ISRO ने लद्दाख में बनाया पहला मंगल बेस, HOPE के लिए ठंडा रेगिस्तान ही क्यों चुना?
इस मंगल बेस को शॉर्ट में HOPE कहा जा रहा है. ये भारत का पहला मंगल बेस है. यहां ISRO ये रिसर्च करेगा कि मंगल ग्रह पर जीवन कैसा होगा. यानी मंगल ग्रह के हूबहू परिस्थितियों को तैयार करने के लिए इस फैसिलिटी को बनाया गया है.

31 जुलाई 2025 की तारीख. इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाइजेशन (ISRO) के चेयरमैन डॉ वी नारायणन ने 4,530 मीटर की ऊंचाई पर एक फैसिलिटी का उद्घाटन किया. लद्दाख की त्सो कार घाटी (Tso Kar Valley) में बनी इस फैसिलिटी का नाम हिमालयन आउटपोस्ट फॉर प्लैनेटरी एक्सप्लोरेशन (Himalayan Outpost for Planetary Exploration) है. शॉर्ट में इसे ही HOPE कहा जा रहा है. ये भारत का पहला मंगल बेस है. यहां इसरो ये रिसर्च करेगा कि मंगल ग्रह पर जीवन कैसा होगा. यानी मंगल ग्रह के हूबहू परिस्थितियों को तैयार करने के लिए इस फैसिलिटी को बनाया गया है.
मंगल जैसा माहौल देने की कोशिशइसरो द्वारा जारी HOPE की तस्वीर देखें तो ये एक गुम्बदनुमा स्ट्रक्चर जैसा दिखाई पड़ता है. इसमें दो गुम्बद हैं जिनका नाम मंगल ग्रह के दो चांद 'फोबोस' और 'डिमोस' के नाम पर रखा गया है. फोबोस की चौड़ाई 8 मीटर जबकि डिमोस की चौड़ाई 5 मीटर है. ये गुम्बद 18 फीट ऊंचे हैं. इन्हें बनाने में खास तरह के पॉलिमर और खिड़कियों के लिए फाइबर ग्लास का इस्तेमाल किया गया है. इसे इस तरह से बनाया गया है कि जब मंगल मिशन शुरू हो, तब की परिस्थितियों को सिमुलेट किया जा सके. यानी अभी उस मिशन का रिहर्सल किया जा सके.
डिमोस में एक एयरलॉक प्रणाली लगी है जो अंतरिक्ष यात्रियों के बाहर निकलने के बाद प्रेशर को कंट्रोल में रखती है. साथ ही इसमें एक बायोडाइजेस्टर भी है जो इसमें रहने वाले इंसानों के मल-मूत्र को 90 प्रतिशत तक साफ कर इसके पानी को खेती के लिए इस्तेमाल करने के लायक बनाता है.
दूसरे गुम्बद यानी फोबोस में एक क्रू रहता है जो पूरे मिशन के दौरान सैम्पल इकठ्ठा करने का काम करता है. फोबोस के तीन हिस्से हैं. इसमें सोने और काम करने की जगह, प्रेशर शोध के लिए सैम्पल तैयार करने का क्षेत्र, बिजली के लिए एक सोलर पैनल और बैटरी लगी है. ये मिशन 1 से 10 अगस्त का था. ऐसे में पानी और खाना, दोनों चीजें लिमिटेड थीं. 10 दिनों तक पीने के लिए 80 लीटर पानी दिया गया था.
आजतक की रिपोर्ट के मुताबिक त्सो कार घाटी को इस मिशन के लिए इसलिए चुना गया क्योंकि यहां का माहौल मंगल ग्रह से काफी मिलता है. यहां पड़ने वाली हाई अल्ट्रावायलेट किरणों का प्रवाह, हवा का कम प्रेशर, अत्यधिक ठंड और खारे पर्माफ्रॉस्ट (हवा में नमकीनपन) के कारण इस जगह को चुना गया था.
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