कहानी धोनी के उस बॉलर की, जिसे क्रिकेटर बनाने के लिए पिता ने एयरफोर्स की नौकरी छोड़ दी थी
अब इंडिया-ए से खेलते हुए वेस्टइंडीज-ए के खिलाफ 27 रन देकर 5 विकेट लिए.
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सीएसके के बॉलर 10 साल की उम्र से खेल रहे हैं क्रिकेट.
बात 2008 की है. राजस्थान क्रिकेट असोसिएशन ट्रायल ले रहा था. प्रदेश के कायदे वाले क्रिकेटरों को छांटने के लिए. एक से एक धाकड़ लड़के आए थे. दे बॉलिंग, दे बैटिंग करे पड़े थे. इन्हीं में एक और लड़का जोरआजमाइश कर रहा था. उम्र थी 16 साल. ट्रायल दिया. कई गेंदें डालीं पर वहां खड़े मास्टर साहब को मजा नहीं आ रहा था. ये मास्टर साहब थे ग्रेग चैपल. भारतीय टीम का खून चूसने वाले ग्रेग चैपल. महाशय उस वक्त राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन अकेडमी के डायरेक्टर थे. पर चैपल साहब की खून चुसनी यहां भी लगी थी. शिकार बना ये 16 साल का खिलाड़ी. उसे रिजेक्ट कर दिया गया. टॉप 50 में भी नहीं चुना गया. लड़के को लगा कि वो अच्छा खेल रहा है. और लड़कों से ज्यादा अच्छी कद-काठी है. तो उसने सोचा चैपल से पूछ तो लिया ही जाए कि मुझमें क्या कमी है. जवाब मिला -
मुझे नहीं लगता कि आप हायर लेवल तक क्रिकेट खेल सकते हैं. आपमें क्रिकेटरों वाली बात नहीं है.इससे कड़वी बात इस लड़के ने पहले कभी नहीं सुनी थी. आंखों में आंसू थे पर उसने खुद को संभाला. खून का घूंट पीकर वहां से लौटा. लौटा इसलिए ताकि वापस आ सके. जवाब दे सके. और जवाब दिया. दो साल बाद. सिर्फ चैपल को ही नहीं. पूरी दुनिया को. हर उस आदमी को जिसने उसे नकारा था. कैसे, जान लीजिए -
सौरव गांगुली के साथ ग्रेग चैपल का पंगा दुनिया जानती है.
बात 2010 की है. महीना नवंबर का. ये लड़का अब 18 साल का हो चुका था. जिसे क्रिकेटर न बन पाने की तोहमत मिली थी वो अब राजस्थान की रणजी टीम का हिस्सा बन चुका था. पहला मैच खेलने जा रहा था. स्टार बनने जा रहा था. हैदराबाद के खिलाफ खेले गए इस मैच में इस लड़के ने 8 विकेट चटकाए. मात्र 7.3 ओवर में. रन दिए खाली 10. उसमें भी 2 ओवर मैडन. हैदराबाद की लंका लग गई थी. पूरी टीम 21 रनों के स्कोर पर पवेलियन लौट चुकी थी. 78 मिनट भी नहीं लगे थे इस घटना के घटने में. इतिहास बनने में. ये रणजी ट्रॉफी का तब तक का किसी टीम का सबसे कम स्कोर था. 76 साल बाद ये रिकॉर्ड टूटा था. माने पहले ये रिकॉर्ड बना था 1934-35 के रणजी सीजन में. भाग्य फूटा था दक्षिण पंजाब का. उसने नॉर्थ इंडिया के खिलाफ 114 रनों का पीछा करते हुए 22 रन बनाए थे.अब ज्यादा नहीं तड़पाएंगे. लड़के का नाम बता देते हैं. राजस्थान का भाग्योदय करने वाले. 77 साल में पहली बार राजस्थान को रणजी ट्रॉफी जितवाने में अहम रोल निभाने वाले. सीजन में 30 विकेट लेकर दूसरे नंबर पर रहने वाले इस लड़के का नाम है दीपक चाहर. वही दीपक चहर जिन्होंने चेन्नई सुपरकिंग्स की तरफ से 2018 आईपीएल में शानदार बॉलिंग की. धोनी ने उन पर जो भरोसा जताया, उसे बचाए रखा. अब सोचने वाली बात ये है कि दीपक ने 2010 में इतना शानदार तरीके से डेब्यू किया. टीम को रणजी ट्रॉफी जितवाई तो वो 2018 में जाकर क्यों सबकी नजरों में आए. इतने साल कहां गायब थे. इसका जवाब है उनकी फिटनेस. 2011 से 2014 के बीच वो कई बार चोटिल हुए. कुछ ऐसे बिगड़ा उनका खेल -
आईपीएल में अब तक का सीजन दीपक के लिए अच्छा रहा है.
# 2011-12 के रणजी सीजन के 6 मैच ही वो खेल पाए थे कि दीपक को जॉन्डिस हो गया. वो तीन महीने बिस्तर से नहीं उठ पाए. इसका असर उनके शरीर पर काफी पड़ा. उनकी स्पीड जो 140 की थी, 120 पर आकर अटक गई. पर उन्होंने कमबैक किया.एक वक्त तो लगने लगा कि धमाकेदार तरह से करियर का आगाज करने वाले दीपक का करियर खत्म होने वाला है. मगर ऐसा नहीं हुआ. दीपक ने वापसी की और शानदार की. फिलहाल धोनी सेना में उनका सिक्का चल ही रहा है. दीपक को 2011 और 2012 में राजस्थान रॉयल्स ने अपनी टीम में जगह दी, मगर उन्हें एक भी मैच में खेलने का मौका नहीं दिया. अगले दो साल वो फिटनेस के चलते किसी भी टीम में जगह नहीं बना सके. 2016-17 के सीजन में वो राइजिंग पुणे सुपरजाइंट्स का हिस्सा रहे. मगर उन्हें ज्यादा मैच खेलने को नहीं मिले. जो 4-5 मैच खेलने को मिले, उसमें वो कुछ खास नहीं कर सके. पर 2018 में उनकी किस्मत चमकी. उन्हें चेन्नई सुपरकिंग्स ने 80 लाख में खरीदा. चेन्नई के लिए ये फायदे वाला सौदा भी साबित हुआ. वो पूरे टूर्नामेंट में छाए रहे. चहर खुद बताते हैं कि धोनी उनको काफी मोटिवेट करते थे. उनपर भरोसा जताते थे. उसी की बदौलत वो अच्छा खेल पाए. और अब उनका ये फॉर्म इंग्लैंड में काम आ रहा है. जहां वो इंडिया-ए के लिए ट्राई सीरीज खेल रहे हैं. ताजा मैच वेस्टइंडीज ए के साथ हुआ. इस मैच में चाहर ने 5 विकेट लिए. मात्र 27 रन देकर. इसकी बदौलत ही वेस्टइंडीज-ए की टीम 221 पर ऑलआउट हो गई. जवाब में ये टार्गेट भारत ने 38.1 ओवर में ही पा लिया. मयंक अग्रवाल की सेंचुरी और शुभमन गिल के पचासे की मदद से.
दीपक की फिटनेस उनकी मुश्किल बढ़ाती रही है.
# 2012-13 के सीजन में फिर कुछ ऐसा ही हुआ. वो इस बार चोटिल हो गए और आधे से ज्यादा सीजन बाहर रहे. जो खेलने को आखिर में मिले, उसमें चले नहीं.
# 2013-14 में रणजी से पहले उनके हाथ में चोट लग गई. इस हाथ की चोट से उबरने के लिए उन्हें मार्शियल आर्ट्स की ट्रेनिंग लेनी पड़ी.

दीपक 2016-17 में पुणे की टीम में थे.
एयरमैन पिता ने छोड़ दी थी नौकरी
दीपक के क्रिकेटर बनने की कहानी का सबसे दिलचस्प पहलू उनको चैपल का रिजेक्ट करना नहीं है. दिलचस्प है उनके और उनके पिता लोकेंद्र चाहर के बीच का रिश्ता. उनके पिता कि जिद कि अपने बेटे को क्रिकेटर बनाकर ही दम लेनी है. दीपक का जन्म 7 अगस्त 1992 को आगरा में हुआ था. जब दीपक 10 साल के थे, तब से ही लोकेंद्र ने उनको जयपुर की जिला क्रिकेट अकेडमी में एडमिशन दिलवा दिया था. बाद में लोकेंद्र को लगा कि उनके बेटे के कैरियर और उनके सपने के बीच में एयरफोर्स की उनकी नौकरी आ रही है तो वो उसे छोड़ बैठे. अब उनका पूरा ध्यान बेटे के कैरियर पर था. वो रोज दीपक को बाइक से खुद ट्रेनिंग करवाने ले जाते और साथ वापस आते. दीपक खुद भी कहते हैं कि उनका सबसे बड़ा कोच उनके पिता ही हैं.

दीपक फिलहाल धोनी के टॉप बॉलर्स में हैं.
क्रिकेट कैरियर पर एक नजर
# फर्स्ट क्लास - 40 मैच खेले हैं. 113 विकेट लिए हैं. बेस्ट परफॉर्मेंस वही 10 रन देकर 8 विकेट वाली है. 2010 में हैदराबाद के खिलाफ. डेब्यू मैच में. 883 रन भी बनाए हैं 18.39 के एवरेज से.
# लिस्ट ए - 9 मैच खेले हैं. 14 विकेट लिए हैं. बेस्ट 43 रन देकर 3 विकेट लेने का है.

धोनी चहर का काफी मनोबल बढ़ाते रहे हैं.
# टी20 - 30 मैच खेले हैं. 35 विकेट लिए हैं. बेस्ट 15 रन देकर 5 विकेट लेने का है.
# दीपक ने कूच बीहर ट्रॉफी और वीनू मांकद ट्रॉफी के 4 अंडर-19 मैच खेलते हुए 21 विकेट निकाले थे.
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