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महिला दिवस पर इन सात महिलाओं ने चलाए पीएम मोदी के सोशल मीडिया अकाउंट

कोई बम धमाकों में बचीं तो कोई भूखों को खिलाती हैं खाना.

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पीएम नरेंद्र मोदी के सोशल मीडिया अकाउंट सात महिलाओं ने चलाए.
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8 मार्च 2020 (Updated: 9 मार्च 2020, 05:47 AM IST)
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पीएम नरेंद्र मोदी ने 8 मार्च यानी महिला दिवस पर अपने सोशल मीडिया अकाउंट महिलाओं को सौंप दिए. सात महिलाओं ने पीएम मोदी के अकाउंट संभाले. इन महिलाओं ने पीएम के अकाउंट पर अपने जीवन के बारे में बताया. इससे पहले सुबह पीएम मोदी ने लिखा-
हम नारी शक्ति की स्पिरिट और उपलब्धियों को सलाम करते हैं. जैसा कि मैंने पहले कहा था कि मैं सोशल मीडिया से अलग हो रहा हूं. आज पूरे दिन सात महिलाएं अपने जीवन की यात्रा के बारे में बताएंगी. मेरे सोशल मीडिया अकाउंट के जरिए आपसे बात करेंगी.
इन महिलाओं ने संभाले पीएम मोदी के अकाउंट-
स्नेहा मोहनदास.
स्नेहा मोहनदास.

स्नेहा मोहनदास पीएम मोदी का टि्वटर हैंडल सबसे पहले चेन्नई की स्नेहा मोहनदास ने संभाला. वह फूड बैंक की संस्थापक हैं. इसे उन्होंने साल 2015 में शुरू किया था. इसके जरिए वह बेघर लोगों का खाना खिलाती हैं. स्नेहा का कहना है कि वह इस पहल से युवाओं को जोड़ना चाहती हैं. फूड बैंक देश में 18 से ज्यादा जगहों पर चल रहा है. इसके अलावा दक्षिण अफ्रीका में भी इसकी मौजूदगी है.
मालविका अयर.
मालविका अयर.

मालविका अयर 13 साल की उम्र में मालविका बीकानेर में बम धमाकों की चपेट में आ गई थी. इसके चलते कोहनी तक उनके दोनों हाथ नहीं हैं. साथ ही उनके पैरों को भी नुकसान पहुंचा. लेकिन मालविका हारी नहीं. उन्होंने सोशल वर्क में पीएचडी की. अब मालविका इंटरनेशनल मोटिवेशनल स्पीकर हैं. साथ ही दिव्यांगों के लिए काम करती हैं.
कल्पना रमेश.
कल्पना रमेश.

कल्पना रमेश वह पानी के संरक्षण के काम से जुड़ी हैं. उन्होंने आर्किटेक्चर में ग्रेजुएशन किया है. शादी के बाद वह अमेरिका शिफ्ट हो गई थीं. लेकिन भारत आती रहती थी. यहां बरसाती पानी की बर्बादी को देखकर उन्होंने इस बारे में काम करने की ठानी. कल्पना अभी हैदराबाद में रहती हैं. यहां पानी के संरक्षण को लेकर लोगों के जागरूक करती हैं. उन्होंने बताया कि उन्होंने बरसाती पानी को घर में इस्तेमाल करना शुरू किया. इसके बाद उन्होंने अपनी सोसायटी तक इस मुहिम को आगे बढ़ाया. जल्द ही इसका फायदा देखने को मिला. कल्पना ने बताया कि साल 2016 की गर्मियों में उनकी सोसायटी में पानी का एक भी टैंकर नहीं मंगाया गया.
कलावती देवी के काम की तारीफ पीएम मोदी भी कर चुके हैं.
कलावती देवी के काम की तारीफ पीएम मोदी भी कर चुके हैं.

कलावती देवी 58 साल की कलावती देवी ने कानपुर में खुले में शौच में कमी लाने में अहम किरदार निभाया है. कानपुर के आसपास उन्होंने 4000 से ज्यादा शौचालय बनवाए हैं. कलावती ने खुले में शौच के खिलाफ घर-घर जाकर जागरूकता फैलाई. उनके पति और दामाद की असमय मौत हो गई. ऐसे में बेटी और दो नातियों के जिम्मेदारी भी उन पर आ गई. बावजूद इसके कलावती देवी ने हिम्मत नहीं हारी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उनकी तारीफ कर चुके हैं.
विजया पवार.
विजया पवार.

विजया पवार विजया महाराष्ट्र से आती हैं. वह बंजारा समुदाय है. उन्होंने बंजारा हस्तकला 'गोरमाटी' को आगे बढ़ाने का काम किया है. उन्होंने यह कला पति से सीखी. फिर बाकी महिलाओं को भी सिखाने का बीड़ा उठाया. वह पिछले 20 साल से यह काम कर रही हैं. अभी वे एक एनजीओ भी चलाती हैं. यह बंजारा हस्तकला की ट्रेनिंग देता है. उन्होंने बताया कि बंजारा हस्तकला गायब होने की कगार पर आ गई थी. लेकिन अब इसे फिर से पहचान मिली है. अभी विजया के साथ 1000 से ज्यादा महिलाएं जुड़ी हुई हैं.
आरिफा जान जम्मू कश्मीर से आती हैं.
आरिफा जान जम्मू कश्मीर से आती हैं.

आरिफा जान 33 साल की आरिफा नमदा हैंडीक्राफ्ट की संस्थापक हैं. नमदा कश्मीर की स्थानीय हस्तकला है. इसमें ऊन से कारपेट बनाए जाते हैं. आरिफा ने इस कला को लोकप्रिय बनाने का काम किया.आरिफा ने 100 महिलाओं को यह कला सिखाई है. अभी उन्होंने 25 लोगों को काम पर रखा हुआ है. वह कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुकी हैं. उन्हें कई समस्याओं का सामना भी करना पड़ा. महिला होने के चलते कई बार लोगों के ताने सुनने पड़े. लेकिन इन सबको पीछे छोड़ कर आरिफा आगे बढ़ीं.
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बीना देवी बिहार के मुंगेर से आती हैं.

वीणा देवी वीणा देवी ने बिहार के मुंगेर जिले में मशरूम की खेती को बढ़ावा देने के लिए काम किया. मुंगेर के 105 गांवों में उन्होंने इस खेती को आमदनी का बड़ा जरिया बना दिया. इस वजह से अब वह ‘मशरूम महिला’ के नाम से मशहूर हैं. इन्होंने 700 महिलाओं को मोबाइल चलाना सिखाया. इस पर टाटा ट्रस्ट ने उन्हें सम्मानित किया. वह धौड़ी पंचायत की सरपंच भी रही. उन्होंने गांव के किसानों को किसानी में नए प्रयोगों के लिए ट्रेनिंग दी. इसमें ऑर्गेनिक खेती, ऑर्गेनिक खाद तैयार करना और वर्मी कंपोस्ट यानी केंचुए से खाद बनाना शामिल था. बकरी पालन और डेयरी के जरिए उन्होंने गांव की महिलाओं को अपने पैरों पर खड़ा किया.


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