जब एक कप कॉफी के लिए कैम्ब्रिज के प्रोफेसर ने वेबकैम को 'CCTV कैमरा' बना दिया
आप एकदम ठीक पढ़े. आज हम बात करने वाले हैं दुनिया के पहले वेबकैम की जो कॉफी पॉट भरा है या खाली, ये पता करने के लिए बनाया गया था. बनाया किसने वो नाम आप जान लिए. जगह थी University of Cambridge. अब कॉफी की चुस्की लेते हुए कहानी पढ़ लीजिए.

साल था 1991 और जगह थी दुनिया की एक बहुत प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी कैम्ब्रिज. इस यूनिवर्सिटी के दो प्रोफेसर Dr. Quentin Stafford-Fraser और Paul Jardetsky एक अजीब बात से परेशान थे. दरअसल इन प्रोफेसर्स की इमारत में केवल एक कॉफी मशीन थी जिसका रखा बर्तन आमतौर पर खाली रहता था. ऐसा इसलिए कि जिस बिल्डिंग में ये दोनों काम करते थे, वो 6 फ्लोर की थी जहां कई शोधकर्ताओं समेत अन्य स्टाफ और कर्मचारी थे. तो कोई ना कोई आता और बर्तन या पॉट में से कॉफी उठा ले जाता. क्या आप अंदाजा लगा सकते हैं कि इस समस्या से निपटने के लिए इन दोनों प्रोफेसर ने क्या किया होगा? इन्होंने मशीन के ऊपर वेबकैम (worlds first webcam) लगा दिया.
आप एकदम ठीक पढ़े. आज हम बात करने वाले हैं दुनिया के पहले वेबकैम की जो कॉफी पॉट भरा है या खाली, ये पता करने के लिए बनाया गया था. बनाया किसने वो नाम आप जान लिए. जगह थी University of Cambridge. अब कॉफी की चुस्की लेते हुए कहानी पढ़ लीजिए.
पहले वेबकैम की कहानीपता है-पता है, आप कहोगे कि कहानी तो तुम्हारी असली लग रही है मगर साल में कुछ गड़बड़ है क्या? 1991 में इंटरनेट कहां था. जनाब हम बात कर रहे हैं University of Cambridge की. वो जगह जहां शिक्षाविद और शोधकर्ता लगातार नए प्रोजेक्ट्स, विचारों और कॉन्सेप्ट पर काम करते हैं. वहां साल 1991 में भी इंटरनेट था. वैसे भी इंटरनेट साल 1983 में अस्तित्व में आ गया था और साल 1989 में WWW यानी World Wide Web की भी स्थापना हो चुकी थी. कैम्ब्रिज में तब इंटरनेट के साथ इंट्रानेट भी था. मतलब यूनिवर्सिटी के सभी कंप्यूटर एक नेटवर्क में जुड़े हुए थे.
वापस आते हैं पहले वेबकैम पर. डॉ. क्वेंटिन स्टैफ़ोर्ड-फ़्रेज़र के अनुसार,
“कंप्यूटर साइंस की रिसर्च में सबसे महत्वपूर्ण चीज़ों में से एक है कैफीन का नियमित और भरोसेमंद प्रवाह.”
हालांकि, सभी अच्छी चीज़ों की तरह, हमारे रास्ते में आमतौर पर एक बाधा खड़ी होती है. और, कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के मामले में, वह बाधा 6 मंजिलों जितनी हो सकती है.
जिस 7 मंजिला इमारत में शोधकर्ता और शिक्षाविद काम करते थे, उसमें सिर्फ़ एक कॉफ़ी मशीन थी. कई विभागों के कारण, 6 कप कॉफ़ी का बर्तन शायद ही कभी लंबे समय तक भरा रहता था. अब, कल्पना कीजिए कि दोपहर में लंच के बाद आप 5 या 6 मंजिलें चढ़ते हैं और ज़्यादा ईंधन मतलब कॉफी की उम्मीद करते हैं, और पाते हैं कि कॉफ़ी का बर्तन तो खाली है.
"भयानक...डॉ. क्वेंटिन स्टैफ़ोर्ड-फ़्रेज़र के शब्दों में."
लेकिन कैफीन मतलब कॉफी तो चाहिए, तो इसका तोड़ निकाला इन दोनों प्रोफेसर ने और बना दिया दुनिया का पहला वेबकैम. डॉ. क्वेंटिन स्टैफ़ोर्ड-फ्रेजर और पॉल जार्डेट्स्की ने मशीन पर एक कैमरा इंस्टॉल किया, जो कॉफी पॉट की 129x129 आकार की तस्वीरें एक मिनट में तीन बार लेता था. इसके साथ, उन्होंने एक ऐसा सॉफ़्टवेयर भी बनाया, जो इमारत में शोधकर्ताओं और छात्रों को उनके इंट्रानेट से इन तस्वीरों को देखने की अनुमति भी देता था. मतलब अपने सिस्टम पर बैठे-बैठे पता चल जाता था कि कॉफी पॉट भरा है या नहीं. एक सरल से उपाय ने कॉफी की समस्या काफी हद तक सुलझा दी.
दो साल बाद यानी 1993 में इंटरनेट की पहुंच दुनिया में बढ़ी. www सारे सिस्टम कनेक्ट कर रहा था तो प्रोफेसर ने अपने इस वेबकैम को इससे जोड़ दिया. ये वेबकैम वाली तकनीक खूब लोकप्रिय हुई. हालांकि साल 2001 में इस मशीन को बंद कर दिया गया मगर यही वेबकैम आज के मॉडर्न वेबकैम का बेस बना. कोविड के टाइम पर ये कितना काम आया, बताने कि जरूरत नही. आज कि तारीख में मीटिंग से लेकर आगे लाइव स्ट्रीमिंग कि कल्पना करना भी मुश्किल है.
कॉफी खत्म कहानी खत्म.
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