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क्या 5G से फैला था कोरोना? इस्तेमाल से पहले सच जान लीजिए

क्या 5G इंसानों के लिए ख़तरा है? और क्या इसकी तरंगों से परिंदों की जान जाती है?

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5G is dangerous for human and animal truth or rumour
5G से वाकई खतरा है क्या? (image/pexels)
5 अक्तूबर 2022 (Updated: 5 अक्तूबर 2022, 12:06 IST)
Updated: 5 अक्तूबर 2022 12:06 IST
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एक काम होने में पहले 30 मिलीसेकंड लगते थे लेकिन अब सिर्फ एक मिलीसेकंड लगेंगे. आप पूछोगे भैया क्या ही फर्क पड़ जाएगा. सवाल ये भी होगा कि फर्क कहां पड़ेगा. तो फर्क पड़ेगा आपकी इंटरनेट की स्पीड पर क्योंकि अब हमको 5G मिल गया है. और साथ में फर्क पड़ेगा आपके अनुभव पर. यकीन नहीं होता तो लाइव मैच का प्रसारण ही देख लीजिए. स्क्रीन पर दिख रहे और ग्राउन्ड में चल रहे मैच के बीच मिलीसेकंड का फर्क होता है. अब नहीं होगा. चलिए छोड़िए मैच को. कल्पना कीजिए रोबोट से ऑपरेशन हो रहा और डॉक्टर जो निर्देश दे वो आधे मिलीसेकंड देर से पहुंचे. आगे क्या होगा वो आपको पता है. लब्बोलुआब ये कि इंटरनेट की स्पीड अब खूब तेज मिलेगी, ये हकीकत है. लेकिन आज बात हकीकत की नहीं बल्कि फ़साने की. 5G के नाम पर चलती आ रही और चली जा रही अफवाहों की.

5G इंसानों के लिए ख़तरा है क्या? इससे कोई बीमारी फैलती है क्या? क्या इसकी तरंगों से परिंदों की जान जाती है? और सबसे महत्वपूर्ण क्या कोरोना के लिए यही तकनीक जिम्मेदार है. आइए .....अरे डरिए मत ....आप और हम सच पता करते हैं.

2020 की शुरुआत में जब पूरी दुनिया लॉकडाउन, क्वारन्टीन जैसे शब्दों का अर्थ समझने में लगी हुई थी, तब इसी दुनिया के कई हिस्सों से 5जी मोबाइल टावरों को तोड़ने की खबरें अखबारों के कोने में दबी नजर आ रही थीं. कारण था सोशल मीडिया पर फैली एक अफवाह कि कोरोना का असल कारण कोई वायरस नहीं बल्कि इन टावरों से निकलने वाली किरणें हैं. अकेले ब्रिटेन में 77 मोबाइल टावरों को आग के हवाले किया गया. यूरोप के कई और देश जैसे इटली, बेल्जियम, फ्रांस भी इससे नहीं बचे. भारत भी इससे अछूता नहीं था. मशहूर ऐक्टर जूही चावला ने तो बाकायदा कोर्ट का दरवाजा खटकटाया था, इस तकनीक के विरोध में. 

ऐसा नहीं है कि किसी नई तकनीक पर अफवाहों का बाजार पहली बार गरम हुआ हो. जब पहले पहल रेल चलनी शुरू हुई तो लोगों का कहना था कि तेज़ गति से चलने से बीमारियां होती हैं. 19वीं सदी के आख़िर में चेचक के टीकाकरण के विरोध में दंगे तक हुए थे. कोरोना टीके के ऊपर भ्रम भी कोई कम थोड़े नहीं है. ऐसा लगता है जैसे ये इंसानी फितरत है कि बस विरोध करो. खैर वापस आते हैं 5G पर. 

आखिर इसकी शुरुआत कैसे हुई?

2020 में बेल्जियम के एक अख़बार में एक डॉक्टर का इंटरव्यू छपा जिसमें दावा किया गया कि "5जी ख़तरनाक है और इसका नाता कोरोना वायरस से हो सकता है." गजब बात ये थी इसी इंटरव्यू में डॉक्टर का कहना था कि उन्होंने कोई फैक्ट चेक नहीं किया है". ये इंटरव्यू मिला 5जी का पहले से विरोध कर रहे कुछ लोगों को और फिर सोशल मीडिया जिन्दाबाद. ये तकनीक तो बेचारी तभी से लोगों के निशाने पर है जब इसका जन्म हुआ था. नब्बे के दशक में जब मोबाइल अपने बचपने में था तब अफवाह फैली कि कान पर फ़ोन लगा कर रखने से कैंसर हो सकता है. अफ़वाहें फैल रही थीं कि इसका इस्तेमाल लोगों की जासूसी के लिए और उनके दिमाग पर नियंत्रण करने के लिए किया जा रहा है. हालांकि आगे चलकर ये सिर्फ कोरी कल्पना ही निकली.

5G भी एक तकनीक है जैसे 2G, 3G और 4G थी. 5G तो कोई बड़ा बदलाव भी नहीं है बल्कि एक इंक्रिमेंटल अपडेट है. 4G से भी कुछ बुरा नहीं हुआ औरम5G तो सिर्फ आपके इंटरनेट का दवाब कम करेगा. इसकी वजह है हायर फ्रीक्वेन्सी. जहां 4जी छह गीगाहर्ट्ज़ से कम की फ्रीक्वेंसी का इस्तेमाल करता है वहीं 5जी 30 से 300 गीगाहर्ट्ज़ की फ्रीक्वेंसी काम में लेता है. 

2014 की एक रिपोर्ट में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा था कि मोबाइल फ़ोन के इस्तेमाल से इंसान के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर नहीं पड़ता. साफ कहें तो अगर ये तकनीक शरीर के टिशू को गर्म नहीं करता तो इससे ख़तरा नहीं है. बिजली के तार और माइक्रोवेव तो मोबाइल से काफी पहले से हैं और उनकी फ्रीक्वेंसी और मोबाइल तकनीक में इस्तेमाल होने वाली फ्रीक्वेन्सी करीब-करीब होती है. एक तरफ माइक्रोवेव में खाना गर्म करने के लिए कम फ्रीक्वेंसी रेडिएशन का इस्तेमाल हाई पावर पर होता है तो दूसरी तरफ मोबाइल फ़ोन तकनीक में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि रेडिएशन से गर्मी न पैदा हो. हालांकि तकनीक उन्नत हुई है तो 4जी के मुक़ाबले 5जी की फ्रीक्वेंसी ज़्यादा ज़रूर है, लेकिन इतनी भी नहीं कि इंसानी शरीर के टिशू को कोई खतरा हो. ये नियम मोबाइल फ़ोन और टावर दोनों पर ही लागू होता है.  

हकीकत क्या है 

अब तक 5जी के इस्तेमाल से किसी तरह के नुकसान के वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं मिले हैं. कहने का मतलब सब कुछ कोरी गप है. अब इसमें योगदान थोड़ा हमारा भी है. आज के दौर में हम अपना वक्त और पैसा बर्बाद नहीं करना चाहते. जो  इंटरनेट दिखा दे वही सही. कुछ दशक पहले की बात करते और टीके को लेकर आपके मन में कोई दुविधा होती तो डॉक्टर के पास जाते और वो सही सलाह देता. इसलिए जब तक कोई ठोस प्रमाण नहीं मिल जाता तब तक नई तकनीक के मजे लीजिए. 

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