पेशाब में अगर बिना दर्द के खून आ रहा है तो आपको ब्लैडर कैंसर हो सकता है
डॉक्टर से जानिए कि ऐसे में क्या करना चाहिए.
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यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.
रमित के पिता की उम्र 62 साल है. लॉकडाउन के दौरान उनके पिता को पेशाब में खून आने लगा. इसके अलावा पीठ के निचले हिस्से में दर्द रहने लगा. रमित और उनका परिवार डर गया. तुरंत डॉक्टर के पास लेकर गया. उन्हें लगा पेशाब का इन्फेक्शन हुआ होगा. पर जब टेस्ट हुए तो पता चला रमित के पिता को ब्लैडर कैंसर है. यानी पेशाब की थैली में कैंसर. इस तरह का कैंसर अमूमन यंग लोगों में नहीं पाया जाता. ये ज़्यादातर बुज़ुर्गों में होता है. कैंसर.org के मुताबिक, 10 में से 9 लोग जिन्हें ब्लैडर कैंसर होता है, उनकी उम्र 55 साल से ऊपर होती है. यानी हमारे जो माता-पिता है, ग्रैंडपेरेंट्स हैं, वो इसके रिस्क पर रहते हैं. तो चलिए आज जानते हैं कि ब्लैडर कैंसर क्या होता है और क्यों होता है.
क्या होता है ब्लैडर कैंसर?
ये हमें बता डॉक्टर विभोर ने.
डॉक्टर विभोर महेंद्रू, कैंसर स्पेशलिस्ट, सहारा हॉस्पिटल, लखनऊ
हमारे शरीर की गंदगी गुर्दों के रास्ते निकलती है. गुर्दों से दो नलियां उतरकर एक थैली में आती हैं. यहां पेशाब इकट्ठा होता है. इसको यूरिनरी ब्लैडर कहते हैं. जब इस यूरिनरी ब्लैडर में गांठ बनती है जो उसके आसपास के एरिया को डिस्ट्रॉय करती है. इसके छोटे-छोटे टुकड़े ब्लड या लिम्फ़ के रास्ते बाकी शरीर में फैलते हैं. इस गांठ को ब्लैडर कैंसर कहते हैं.
कारण
-स्मोकिंगः 90 प्रतिशत ब्लैडर कैंसर स्मोकिंग, तंबाकू की वजह से होते हैं
-इंडस्ट्री में केमिकल, डाई इस्तेमाल होते हैं. जो लोग इनके संपर्क में आते हैं उनमें ब्लैडर कैंसर होने की गुंजाइश बढ़ जाती है
-यूरिनरी ब्लैडर में इन्फेक्शन या पथरी फंसी हो
यूरिनरी ब्लैडर में गांठ बन जाती है, जो उसके आसपास के एरिया को डिस्ट्रॉय करती है
ब्लैडर कैंसर क्या होता है ये तो पता चल गया, अब जानते हैं कि इसके लक्षण क्या हैं. क्योंकि जितनी जल्दी शुरुआती लक्षणों का पता चल जाए. उतना अच्छा है. ताकि इलाज भी जल्दी शुरू हो जाए.
लक्षण
ब्लैडर कैंसर का एकमात्र लक्षण है पेशाब में खून आना. इसमें दर्द नहीं होता. दर्द होने पर डॉक्टर निश्चिंत रहते हैं कि कैंसर नहीं है. दर्द अमूमन पथरी या इन्फेक्शन के चलते होता है.
इलाज
इलाज निर्भर करता है कि ब्लैडर में कैंसर कितना अंदर तक है. पेशाब की थैली के कई लेयर्स होती हैं. आमतौर पर तीन. ब्लैडर कैंसर को दो में बांटा जाता है.
पहला सुपरफिशियल. इसमें कैंसर पहली लेयर तक ही घुसा होता है. इसमें दूरबीन के रास्ते से अंदर जाया जाता है और एक स्पेशल औज़ार से पहली लेयर को निकाल लिया जाता है, इस लेयर को जांच के लिए भेज दिया जाता है. अगर जांच में पता चल जाता है कि कैंसर सिर्फ़ पहली लेयर तक ही है तो ब्लैडर में हर हफ़्ते दवा डालकर कैंसर को कंट्रोल किया जाता है, इसमें सर्जरी या पेशाब की थैली को निकालने की ज़रूरत नहीं पड़ती.
दूसरा इनवेसिव कैंसर. इसमें कैंसर तीसरी लेयर या उससे भी ज्यादा फैल चुका होता है, ऐसे केस में दूरबीन के रास्ते कैंसर को निकाला जाता है. जांच होती है, जांच में अंदर तक घुसने की जानकारी मिलती है तो पूरा ब्लैडर निकालना पड़ता है, ये एक बड़ी सर्जरी है. इसमें ब्लैडर के साथ आसपास के लिम्फ़ नोड्स निकाले जाते हैं.
दूरबीन के रास्ते से अंदर जाया जाता है और एक स्पेशल औज़ार से पहली लेयर को निकाल लिया जाता है
ब्लैडर निकालने के बाद पेशाब का दूसरा रास्ता बनाना पड़ता है. कई बार आंतों का एक हिस्सा लेकर उसमें पेशाब की नलियां जोड़कर वापस उसे ब्लैडर की जगह जोड़ देते हैं. इससे एक नया ब्लैडर बन जाता है. इससे फ़ायदा ये है कि एक बार जब घाव भर जाते हैं तो कैंसर पेशेंट नॉर्मल रास्ते से पेशाब कर सकता है. जिनके में ये संभव नहीं होता उसमें एक आंत का हिस्सा लेकर उसमें पेशाब की नलियों को जोड़कर उसका एक मुंह खोलना पड़ता है पेट में. इसे स्टोमा कहते हैं. इसमें एक बैग लगा होता है, पेशाब उसी में जमा होता है. हर 4-5 घंटे में खाली करना पड़ता है. इसके साथ भी इंसान नॉर्मल लाइफ जी सकता है.
ब्लैडर कैंसर के लक्षणों पर ज़रूर नज़र रखिएगा.
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