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फिल्म रिव्यू- क्रू

'क्रू' सीधी-सिंपल फिल्म है. कोई स्त्रीवाद का ढोंग नहीं. कोई लंतरानी नहीं. ये फिल्म सिर्फ वही करती है, जिसका वादा किया था.

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'क्रू' को राजेश कृष्णन ने डायरेक्ट किया है. वो इससे पहले 'लूटकेस' नाम की कॉमेडी फिल्म बना चुके हैं.
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29 मार्च 2024 (Updated: 29 मार्च 2024, 18:49 IST)
Updated: 29 मार्च 2024 18:49 IST
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फिल्म- क्रू
डायरेक्टर- राजेश कृष्णन 
स्टारकास्ट- तबू, करीना कपूर खान, कृति सैनन, राजेश शर्मा, दिलजीत दोसांझ, कपिल शर्मा, शाश्वत चैटर्जी 
रेटिंग- *** (3 स्टार)

Crew नाम की एक फिल्म आई है. कुछ फिल्में ऐसी होती हैं, जिनकी वाइब आपको पहले प्रमोशनल मटीरियल से समझ आ जाता है. 'क्रू' वैसी ही फिल्म है. इस फिल्म में आपको वही मिलता है, जिसका वादा ट्रेलर और गानों ने किया था. तीन अलग-अलग उम्र वर्ग की महिलाओं की कहानी, जो अपनी लाइफ में कुछ करना चाहती हैं. मगर कर नहीं पा रही हैं. यूं तो हमारे समाज में महिलाओं के लिए पाबंदियों की कोई कमी नहीं है. मगर ये फिल्म उन सब मसलों में नहीं पड़ती. बात सिर्फ पैसे की है. कोई स्त्रीवाद का ढोंग नहीं. कोई लंतरानी नहीं. 'क्रू' सिर्फ वही करती है, जिस मक़सद से ये फिल्म बनाई गई है. एंटरटेन.  

'क्रू' की कहानी देश के अलग-अलग हिस्सों से आने वाली तीन महिलाओं के बारे में है. गीता, जैस्मिन और दिव्या. ये तीनों लोग कोहिनूर एयरलाइन्स में एयरहोस्टेस हैं. दूर से तो इनकी लाइफ काफी ग्लैमरस है. मगर असलियत में इनके पास घर चलाने के भी पैसे नहीं हैं. एयरलाइन ने कई महीनों से इन्हें सैलरी नहीं दी. तिस पर एयरलाइन का मालिक विजय वालिया बोरिया-बिस्तर समेटकर देश से बाहर भाग जाता है. ऐसे में ये महिलाएं अपनी मुश्किलों से उबरने और वालिया से बदला लेने का एक तरीका ढूंढती हैं. मगर वो आइडिया थोड़ा रिस्की है. उसे अंजाम देने के बाद इनकी ज़िंदगियां हमेशा के लिए बदल जाएंगी. अगर सफल हो गईं, तब भी. नहीं हुईं तब भी.

'क्रू' फन फिल्म है. क्योंकि वो वही होना चाहती थी. मगर आज कल का माहौल ऐसा है कि हमें हर फिल्म से 'कुछ' चाहिए. सिनेमा का इकलौता मक़सद मनोरंजन नहीं रह गया. पूरा सिस्टम गड्डमड्ड हो गया है. इसलिए हर पिक्चर को एक ही पैमाने पर नहीं कसा जा सकता. आप हर फिल्म से ये एक्सपेक्ट नहीं कर सकते कि वो आपको एज्यूकेट करे. मसलन, पिछले हफ्ते 'मडगांव एक्सप्रेस' आई थी. तीन दोस्तों की कहानी थी, जो अपने बचपन का सपना पूरा करने गोवा जाते हैं. 'क्रू' और 'मडगांव एक्सप्रेस' की कहानियों में कोई समानता नहीं है. मगर ये दोनों एक ही किस्म की फिल्में हैं. ये खालिस एंटरटेनमेंट के लिए बनी फिल्में हैं. जिनमें जबरदस्ती की वोकिज़्म और पॉजिटिकल करेक्टनेस में डालने की कोशिश नहीं की गई है.    

'क्रू' सिर्फ एक लेवल पर कमज़ोर पड़ती है, वो है फिल्म की स्क्रिप्ट. किसी फिल्म को बनाने के लिए सबसे ज़रूरी चीज़. उस पर थोड़ा और काम किया जा सकता है. क्योंकि सेकंड हाफ में कई बार फिल्म का कांटा हिलता है. हालांकि अगर हम इसमें जाएंगे कि क्या होना चाहिए था, तो हर चीज़ में हमें कुछ न कुछ कमी नज़र आ ही जाएगी. इसलिए हमें जो मिला, उस पर फोकस करते हैं. 'क्रू' महिला केंद्रित सिनेमा है. इस तरह की फिल्मों से उम्मीद रहती है कि ये कोई पॉइंट प्रूव करें. अपने ट्राइब के लिए स्टैंड लें. कुछ नहीं, तो फेमिनिज़्म पर एकाध लेक्चर तो दे हीं. वरना काहे की वुमन सेंट्रिक फिल्म!

'क्रू' इस बनी-बनाई धारणा को तोड़ती है. अगर आपको तीन मेल एक्टर्स से सजी फिल्म 'मडगांव एक्सप्रेस' के नो-ब्रेनर कॉमेडी होने से कोई शिकायत नहीं है, तो 'क्रू' जैसी फिल्म से ज्ञानगंगा बहाने की उम्मीद क्यों है? और ऐसा नहीं है कि इस फिल्म में दिखे किरदार सशक्त नहीं हैं. या उनकी एंपावरमेंट की बात नहीं हुई. बस इसकी मुनादी नहीं की गई. मगर सबकुछ आपको इन योर फेस क्यों चाहिए!

उदाहरण के तौर पर तबू को ले लीजिए. उन्होंने इस फिल्म में गीता सेठी का रोल किया है. गीता अपने पैसे से घर चलाती है. उसका पति घर मैनेज करता है. उन दोनों लोगों का एक सपना है, जिसे पूरा करने की जद्दोजहद चल रही है. मगर इस चीज़ को बड़े नॉर्मल तरीके से दिखाया गया है. इसे हाइलाइट करने की ज़रूरत नहीं समझी गई. जो कि सही भी है. करीना ने जैस्मिन कोहली नाम का का किरदार निभाया है. उसकी फैमिली में सिर्फ उसके दादा हैं. वो अपना कॉस्मेटिक ब्रांड खड़ा करना चाहती है. दादा का खर्च चलाती है. इंडीपेंडेट लड़की है. वहीं कृति सैनन ने दिव्या राणा नाम की हरियाणवी लड़की का रोल किया है, जो पेशे से पायलट है. किरदारों की अंडरलाइनिंग ये बताने के लिए काफी है. अलग से कुछ मार्क करवाने की ज़रूरत नहीं पड़ती.

'क्रू' की सबसे बड़ी खूबी उसकी कास्टिंग है. तबू, करीना और कृति की आपसी केमिस्ट्री मज़ेदार बन पड़ी है. क्योंकि इन तीनों ने तकरीबन उसी एज के कैरेक्टर्स प्ले किए हैं, जिस उम्र में वो असल में हैं. उन्हें साथ देखकर लगता है कि इन्हें फिल्म की शूटिंग में काफी मज़ा आया है. क्योंकि वो चीज़ स्क्रीन पर नज़र आती है. मगर मेरे लिए इस फिल्म का हासिल तबू की परफॉरमेंस है. गज़ब की कॉमिक टाइमिंग. तबू को देखकर ऐसा लगता है कि उनकी पर्सनैलिटी उन फिल्मों से काफी अलग है, जिनके आधार पर उनकी छवि गढ़ी गई है. इस फिल्म में गीता के कैरेक्टर के साथ आप तबू को कनेक्ट करके देख पाते हैं. करीना ने लंबे समय बाद कोई रिलेटेबल रोल किया है. उनके निभाए जैस्मिन जैसी कई लड़कियों से आप अपने जीवन में मिल चुके होंगे. या उन्हें जानते तो ज़रूर होंगे.

फिल्म में तबू और करीना के बीच एक सीन है. इस सीन में जैस्मिन का किरदार अपने चेहरे पर फाउंडेशन लगा रहा होता है. गीता उसे टोकते हुए कहती है- 

''बस कर क्लीयोपेट्रा! फाउंडेशन है, टाइम मशीन नहीं है."

इन दोनों के सामने कृति सैनन कहीं भी कमज़ोर या कमतर नहीं लगतीं. उन्हें इस अपनी उपलब्धि में गिनना चाहिए. इन लोगों के अलावा 'क्रू' में राजेश शर्मा, दिलजीत दोसांझ, शाश्वत चैटर्जी और कपिल शर्मा जैसे एक्टर्स ने भी काम किया है.  

'क्रू' सीधी-सिंपल फिल्म है. प्रीटेंशियस नहीं है. जो वादा करती है, वो डिलीवर करती है. अगर बिना बैगेज वाली कोई फिल्म देखना चाहते हों, तो जाकर देखिए. फ्रेश लगेगा.  

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