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द ब्रोकन न्यूज़ सीज़न 2: न्यूज़ की मृत्यु की घोषणा (वेब सीरीज़ रिव्यू)

Director Vinay Waikul की The Broken News S2 जर्नलिज़्म पर भारत में बनी गिनती की सीरीज़/सिनेमा में से है. Jaideep Ahlawat, Sonali Bendre, Shriya Pilgaonkar, Dinkar Sharma के अभिनय वाली ये सीरीज़ मीडिया और न्यूज़रूम्स की क्या कहानी सुनाती है, अपने क्राफ्ट में कैसी है, ये सब पढ़ें इस Web series Review में.

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The Broken News s02 review ft Jaideep Ahlawat and Sonali Bendre
एक ही पत्रकारिता बिंदु से चले अमीना (सोनाली बेंद्रे) और दीपांकर (जयदीप अहलावत) आज कितने विपरीत ध्रुवों पर जा पहुंचे हैं.
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7 मई 2024 (Updated: 7 मई 2024, 19:45 IST)
Updated: 7 मई 2024 19:45 IST
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 रेटिंग - 3.5 स्टार 


भारत में जर्नलिज्म पर बेस्ड या न्यूज़रूम ड्रामा कुछ बनी हैं. इनमें रमेश शर्मा की "न्यू डेल्ही टाइम्स" (1986) पहला नाम है जो जबान पर आता है. ये क्लास अपार्ट है. अब इसका कोई अच्छा प्रिंट भी अवेलेबल नहीं है. उसके बाद राम गोपाल वर्मा की "रण" (2010) है, जो एक डीसेंट वॉच थी, सिर्फ इसलिए क्योंकि मीडिया पर फोकस्ड फिल्में कम ही बनी हैं. कमर्शियल स्पेस में अज़ीज़ मिर्ज़ा की "फिर भी दिल है हिंदुस्तानी" बनी. “नायक” बनी, जिसके रिपोर्टर को मुख्यमंत्री अमरीश पुरी, एक दिन का सीएम बनने का चैलेंज देता है औऱ स्वीकार करता है. शंकर की इस फ़िल्म जैसी ही थी विजय सेतुपति की तमिल फ़िल्म "कावन" (2017). "पीपली लाइव" भी थी, पर वो पोलिटिकल और सोशल सटायर ज्यादा थी. हंसल मेहता की नेटफ्लिक्स की सीरीज़ "स्कूप" (2003), में एक क्राइम रिपोर्टर और आदर्शवादी एडिटर नजर आते हैं, लेकिन वो भी एक क्राइम ड्रामा ज्यादा हो जाती है. एक उल्लेखनीय नाम, "राइटिंग विद फायर" (2021) का था, जो दलित महिलाओं द्वारा चलाए जाने वाले ग्रासरूट डिजिटल मीडिया अख़बार - "ख़बर लहरिया" पर बेस्ड डॉक्यूमेंट्री थी.

इसी कड़ी में प्रवेश होता है - "द ब्रोकन न्यूज" का. ज़ी5 की इस सीरीज़ का पहला सीज़न 2022 में आया और हाल ही में दूसरा. भारत में मीडिया की वर्तमान शोचनीय, अफसोसनाक दशा को ये सीरीज़ बहुत अच्छे से कैप्चर करती है. बल्कि मैं कहूंगा कि विनय वैकुल इतना साहस कहां से लाए. क्योंकि उन्होंने और संबित मिश्रा ने अपनी स्क्रिप्ट में जिस तरह असल न्यूज़ चैनलों के एंकरों, एडिटरों और सत्ताधारी वर्गों की बदमाशियों को रखा है, वो आज के वक्त में आसान नहीं. बल्कि सब दूर से ही निकलते हैं. "द ब्रोकन न्यूज़" सबसे पहले तो इसी वजह से बेशकीमती है कि वो मीडिया पर आधारित है और वो खुलकर सब दिखाती है. दूसरी बात, कि इसका क्राफ्ट कैसा है? तो क्राफ्ट, शिकायत का मौका नहीं देता ऐसा है. चाहे राइटिंग हो, एक्टिंग परफॉर्मेंस हों, जर्नलिज़्म के पेशे (जो पूर्व में "जन सेवा" का काम हुआ करता था) का ऑथेंटिक चित्रण हो, इस पेशे में कॉरपोरेट्स का खतरनाक दखल हो, पत्रकारों की क्रिमिनल्स जैसी हरकतें हों, सबकुछ ये सीरीज़ अपने भीतर समेटे है. एंड क्रेडिट्स में विनय वैकुल सेंटीमेंटली "मंटो" फ़िल्म का गाना - "बोल कि लब आजाद हैं", भी चलाते हैं, इस उम्मीद में कि ये नोबल प्रफेशन पहले जैसा ही हो जाए.

2018 में बीबीसी की एक मिनी सीरीज़ आई थी - "प्रेस". ये उसी का ऑफिशियल रीमेक है. प्रेस दो जाने माने ब्रिटिश न्यूज़पेपर्स के बीच की प्रतिस्पर्धा और वहां काम करने वाले पत्रकारों की कहानी थी. "द ब्रोकन न्यूज़" उसका फेथफुल एडेप्टेशन है. माइक बार्टलेट के स्क्रीनप्ले के मूल ढांचे को लेते हुए इस सीरीज का भारतीयकरण किया गया है. यहां पर कहानी मुंबई में स्थित दो न्यूज चैनलों की प्रतिस्पर्धा की है. एक है - जोश 24x7, जो टीआरपी में अव्वल रहने वाला, कमर्शियली सक्सेसफुल चैनल है. इसका एडिटर है दीपांकर सान्याल (जयदीप अहलावत, ठीक एक्टिंग), जो फक्र से कहता है - "न्यूज़ बोरिंग होती है, मैं तो कहानियां बनाता हूं". उसके ठीक बगल में खड़ा है दूसरा चैनल - आवाज़ भारती. उसकी एडिटर है अमीना कुरैशी (सोनाली बेंद्रे). दीपांकर के घनघोर उलट अमीना की एडिटोरियल लाइन है - Get the fact, not your feelings.

अमीना गांधीवादी है. मीटिंग रूम में अपनी कुर्सी के पीछे दीवार पर गांधी की फोटो लगा रखी है. गांधी - वो नहीं जो राष्ट्रपिता हैं और स्वतंत्रता आंदोलन के अगुवा हैं. वे गांधी - जो पत्रकार थे. उन्होंने कहा था - "समाचार पत्रों को आजीविका या रोजगार के लिए प्रकाशित करना गलत है. कुछ काम ऐसे होते हैं जिनका महत्व इतना विशालकाय होता है कि जन हित पर भीषण असर पड़ता है. उन कामों को कमाई से जोड़ लेंगे तो उसका उद्देश्य मर जाएगा. और अखबारों को मुनाफे का जरिया बना लेते हैं तो फिर दुरुपयोग और गलत काम भी होंगे ही. ऐसे गलत काम बड़े पैमाने पर होते ही हैं." वे मानते थे कि पत्रकारिता सेवा का काम है, जैसे कि चिकित्सा और शिक्षा हैं. हालांकि अब, यह मॉरेलिटी कोई स्वीकारेगा नहीं, लेकिन मूल भावना में अमीना भी मानती है कि उसका जर्नलिज़्म मालिक को मुनाफा कमाकर देने के लिए नहीं है. और ये उसका लोड नहीं है कि कंपनी घाटे में जा रही है या प्रॉफिट मेकिंग है. सिर्फ जर्नलिज़्म और सच मैटर करता है, और कुछ नहीं.
  
"द ब्रोकन न्यूज़" ये दिखाती है कि क्या हो रहा है. हालांकि सबसे सुहावना, मनमोहक और सृजनात्मक मनोरंजन वो होता है जो बताए कि - क्या होना चाहिए. जैसे कि "द न्यूज़रूम" बताती है. एरॉन सॉर्किन के जादुई, रिच, अतुलनीय लेखन वाली सीरीज़. जिसमें एटलांटिस केबल न्यूज़ में प्राइम टाइम का स्टार एंकर विल मैकवॉय (जेफ डेनियल्स) कहता है - We don't do TV, we do good news. ठीक यही अमीना कहती है, कि - "हम यहां कोई मसाला मूवी नहीं बना रहे हैं? हमारा काम सच बोलना है". "द न्यूज़रूम" के पहले एपिसोड के ओपनिंग सीन ने अमेरिकी स्टेट की नाक पर कसकर मुक्का जड़ा था, जिसमें एक पैनल चर्चा में विल से पूछा जाता है, कि "क्या आप बता सकते हैं, अमेरिका क्यों इस दुनिया का सबसे महान देश है?" और बार बार पूछे जाने पर विल मैकवॉय आग उगलते हुए करीब 4 मिनट लंबे मोनोलॉग में कहता है - It's not the greatest country in the world! और सुनकर सामने दर्शकों में बैठी एक युवती का मुंह खुला का खुला रह जाता है. सब सकते में आ जाते हैं. "द न्यूज़रूम" के कुछ सुंदर परागकण बरास्ते अमीना उड़कर "द ब्रोकन न्यूज़" में भी आते हैं.

उसके अलावा ये अपने नाम की ही तरह एक निराशावादी कहानी है. जो सीज़न 2 के अंत में जाकर कहीं थोड़ी आशावादी होती है. जब दीपांकर के आंशिक ह्रदय परिवर्तन को हम देख पाते हैं.

सीरीज़ में तीसरा प्रमुख पात्र है राधा भार्गव का. वो दीपांकर और अमीना के सिद्धांतों में, कहीं बीच में खड़ी है. इसीलिए सीज़न 1 में वो अमीना के किसी स्टोरी ड्रॉप करने से नाराज होकर दीपांकर का चैनल जॉइन कर लेती है और वहां के नरक को देखकर उतनी ही तेजी से भाग भी आती है. अमीना एक्टिविस्ट जर्नलिस्ट नहीं है लेकिन राधा में कहीं न कहीं एक्टिविज़्म है. वो कहती है - "पूरा का पूरा सिस्टम गंदा हो रखा है. और अगर मुझे ये सिस्टम साफ करना है तो हाथ भी गंदे करने होंगे."

फिर सीज़न 1 और 2 की कहानियां दीपांकर बनाम राधा बन जाती हैं. दोनों एक दूसरे को तबाह करना चाहते हैं. सीज़न 2 के शुरू में राधा जेल में होती है. जब वो जेल से छूटती है तो जर्नलिज़्म भूल जाती है और इस पेशे का इस्तेमाल दीपांकर को खत्म करने के लिए करने लगती है. जिसे भांपकर अमीना कहती है - "तुम्हारे साथ क्या गलत हुआ, ये सोचकर कभी जर्नलिज़्म मत करना. बल्कि ये सोचकर करना कि क्या कुछ सही करने के लिए तुम जर्नलिज़्म में आई थी".

ये सीरीज अपने नाम के साथ ही उद्घोषणा कर देती है कि the news is broken, कि न्यूज़ का नाश हो चुका. ये सेवा भ्रष्ट हो चुकी. पत्रकार अब कॉम्प्रोमाइज़्ड हो चले. वे सरकार का प्रोपोगैंडा चला रहे हैं. झूठे नेरेटिव गढ़ रहे हैं. मीडिया की गंदगी को सीरीज़ बहादुरी से दिखाती है. जैसे सीज़न 2 का पहला ही एपिसोड होता है - अर्बन टेरेरिस्ट, जो अर्बन नक्सल की पोलिटिकल टर्म से आता है. एक सीन में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का इंटरव्यू ले रही अमीना कहती है - "मैं नक्सली गतिविधियों का समर्थन नहीं करती, लेकिन आप राधा भार्गव को आतंकवादी नहीं कह सकते, सिर्फ इसलिए कि उसने लोगों की प्राइवेसी पर हमला करने वाले एक बिल का विरोध किया है. इस पर वो सीएम कहता है - "क्यों नहीं कह सकते उसे आतंकवादी. नक्सली जंगल के आतंकवादी हैं. वो जंगल में रहकर सरकार के ऊपर हमला करते हैं. और ये राधा भार्गव जैसे लोग (जो कि जर्नलिस्ट है) शहर में रहकर इन्हीं आतंकवादियों के हाथ मजबूत करते हैं. ऑपरेशन अंब्रैला (सरकार का एक खतरनाक, क्रिमिनल बिल) के खिलाफ राधा और उसके साथियों ने जो मुहिम चलाई है वो किसी आतंकी हमले से कम नहीं है". फिर अगले ही सीन में अपने प्राइम टाइम शो में दीपांकर कहता है - हमें इस आतंकवादी हमले से प्रदेश को बचाना है. हमें अर्बन आतंकवादी राधा भार्गव को बताना है कि हम उसके आतंकवादी एजेंडे के साथ नहीं ऑपरेशन अंब्रैला के साथ हैं". अंत में वो ये और कहता है - "मैं दीपांकर सान्याल और आप देख रहे हैं जोश 24x7. क्योंकि सवाल है देश का."

ओपनिंग सीन में वो राधा से जेल मिलने आता है तो आंदोलनजीवी शब्द का इस्तेमाल करता है, जो एक असली रेफरेंस है. वो अमीना कुरैशी जैसी लिबरल जर्नलिस्ट्स के लिए लिबटार्ड शब्द का इस्तेमाल करता है. ये भी प्रोपोगैंडा टर्म है. ऐसे कई रेफरेंस हैं. लेकिन ये सब भी दीपांकर को आवश्यक रूप से राइट विंग जर्नलिस्ट नहीं बनाते हैं. वो बस सत्ता वर्ग और पैसे के साथ है. उसे किसी आइडियोलॉजी से कोई मतलब नहीं. वो एक कैपिटलिस्ट है.

जोश 24x7 में एक एंटरटेनमेंट एंकर (गीतिका विद्या ओहल्यान) का किरदार भी गौर करने लायक है जिसे क्राइम बीट दे दी जाती है. वो चीख चीखकर कर, सरेआम झूठ निर्मित करके रिपोर्टिंग करती है. वो एक विवादित राइट विंग न्यूज चैनल के रिपोर्टर्स और एक चर्चित न्यूज़ एंकर का मिला जुला रूप लगती है, और उसका नाम भी संयोग से रेहाना लियाकत रखा गया है. 

ये सीरीज़ विश्व के जर्नलिज़्म के सामने खड़ी सबसे बड़ी समस्या की नब्ज़ अच्छे से पकड़ती है. वो है - कॉरपोरेट्स और एडिटोरियल की दूरी का घटना. अब वो ऑलमोस्ट एक ही टीम हो चुके हैं. और ये एक ऐसी चीज है जिसे सीरीज़ में दीपांकर भी रज़िस्ट करता है, नापसंद करता है. वो अपने आप में ही एडिटोरियल भी है और मार्केटिंग भी. लेकिन जोश 24x7 के नए ओनर, एक टेक कंपनी के मालिक (नंदन बालाचंद्रन, जिसे दिनकर शर्मा ने असरदार ढंग से प्ले किया है) द्वारा दीपांकर के ऊपर एक सीओओ बैठा दी जाती है, जो दखल देती है औऱ वो चिढ़ता है. ये बात दिखाती है कि दीपांकर जो इंटेलेक्चुअल पत्रकारों की मीटिंग में चाय पकड़ाने वाला इंटर्न हुआ करता था, जो कभी सिद्धांतों वाला आइकॉनिक पत्रकार हुआ करता था, उसमें वो गुणसूत्र अब भी कहीं न कहीं मौजूद है. चाहे अब वो विकृत होकर सेल्फ-सेंटर्ड हो गया हो. अब उसे पावर चाहिए. अपना खुद का चैनल चाहिए, चाहे उसके लिए उसे कितना ही झूठ बोलना पड़े, कितना ही झूठ गढ़ना पड़े. जो कि आउटरेजियस है. जो क्रिमिनल है. और झूठ की ये मैन्युफैक्चरिंग आज असल में न्यूज़रूम्स में हो रही है. इसे सीरीज़ के ग्रे औऱ बुरे किरदार भी स्वीकारते हैं. एक सीन में मुख्यमंत्री विरोधी चैनल को इंटरव्यू देना चाहता है. दीपांकर कॉल करता है तो वो कहता है - "मैं तुम्हें इंटरव्यू नहीं दे सकता क्योंकि पब्लिक जानताी है तुम किसकी साइड से बैटिंग करते हो. इंटरव्यू तो किसी ऑनेस्ट जर्नलिस्ट को ही देना पड़ेगा."

ये बात यहीं तक.

Series: The Broken News Season 1-2 (2022-24*) । Creator/Director: Vinay Waikul । Cast: Sonali Bendre, Jaideep Ahlawat, Shriya Pilgaonkar, Indraneil Sengupta, Dinkar Sharma, Akshay Oberoi, Sanjeeta Bhattacharya, Kiran Kumar, Taaruk Raina, Faisal Rashid । Episodes: 16 । OTT Platform: ZEE5 

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