नासा ने इस ऐस्टरॉइड से क्या निकाला?
ऐस्टरॉइड के ये सैंपल नासा पृथ्वी पर लाएगा.
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इस मशीन ने ऐस्टरॉइड से सैंपल निकालने के लिए जो हाथ आगे बढ़ाया है, उसका नाम है TAGSAM. (NASA)
अंतरिक्ष में कुछ बड़ी-बड़ी चट्टानें होती हैं. इन्हें ऐस्टरॉइड्स कहते हैं. एक पॉपुलर थ्योरी के मुताबिक डायनासोर के लुप्त होने का कारण एक बड़ा ऐस्टरॉइड था. इसलिए ये डर बना रहता है कि कोई ऐस्टरॉइड पृथ्वी से टकराकर मनुष्यों के खात्मे का कारण भी बन सकता है.कुछ ऐस्टरॉइड्स में अच्छी-खासी मात्रा में सोना, चांदी और प्लेटिनम जैसी धातुएं भी हैं. इसलिए ये संभावना भी है कि ऐस्टरॉइड्स से माइनिंग करके ये धातु निकाली जा सकती हैं.
कई ऐस्टरॉइड बहुत पुराने भी हैं. हमारे सौरमंडल से भी पुराने. इन ऐस्टरॉइड को स्टडी करने पर हमें जीवन की उत्पत्ति से जुड़े सुराग भी मिल सकते हैं.
नासा का एक मिशन है, जो ऐस्टरॉइड के टुकड़े पृथ्वी पर लाने वाला है. ताकि वैज्ञानिक इसे पढ़ सकें.

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साइंसकारी के इस एपिसोड में नासा के ऐस्टरॉइड मिशन की बात करेंगे जिसका नाम है OSIRIS-REx Mission. ये मिशन एक ऐस्टरॉइड पर गया, इसने वहां से सैंपल इकट्ठे किए. और अब ये वापस पृथ्वी पर लौटकर आएगा.
ऐस्टरॉइड क्या होता है?
सबसे पहले ऐस्टरॉइड की बात कर लेते हैं. ऐस्टरॉइड क्या होता है? ऐस्टरॉइड को हिंदी में कहते हैं क्षुद्रग्रह. अंतरिक्ष में घूम रहीं चट्टानें, जो ग्रहों की तुलना में बहुत छोटी हैं. हमारे सौरमंडल में बहुत सारे ऐस्टरॉइड हैं.

ऐस्टरॉइड के अलावा कॉमेट, मीटियोर जैसी चट्टानें भी होती हैं स्पेस में. (NASA)
जब 4.6 अरब साल पहले हमारा सौरमंडल बन रहा था, तब ये चट्टानें अलग रह गईं. जैसे बाकी ग्रह सूरज के चक्कर काटते हैं, वैसे ही ऐस्टरॉइड भी सूरज की ऑर्बिट करते हैं.
ज़्यादातर ऐस्टरॉइड मंगल ग्रह के उस पार हैं. मंगल (Mars) और बृहस्पति (Jupiter) के बीच एक इलाका है, जहां ऐस्टरॉइड भरे पड़े हैं. उस जगह को ऐस्टरॉइड बेल्ट कहा जाता है. ज्यूपिटर (वृहस्पति) के ऑर्बिट (कक्षा) में भी ऐस्टरॉइड हैं. इन्हें ट्रोज़न ऐस्टरॉइड कहते हैं. लेकिन ये पृथ्वी से बहुत ही दूर हैं.

ऐस्टरॉइड सौरमंडल के बाहर भी हैं. (विकिमीडिया)
जो ऐस्टरॉइड पृथ्वी के करीब होते हैं, उन्हें कहते हैं Near Earth Asteroid (नियर अर्थ ऐस्टरॉइड). जिन ऐस्टरॉइड से हमें खतरा है उन्हें Potentially Hazardous Objects की लिस्ट में रखा जाता है. नासा ने इसी लिस्ट से एक ऐस्टरॉइड पर जाने का फैसला किया.
यही वाला ऐस्टरॉइड क्यों?
नासा ने इस मिशन के लिए जिस ऐस्टरॉइड को चुना, उसका नाम है बेनू. ये नाम इजिप्शियन मिथकों से आया है. बेनू ऐस्टरॉइड की खोज 1999 में हुई. इसकी चौड़ाई लगभग आधा किलोमीटर है. यानी सरदार पटेल वाली स्टेच्यू ऑफ यूनिटी से तीन गुना बड़ा.
पृथ्वी की तरह बेनू भी सूर्य की परिक्रमा करता है. इसलिए पृथ्वी और इसके बीच की दूरी बदलती रहती है. जब नासा का स्पेसक्राफ्ट इससे सैंपल इकट्ठे कर रहा था, तब पृथ्वी से इसकी दूरी लगभग 32 करोड़ किलोमीटर थी.

ऐस्टरॉइड बेनू का नाम एक कॉमपिटिशन के बाद चुनकर रखा गया था. (NASA)
बेनू एक B-टाइप ऐस्टरॉइड है. मतलब इसमें कार्बन और बाकी खनिजों की मात्रा ज़्यादा है. B-टाइप ऐस्टरॉइड दुर्लभ होते हैं. बेनू ऐस्टरॉइड की खास बात ये है कि ये बहुत पुराना है. हमारा सौरमंडल 4.5 अरब साल पहले बना. बेनू उससे भी पुराना है. तब से इसमें कुछ खास बदलाव नहीं आए हैं.
कैमिस्ट्री में ऑर्गेनिक कंपाउंड्स के बारे में पढ़ाया जाता है. ऑर्गेनिक यानी कार्बन-हाइड्रोजन पर आधारित चीज़ें. यही ऑर्गेनिक कंपाउंड पृथ्वी पर जीवन का आधार हैं. एक ऐसे ऐस्टरॉइड को स्टडी करने से हमें जीवन की उत्पत्ति से जुड़े जवाब भी मिल सकते हैं.
सिर्फ यही नहीं. इसे स्टडी करने से हम जीवन बचा भी सकते हैं. 22 सदी में इस ऐस्टरॉइड के पृथ्वी से टकराने की संभावना भी है. टकरा ही जाएगा, ये पक्का नहीं है. लेकिन टकराने के अच्छे-खासे चांस हैं. इसे स्टडी करने का एक कारण ये भी है.

JPL, NASA, CC BY-SA 4.0
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पास पहुंच के चौंक गए
ऐस्टरॉइड बेनू पर पहुंचे नासा के मिशन का नाम है OSIRIS-Rex. पूरा नाम - Origins, Spectral Interpretation, Resource Identification, Security-Regolith Explorer.
ये मिशन सितंबर 2016 में लॉन्च हुआ था. इसे बेनू तक पहुंचने में लगभग दो साल लगे. दिसंबर 2018 में ये स्पेसक्राफ्ट ऐस्टरॉइड के पास पहुंच गया. तब से ऐस्टरॉइड बेनू के चक्कर काट रहा है. OSIRIS ने अब तक बेनू को बहुत अच्छे से मैप कर चुका है. और इसे बहुत अच्छे से स्टडी भी कर लिया गया.
मिशन का सबसे अहम उद्देश्य है ऐस्टरॉइड बेनू को स्टडी करना और इसके सैंपल पृथ्वी पर भेजना.

इस स्पेसक्राफ्ट के ऊपर लगे दो सोलर पैनल टचडाउन के दौरान V शेप में आ जाते हैं. (NASA)
इसे पास जाकर स्टडी करना मिशन का हिस्सा तो था ही, लेकिन ये अहम भी साबित हुआ. पृथ्वी से किसी ऐस्टरॉइड के बारे में सबकुछ नहीं बताया जा सकता. वहां जाकर ऐस्टरॉइड बेनू के बारे में कुछ चौंकाने वाली बातें पता चलीं.
वैज्ञानिकों को लगता था कि इस ऐस्टरॉइड पर छोटे कंकड़-पत्थर ही होंगे. लेकिन OSIRIS के डेटा से पता चला कि वहां बड़े-बड़े बोल्डर भी हैं. एक और हैरान करने वाली बात ये थी कि बेनू घूमते हुए कुछ कण अंतरिक्ष में निकालता रहता है.

पहली तस्वीर मेंऐस्टरॉइड के कण देखे जा सकते हैं. दूसरी में इसमें मौजूद बड़ बड़े बोल्डर. (NASA)
ये मिशन इन चीज़ों को ध्यान में रखकर तैयार नहीं किया था. लेकिन इस बीच ये तैयारी की गई. सैंपल कलेक्शन के लिए चार जगह शॉर्टलिस्ट की गई थीं. आखिर में सैंपल इकट्ठे करने के लिए नाइटिंगेल साइट को चुना गया.
नाइटिंगेल साइट पर बारीक सैंपल मौजूद है. लेकिन ये साइट कुछ कार पार्किंग स्पेस जितनी जगह में है. और इसके आसपास बड़े-बड़े बोल्डर हैं. OSIRIS स्पेसक्राफ्ट का साइज़ एक बड़ी वैन जितना है.

नासा द्वारा चुनी गईं चार सैंपल साइट. (NASA)
ऐस्टरॉइड के टुकड़े कैसे उठाए?
इस मिशन के दौरान ये ऐस्टरॉइड पृथ्वी से 32 करोड़ किलोमीटर दूर था. इतनी दूरी से रेडियो सिग्नल पहुंचने में 18 मिनट लगते हैं. और इस मिशन में सेकेंडों का खेल हैं. यानी पृथ्वी से सिग्नल के ज़रिए मिशन को कंट्रोल करना विकल्प नहीं था. इसलिए इस मिशन में सब आटोमेटेड था.
OSIRIS को पहले ही ग्राउंड स्टेशन से कमांड भेज दिए गए थे. पहले ये स्पेसक्राफ्ट बेनू से 770 मीटर ऊपर ऑर्बिट (परिक्रमा) कर रहा था. उसे ऐस्टरॉइड के सैंपल लेने नीचे सतह के पास जाना था. पूरे सैंपल कलेक्शन इवेंटर के दौरान 4.5 घंटे लगे. इसके लिए OSIRIS स्पेसक्राफ्ट ने तीन मैनूवर (पैंतरेबाजी) किए. मैनूवर यानी कुछ सोचे समझे कदम, जो कोई स्पेसक्राफ्ट अंतरिक्ष में लेता है. इस ऐस्टरॉइड पर ग्रैविटी बहुत ही कम थी. इसलिए ये चुनौती भरा काम था. पहले OSIRIS ने अपने थ्रस्टर चालू किए. और ये अपने सेफ ऑर्बिट (770 मीटर) से नीचे सतह की तरफ जाने लगा. धीरे धीरे इसी रास्ते पर चलने के 4 घंटे बाद ये सतह से लगभग 125 मीटर ऊपर पहुंचा. इसके बाद इसने सेफ डिसेंट के लिए अपनी पॉज़ीशन और स्पीड चेक की. फिर करीब 54 मीटर पहुंचने के बाद ये खुद को बेनू के रोटेशन से मैच करता है. ये सब करने के लिए इसमें NFT नेविगेशन सिस्टम लगा है.
अब जाकर मिशन का सबसे अहम हिस्से को अंजाम दिया जाना था. TAG (Touch and Go). छुए और भग लो. ज़रा सी देर के लिए स्पेसक्राफ्ट के एक हाथ ने सतह को छुआ और ये वापस ऊपर की तरफ निकल लिया. ये टैग ईवेंट लगभग छह सेकंड की थी.

By NASA/Goddard/University of Arizona
जब OSIRIS ने बेनू की सतह को छुआ, तो प्रेशराइज़्ड नाइट्रोजन गैस निकली. इसकी मदद से बेनू की सतह से कुछ बारीक टुकड़े ऊपर की तरफ उड़े होंगे, जो आर्म में मौजूद कंटेनर में इकट्ठे हुए होंगे.
कम से कम 60 ग्राम सैंपल इकट्ठा करना नासा का लक्ष्य है. इसकी पुष्टि करने को लिए ये स्पेसक्राफ्ट स्पिन टेस्ट करके देखेगा. चूंकि वहां ग्रेविटी बहुत कम है, इसलिए नॉर्मल तरीके से वज़न नहीं नापा जा सकता. तो स्पेसक्राफ्ट स्पिन करेगा. अपने अक्ष पर घूमेगा. इससे उसे अंदाज़ा हो जाएगा कि वज़न कितना बढ़ा है.
अगर सैंपल का वज़न निर्धारित 60 ग्राम से कम होता है, तो दोबारा कोशिश की जाएगी. OSIRIS के पास नाइट्रोजन के तीन डब्बे हैं. इसका वो तीन बार सैंपल इकट्ठे करने की कोशिश कर सकता है.

इसी कैप्सूल में सैंपल पृथ्वी के वायुमंडल में दाखिल होगा. (NASA)
ये सैंपल कैप्सूल सितंबर 2023 में पृथ्वी पर पहुंचेगा. इसके बाद वैज्ञानिक इसे स्टडी करेंगे और कई रहस्यों से पर्दा उठेगा.
जापान आगे है
ये इकलौता ऐस्टरॉइड सैंपल रिटर्न मिशन नहीं है. जापान की स्पेस ऐजेंसी JAXA पहले ही ऐसे मिशन कर चुकी है. जाक्सा का मिशन हायाबुसा-1 पृथ्वी पर 2010 में एक ऐस्टरॉइड के सैंपल लाया था. जाक्सा एक और मिशन हायाबूसा 2 पृथ्वी पर सैंपल लेकर लौटने ही वाला है. ये मिशन ऐस्टेरॉइड रयुगू से सैंपल लेकर आ रहा है. और ये 6 दिसंबर 2020 को पृथ्वी पर पहुंचेगा.