माध्यम. (फोटो-एक्स)
7 मई 2024
Updated: 7 मई 2024 23:11 IST
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बताइएगा, क्या आपके साथ भी ऐसा होता है. दूध खत्म है. रोजाना की तरह परचून की दुकान पर गए. दूध खरीदा, लेकिन फिर वहां कान खरोंचने वाले क्यू टिप का पैकेट दिख गया. फिर नजर पड़ी एक रेडीमेड इडली मिक्स पर. कुछ देर ऐसा चलता रहा. फिर आप घर पहुंचे तो देखा: दूध लेने गए थे, लेकिन 10 सामान और साथ ले आए हैं. आपको लगा ये इसलिए हुआ क्योंकि आपका स्वभाव खर्चीला है. क्या ये इसलिए हुआ क्योंकि UPI ने पैसा खर्च करना आसान बना दिया है? अगर आपको भी ऐसा लग रहा है. तो ऐसा लगने में आप अकेले नहीं हैं. IIIT दिल्ली के एक रिसर्च के अनुसार UPI के चलते लोग सचमुच ज्यादा खर्च करने लगे हैं. ये रिसर्च डॉ. ध्रुव कुमार और उनके दो छात्रों द्वारा की गई है.

तो समझते हैं:

-2016 में यूपीआई के लॉन्च होने के बाद लोगों के खर्च करने के पैटर्न पर क्या असर पड़ा है?  
-UPI आने से किन लोगों की सेविंग बढ़ी है? 
-UPI टेक्नोलॉजी काम कैसे करती है?
-इकॉनमी में इसका क्या प्रभाव पड़ा है रहा?

UPI की टेक्नोलॉजी

UPI यानी यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस. ये एक प्लेटफार्म है. जिसके जरिये किसी एक बैंक अकाउंट से दूसरे बैंक अकाउंट में पैसा भेजा जा सकता है. वो भी रियल टाइम बेसिस पर. माने सेंड का बटन दबाने के बाद जैसे ही ट्रांजैक्शन सक्सेसफुल होता है. वैसे ही पैसा ट्रांसफर हो जाता है. इसे नेशनल पेमेंट्स कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया (NPCI) ने बनाया है. NPCI ने बैंकिंग से जुड़े कई प्रोडक्ट्स बनाए हैं, जैसे RuPay डेबिट कार्ड, IMPS, भीम UPI ऐप.

हालांकि UPI से पहले भी रियल टाइम ट्रांसफर सिस्टम थे. जैसे IMPS, RTGS. लेकिन इनके साथ कुछ कमियां थीं. जैसे- 

- पैसा ट्रांजैक्शन सक्सेसफुल होने के बाद तुरंत रेसिपेंट अकाउंट में शो नहीं होता था, जबकि UPI सिस्टम इतना फ़ास्ट है कि एक तरफ ट्रांजैक्शन सक्सेसफुल होगा और दूसरी तरफ पैसा अकाउंट में शो होने लगेगा.

- जिन लोगों के पास नेट बैंकिंग की फैसिलिटी नहीं थी उन्हें बैंक जाकर पैसा ट्रांसफर करवाना पड़ता था. जबकि UPI के मामले में सब कुछ एक ही ऐप से हो जाता है. 

- अगर नेट बैंकिंग की फैसिलिटी है, तब भी जिसे पैसा भेजना है उसका अकाउंट नंबर, IFSC कोड जैसी जानकारियां भी चाहिए होती थीं. UPI में ऐसी किसी जानकारी की जरूरत नहीं होती है. सिर्फ UPI ID या क्यूआर कोड से काम चल जाता है.

- IMPS करने के लिए इंटरनेट होना जरूरी है. जबकि UPI के मामले में इंटरनेट और स्मार्टफोन की जरूरत भी नहीं है. इसके लिए अलग से NPCI ने UPI 123 पे बनाया है. UPI में सिर्फ बैंक अकाउंट से लिंक्ड मोबाइल नंबर की जरूरत होती है.

बाकी पेमेंट ऑप्शंस से अलग

इसके जरिए दोनों पर्सन टू पर्सन और पर्सन टू मर्चेंट ट्रांजैक्शन किए जा सकते हैं. पर्सन टू पर्सन यानी यूजर्स के बीच ट्रांजैक्शन. जैसे आप अपने किसी दोस्त या किसी जानने वाले को पैसा भेज सकते हैं और उनसे पैसा ले भी सकते हैं. पर्सन टू मर्चेंट यानी एक यूजर किसी बिजनेस को पैसा दे. एक बात नोट करिए. दुकानदार हो या कोई मॉल जहां आप क्यूआर कोड स्कैन करके पैसा पे करते हैं वो सभी मर्चेंट अकाउंट हैं. इसके अलावा UPI के जरिए आप शॉपिंग कर सकते हैं, बिल पे कर सकते हैं. सभी ट्रांजैक्शन चौबीसों घंटे किए जा सकते हैं. इन सभी वजहों से UPI ने पेमेंट्स सिस्टम में एक क्रांति ला दी है. इसको कुछ आंकड़ों की मदद से समझते हैं.

UPI की मार्केट में धूम 

दिसंबर 2023 में PIB पर छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2017-18 में देश में 92 करोड़ ट्रांजैक्शन हुए थे, जो वित्तीय वर्ष 2022-23 में बढ़कर 8300 करोड़ से ज्यादा हो गए. यानी UPI से होने वाले ट्रांजैक्शन हर साल करीब 150% से बढ़े. अगर इन ट्रांजैक्शन को पैसे के टर्म्स में देखें तो साल 2017-18 में जहां 1 लाख करोड़ रुपये के ट्रांजैक्शन हुए थे, वहीं वित्तीय वर्ष 2022-23 में 139 लाख करोड़ रुपये के ट्रांजैक्शन हुए.

लेकिन लोगों के बीच एक भ्रम है. कि UPI के आने से उनका खर्चा बढ़ गया है. इसी पर IIIT दिल्ली ने एक सर्वे किया और उसकी रिपोर्ट में एक चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए. सर्वे में शामिल 276 लोगों में से 74% से भी ज्यादा लोगों ने कहा कि UPI की वजह से उनके खर्चे बढ़े हैं.

UPI से बढ़े खर्च

निखिल मखवाना गुरुग्राम में मार्केटिंग इंडस्ट्री में काम करते हैं. उन्होंने इंडिया टुडे को बताया कि साल 2018 में वो अपनी सैलरी का मात्र 20 से 25 फीसदी हिस्सा खर्च करते थे. लेकिन समय के साथ ये तस्वीर बदली. अब वो अपनी सैलरी का 60 से 65 फीसदी हिस्सा खर्च करते हैं. इंडिया टुडे के हिसाब से ये खर्च महंगाई की वजह से नहीं बल्कि पेमेंट के तरीके में बदलाव की वजह से बढ़े हैं. 

सवाल ये आता है कि कैश की जगह UPI का इस्तेमाल करने से इतना फर्क कैसे पड़ा? असल में इकोनॉमिक्स में एक कॉन्सेप्ट है, वैल्यू ऑफ मनी. इसको एक उदाहरण से समझिए. एक तारीख़ को आपकी सैलरी आई. मान लेते हैं 40 हजार रुपये. अब उस दिन अगर आपको 500 रुपये को पार्टी देनी हो तो आप दे देंगे. लेकिन अगर आपके पास सिर्फ 1000 रुपये बचे हों तब? तब भी क्या आप उतनी तसल्ली से 500 रुपये की ट्रीट दे पाएंगे? शायद नहीं. इसका मतलब आपकी सैलरी के हर 500 रुपये की कीमत एक बराबर नहीं है. जैसे-जैसे पैसा खर्च होगा, आपके लिए हर 500 रुपये की कीमत बढ़ती जाएगी. लेकिन ये तब होगा, जब आपको इस बात का एहसास होता रहे कि पैसा कम हो रहा है. लेकिन UPI के मामले में आपको ये एहसास कैश के मुकाबले कम होता है. कैसे?

इसको एक थॉट एक्सपेरिमेंट से समझिए. मान लीजिए आपके पास 1000 रुपये हैं. आप 50 रुपये का जूस पीते हैं. अगर ये 1000 रुपये आपके पास कैश में होंगे तो हर बार 50 रुपये खर्च करने के बाद आपको बचे हुए पैसे की बढ़ती वैल्यू का एहसास होगा. लेकिन अगर ये पैसा अकाउंट में है, तब खर्च करने के बाद आपको तब तक एहसास नहीं होगा जब तक आप अकाउंट का बैलेंस चेक नहीं करते. ये वैल्यू का एहसास न होने के चलते आपका खर्च बढ़ जाएगा? ये आपने रियल लाइफ में भी महसूस किया होगा. 

इंडिया टुडे की रिपोर्ट में एक और उदाहरण का जिक्र है. बेंगलुरु के रहने वाले धर्मेश बा ने 2022 में X पर एक पोस्ट किया था. उन्होंने UPI को लेकर अपना अनुभव बताया. उनका कहना था कि UPI की वजह से खर्च बढ़ गया. क्योंकि 500 रुपये के 5 नोट खर्च करने में ज्यादा तकलीफ होती है, बजाय किसी को 2500 रुपये UPI करने से. धर्मेश बा का विचार भी एक साइकोलॉजिकल फैक्टर है.

हालांकि रिपोर्ट के मुताबिक कई लोगों की बचत बढ़ी भी है.

UPI से बचत भी बढ़ी

इंडिया टुडे ने गौरव रैना से बात की. IIT मद्रास के प्रोफेसर हैं. इसके अलावा वो मोबाइल पेमेंट फोरम ऑफ़ इंडिया के चेयरमैन भी रहे हैं. इस इंस्टीट्यूशन ने भारत के मोबाइल फ़ोन में पेमेंट सिस्टम के टेक्नोलॉजी स्टैंडर्ड्स को सेटअप करने में बड़ी भूमिका निभाई है. प्रोफेसर गौरव रैना ने एक बहुत रोचक बात सामने रखी. उनका कहना था कि ऑनलाइन पेमेंट्स से छोटे दुकानदारों का कम से कम अमाउंट भी सीधे बैंक अकाउंट में जाता है. इससे उन्हें अपनी आमदनी का अंदाज़ा होता है और वो उसकी हिसाब से अपने फैसले लेते हैं. 

इंडिया टुडे ने आज़ादपुर मंडी में युवराज यादव से बात की. वो नारियल पानी बेचते हैं. युवराज का कहना है कि उन्हें 90% पेमेंट UPI के जरिये मिलता है. इससे उनकी काफी बचत हो जाती है. वो कैश से अपना काम चलाते हैं और बाकी बैंक में पड़े पैसे तो सेविंग्स के तौर पर रख देते हैं. इस रिपोर्ट में एक और रोचक जिक्र है. अंजू देवी ग्रेटर नोएडा में हाउस हेल्प का काम करती हैं. इनका कहना है कि UPI की वजह से उनका पैसा बर्बाद होने से बच जाता है. क्योंकि अब उन्हें उनकी कमाई सीधे बैंक अकाउंट में मिल जाती है. जिसका एक्सेस सिर्फ उनके पास है. अब उनका पति उनसे पैसे नहीं छीन पता. और वो उस पैसे से अपनी दोनों बच्चियों का ख्याल रख पाती हैं.

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