The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • News
  • When the Innocent Are Punished, Who Pays? Supreme Court to Decide

निर्दोष को झूठे केस में 12 साल की सजा मिली तो मुआवजे के लिए पहुंचे सुप्रीम कोर्ट

सालों तक झूठे मामलों में जेल काटने वाले तीन निर्दोष अब सुप्रीम कोर्ट से अपनी बर्बाद ज़िंदगी का मुआवज़ा मांग रहे हैं.

Advertisement
कोर्ट
न्यायपालिका
pic
कनुप्रिया
28 अक्तूबर 2025 (Published: 06:16 PM IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

सौ अपराधी छूट जाएं लेकिन एक निर्दोष को सज़ा न हो. ये बात इसलिए दोहराई जाती है क्योंकि जब कोई इंसान बिना किसी जुर्म के 12 साल जेल में गुज़ार देता है, तो उसकी ज़िंदगी का एक हिस्सा उससे बेवजह छिन जाता है. ऐसे ही तीन अलग-अलग अपीलों पर सुप्रीम कोर्ट में अब एक अहम सुनवाई चल रही है. ये तीन लोग हैं जिन्हें अलग-अलग मामलों में सज़ा दी गई थी, यहां तक कि डेथ सेंटेंस भी मिला. लेकिन बाद में साबित हुआ कि तीनों निर्दोष थे.

पहले शख्स, 41 साल के रामकीरत मुनिलाल गौड़, महाराष्ट्र के रहने वाले हैं. उन्हें झूठे केस में फंसाकर जेल भेजा गया था. उन पर रेप और मर्डर जैसे गंभीर आरोप लगाए गए थे. उन्होंने 12 साल जेल में बिताए जिनमें से 6 साल वो मौत की सज़ा का इंतज़ार करते रहे. सुप्रीम कोर्ट ने जब उन्हें बरी किया तो कहा कि पुलिस की जांच ग़लत और पक्षपाती थी. इसके बाद रामकीरत ने याचिका दायर की कि जो अन्याय उनके साथ हुआ, उसके लिए राज्य को उन्हें मुआवज़ा देना चाहिए. गौड़ की याचिका में लिखा है-


“मेरी ज़िंदगी, मेरी इज़्ज़त और मेरा परिवार सब कुछ बर्बाद हो गया. मेरी पत्नी ने मुकदमे के खर्च के लिए ज़मीन और ज़ेवर गिरवी रख दिए. मेरे बच्चे स्कूल छोड़ने पर मजबूर हुए. राज्य ने मेरे साथ जो किया, उसके लिए उसे मुआवज़ा देना चाहिए.”

दूसरे व्यक्ति कत्तावेल्लई को तमिलनाडु में रेप और हत्या के केस में मौत की सज़ा दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने जब उन्हें बरी किया, तो ये भी कहा कि ऐसे मामलों में मुआवज़ा देने का कानून होना चाहिए.

तीसरे शख्स संजय को उत्तर प्रदेश में तीन साल की बच्ची के रेप और हत्या के केस में सज़ा मिली थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित ही नहीं कर पाया कि अपराध उसी ने किया है.

अब जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने तीनों राज्यों को नोटिस जारी किया है और भारत के अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी से कहा है कि वो मुआवज़े के मुद्दे पर कोर्ट की मदद करें. सुनवाई 24 नवंबर 2025 को होगी.

इन तीनों जनहित याचिकाओं में एक अहम सवाल उठाया गया है- अगर किसी को झूठे केस और ग़लत जांच की वजह से जेल में सालों तक सज़ा काटनी पड़े, तो क्या उसे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत अपनी ज़िंदगी और आज़ादी छिनने का मुआवज़ा नहीं मिलना चाहिए?

वीडियो: 30,000 लोगों को नौकरी से निकाल रहा Amazon, AI नौकरी खा गया?

Advertisement

Advertisement

()