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Paris Olympics में एथलीटों से 'बेईमानी' हो जाए, तो ये तकनीकें दिलाएंगी न्याय

Paris Olympics 2024 खेलों की दुनिया का सबसे बड़ा आयोजन है. कई तकनीक भी इस्तेमाल हो रही होंगी. इसलिए बात करेंगे फ़ोटो फिनिश वाले कैमरे की तो तैराकी वाले सेंसर का सेंस भी लेंगे. गुणा-गणित करने वाले क्वांटम टाइमर के बारे में भी जानेंगे और हवा में उड़ते खिलाड़ियों के लिए बने एयर बैग भी ओपन करेंगे.

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Paris Olympics 2024: five technologies used in the biggest stage of games
ओलंपिक्स में तकनीक
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सूर्यकांत मिश्रा
30 जुलाई 2024 (Updated: 30 जुलाई 2024, 16:16 IST)
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Paris Olympics 2024 में भारत की स्टार शूटर मनु भाकर (Manu Bhaker) ने इतिहास रच दिया है. भाकर ने सरबजोत सिंह (Sarabjot Singh) के साथ मिलकर भारत को इस इवेंट का दूसरा मेडल दिलाया. मनु भाकर का इस ओलंपिक्स में ये दूसरा मेडल है. वो ये इतिहास रचने वाली पहली भारतीय एथलीट बन गई हैं. इसके आगे की पूरी खबर आपको हमारे स्पोर्ट्स के पन्ने पर मिलेगी. हमने तो बस निशाना लगा लिया क्योंकि हमें बात करनी है ओलंपिक्स में इस्तेमाल हो रही कमाल की टेक्नोलॉजी की.

टेक्नोलॉजी ओलंपिक खेलों को सुरक्षित और हर प्रतियोगिता को न्यायपूर्ण बनाने वाली. बात करेंगे फ़ोटो फिनिश वाले कैमरे की. तैराकी वाले सेंसर का सेंस भी लेंगे. गुणा-गणित करने वाले क्वांटम टाइमर के बारे में भी जानेंगे और हवा में उड़ते खिलाड़ियों के लिए बने एयर बैग भी ओपन करेंगे. 

स्कैन विजन कैमरा

ओलंपिक्स खेलों की दुनिया का सबसे बड़ा आयोजन है. इसमें हार और जीत किसी भी खिलाड़ी के जीवन को बदल सकता है. कहने का मतलब जो रिजल्ट है वो एकदम परफेक्ट होना चाहिए. वैसे तो हर खेल में रेफरी से लेकर अंपायर तक होते हैं, मगर गरारी तब फंसती है जब मामला करीबी होता है. सेकंड का सौवां हिस्सा भी बहुत मायने रखता है. ऐसा लगता है जैसे दो खिलाड़ी एक साथ अंतिम पायदान पर पहुंचे हैं. खेल की भाषा में कहें तो फ़ोटो फिनिश. 

इसी फ़ोटो फिनिश की तस्वीर निकालने के लिए इस्तेमाल होता है स्कैन विजन कैमरा या कहें लाइन स्कैन कैमरा. ये वाला कैमरा 1 सेकंड में 40 हजार तस्वीरें निकाल सकता है. सेकंड, मिली सेकंड, माइक्रो सेकंड से लेकर जो सेकंड आप सोच भी नहीं सकते, उसकी तस्वीर निकल जाती है. असली विजेता का पता लगाने के लिए जरूरी तकनीक.

तैराकी वाले टच सेंसर

तैराकी में भी चंद सेकंड बहुत होते हैं. विशेषकर जब तैराक दीवार को छूकर वापस आते हैं तो पानी की वजह से इसकी टाइमिंग को देखना मुश्किल काम है. इसी का हल है टच सेंसर. ये सेंसर दीवार पर लगे होते हैं, और जैसे ही तैराक इसको टच करता है, रियल टाइम में डेटा स्क्रीन पर आ जाता है. तैराक ने टच किया या नहीं, इसकी गुंजाइश ही खत्म हो जाती है.

Paris Olympics 2024: five technologies used in the biggest stage of games
टच सेंसर 
Quantum टाइमर

इसके बारे में सिर्फ इतना बता देते हैं कि सेकंड लाखवें हिस्से का टाइम भी रिकॉर्ड कर सकता है. मतलब 0.000001 सेकंड का फासला भी इस टाइमर में दर्ज हो जाता है. 100 मीटर या 200 मीटर वाली रेस जो 10 या 20 सेकंड में खत्म हो जाती है, उसमें सेकंड का दसवां हिस्सा भी बहुत मायने रखता है. इसलिए Quantum टाइमर का इस्तेमाल किया जाता है.

एयर बैग

खेल में एयर बैग पढ़कर शायद आपको लगे कि किसी कार रेस की बात होने वाली है. नहीं जनाब, यहां बात skiing की हो रही है. बर्फ में होने वाली रेस जिसमें कई बार खिलाड़ी बुरी तरह से घायल होते हैं. आमतौर पर इसकी वजह बैलेंस बिगड़ना होता है. क्योंकि इस खेल में पैडल पैरों में फिक्स होते हैं और दुर्घटना होने पर बचने का मौका नहीं मिलता. इसका तोड़ निकाला गया एयर बैग. 

इनको खिलाड़ियों की पीठ पर बांधा गया है. जैसे ही कोई खिलाड़ी गिरता है, ये बैग खुल जाते हैं. चोट लगने की आशंका कम हो जाती है.

वीडियो: लक्ष्य सेन ने दूसरा मैच जीत लिया, लेकिन पहले मैच का रिज़ल्ट डिलीट क्यों कर दिया गया?

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