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निठारी कांड के आरोपी सुरिंदर कोली को सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया

सुप्रीम कोर्ट ने निठारी कांड के आरोपी सुरिंदर कोली को आख़िरी केस में भी बरी कर दिया, अब वो जेल से बाहर आएगा.

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Nithari Kand Surinder Koli
सुरिंदर कोली अब एक आज़ाद इंसान है. इस पर 35 से ऊपर बच्चों के रेप और क़त्ल का आरोप है.
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कनुप्रिया
11 नवंबर 2025 (Updated: 11 नवंबर 2025, 03:06 PM IST)
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निठारी कांड वाला सुरिंदर कोली अब जेल की सलाखों से बाहर आ जाएगा. वो सुरिंदर कोली, जिसपर नोएडा के निठारी गांव से बच्चों, लड़कियों को गायब कर, उनके रेप और हत्या का आरोप था. सुप्रीम कोर्ट ने सुरिंदर कोली के खिलाफ चल रहे एक आखिरी केस में भी उसे बरी कर दिया है. मतलब ये कि अब वो जेल की सलाखों से निकल कर आम लोगों की तरह सड़कों पर घूमेगा.

सुरिंदर की एक क्यूरेटिव पिटीशन को सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर 2025 में स्वीकार कर लिया था. माने सुरिंदर की तरफ से कोर्ट को अपने ही फ़ैसले को दोबारा देखने की गुज़ारिश की गई. और अब 11 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ चुका है और कोर्ट ने अपने ही पुराने फैसले को पलटते हुए ये जजमेंट दिया है कि सुरिंदर कोली  जिस एक केस में सज़ा काट रहा था, उस केस को ही बर्खास्त किया जाए. असल में उसे 13 में से 12 केसों में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साल 2023 में रिहा कर दिया था. और एक केस के आधार पर उसे सज़ा-ए-मौत की जगह आजीवन कारावास की सजा मिली.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा था कि पुलिस और सीबीआई ने बहुत ही गंदे तरीके से जांच की. उनके पास कोई ठोस सबूत ही नहीं है जिससे कोर्ट में ये तय हो सके कि उन 19 बच्चों और लड़कियों का रेप, मर्डर सब कोली ने किया था. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बाक़ायदे जांच एजेंसियों, और उत्तर प्रदेश पुलिस को जजमेंट पास करते वक़्त लताड़ा था क्योंकि हाईकोर्ट का मानना था कि उनकी खराब, लापरवाह इन्वेस्टिगेशन के चक्कर में ही सुरिंदर कोली और मोनिंदर सिंह पंढेर के खिलाफ कोई ठोस केस बनता नज़र नहीं आता.

कोट, इलाहाबाद हाईकोर्ट-

यह पूरा मामला जनता के भरोसे से की गई एक बड़ी धोखाधड़ी जैसा है. मतलब- जो सरकारी एजेंसियां (जैसे पुलिस) जनता की सुरक्षा के लिए ज़िम्मेदार हैं, वही अपने काम में बुरी तरह नाकाम रहीं. पुलिस की जांच बहुत ख़राब तरीके से की गई थी. सबूत इकट्ठा करने के जो बुनियादी नियम होते हैं, उन्हें खुलेआम तोड़ दिया गया था. जब सारे सबूतों को ध्यान से हमने देखा, तो पाया कि-
- न्याय का जो अधिकार हर आरोपी को संविधान के अनुच्छेद 21  के तहत मिलता है (यानी 'न्यायपूर्ण सुनवाई का अधिकार'), उस कसौटी पर ये केस टिकता ही नहीं है.
- प्रॉसिक्यूशन (यानि सरकार की तरफ़ से केस लड़ने वाले) ये साबित नहीं कर पाए कि मोनिंदर सिंह पंढेर और सुरेंद्र कोली वाकई दोषी हैं. उनके ख़िलाफ़ जो सबूत थे, वो इतने मज़बूत नहीं थे कि अदालत 'बिना किसी शक के' उन्हें गुनाहगार मान ले.

साल 2025 में केस फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णय के खिलाफ अपील हुई. कुल 14 अपीलें सुप्रीम कोर्ट में फ़ाइल हुईं लेकिन टिकी नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2025 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के ही निर्णय को फाइनल माना. इस तरह से सुरिंदर कोली के ऊपर चल रहे 13 में से 12 केसों में वो रिहा कर दिया गया. एक केस बचा जिसमें विक्टिम 15 साल की एक बच्ची थी. उसकी सुनवाई अलग से सुप्रीम कोर्ट में चली थी और इसमें सुरिंदर कोली को पहले दोषी भी पाया गया था. हालांकि सज़ा-ए-मौत की जगह उसे आजीवन कारावास की सजा मिली. अब सुरिंदर कोली के वकील का कहना है कि जब सारे केसों में हाईकोर्ट और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी उसे दोषी नहीं पाया, तो उसके ऊपर इस एक केस को भी बनाये रखने का कोई लॉजिक नहीं है. क्यूरेटिव पिटीशन में सुरिंदर कोली का कहना है कि जिन-जिन तथ्यों, एविडेंस को देख कर, आधार मान कर उस पर सारे केस टिकाये गए थे, जब सुप्रीम कोर्ट पहले ही उन आधारों को खारिज कर चुका है, तब इस इस एक केस के ऊपर वही तथ्य, एविडेंस नहीं लगाए जा सकते. और इसी वजह से उसे इस केस से भी रिहाई मिलनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने ना सिर्फ पिटीशन को स्वीकारा बल्कि ये भी कहा कि सुरिंदर कोली के आर्ग्युमेंट में लॉजिक है.

CJI बी. आर. गवई, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विक्रम नाथ की बेंच ने कहा कि-

चूंकि कोली को इन्हीं तथ्यों और लगभग एक जैसे सबूतों वाले 12 दूसरे मामलों में बरी किया जा चुका है, इसलिए जिस केस में अभी चुनौती दी जा रही है, उसमें भी उसे रिहा किया जाना चाहिए.

CJI गवई ने सीबीआई के तरफ से लड़ रहे सीनियर वकील राजा ठाकरे से कहा कि-

'सोचिए, ये कितना अजीब होगा कि एक ही तरह के तथ्यों पर आधारित बाकी मामलों में उसे बरी कर दिया गया, और इस कोर्ट ने उन बरी किए जाने के फैसलों को भी सही ठहराया- लेकिन उन्हीं तथ्यों पर आधारित इस एक केस में उसकी सज़ा बरक़रार रखी जाए. क्या ये न्याय का मज़ाक (travesty of justice) नहीं होगा?'

इस पर राजा ठाकरे ने कहा कि न्यायपूर्ण ये नहीं होगा कि सुरिंदर कोली जैसा शख्स एक आज़ाद इंसान की तरह सोसायटी में लौट जाए. एक ऐसा इंसान जो समाज के लिए, लोगों के लिए घातक है. एक ऐसा इंसान जिसने खुद अपने मुंह से स्वीकारा है कि उसने लोगों का रेप किया है, क़त्ल किया है.

लेकिन जस्टिस सूर्यकांत का साफ़ कहना था कि कानूनन सबूतों का फूलप्रूफ़ होना ज़रूरी है. एविडेंस के तौर पर खाली किचन नाइफ मिला वो भी घर के पीछे वाले ड्रेनेज से. ये और सुरिंदर की गवाहीअपने आप में किसी  कन्फ्यूज़न के बगैर ये साबित नहीं कर पाता कि हत्याओं के पीछे सुरिंदर कोली का ही हाथ था.

सुप्रीम कोर्ट की बेंच का लॉजिक ये था कि जब सुरिंदर कोली के खिलाफ सारे केस में एक ही तथ्य पेश किये गए थे, सारे सबूत भी एक थे और उन सबूतों को सही न मानते हुए इलाहबाद हाईकोर्ट ने उसे 13 में से 12 केस में बरी कर दिया है, तब उन्हीं तथ्यों और सबूतों का आधार लेते हुए सुप्रीम कोर्ट उसे दोषी साबित नहीं कर सकता. और इसी आधार पर उसके खिलाफ एक आखिरी केस में भी उसे बरी कर दिया गया और अब निठारी का आरोपी एक आज़ाद इंसान है.


 

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