'औरतों से रोज ऑफिस में मिलते... ' प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिला पत्रकारों की 'नो-एंट्री' पर बोला तालिबान
तालिबान सरकार के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी की दिल्ली में हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिला पत्रकारों की 'नो-एंट्री' पर जमकर विवाद हो रहा है. राहुल और प्रियंका गांधी ने इसे महिलाओं का अपमान बताते हुए केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. अब इस पर तालिबान के प्रवक्ता की सफाई आई है.

अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी की नई दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई. लेकिन इस कार्यक्रम में किसी भी महिला पत्रकार को शामिल होने की मंजूरी नहीं मिली. आलोचनाओं का सिलसिला शुरू हुआ, तो तालिबान के प्रवक्ता की इस पर सफाई आई. उन्होंने कहा कि यह सब अनजाने में हुआ. उधर, विपक्ष की तीखी आलोचनाओं के बाद भारत सरकार ने साफ किया कि अमीर खान मुत्ताकी की प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनकी कोई भूमिका नहीं थी.
अफगानी प्रवक्ता ने क्या कहा?तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने शनिवार, 11 अक्टूबर को CNN-न्यूज18 को बताया कि महिलाओं के खिलाफ उनकी कोई भेदभाव वाली नीति नहीं है. उन्होंने कहा,
‘पास’ की संख्या सीमित थी. कुछ को मिले, कुछ को नहीं. यह एक तकनीकी मामला था.
सुहैल शाहीन, इस वक्त अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में हैं. न्यूज 18 से बात करते हुए उन्होंने भरोसा दिलाया कि इस मामले को वे अफगानी विदेश मंत्री के सामने रखेंगे. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अमीर खान मुत्ताकी अक्सर अपने ऑफिस में महिला पत्रकारों से मिलते हैं.
मुमकिन है कि उनका इशारा गैर-अफगान महिला पत्रकारों की तरफ था. यानी वे महिलाएं जो अफगानिस्तान की नहीं हैं और दूसरे देश की रहने वाली हैं. ध्यान देने वाली बात यह है कि ये महिलाएं भी तालिबानी अधिकारियों से तभी मिल पाती हैं, जब उन्हें एक सख्त ड्रेस कोड का पालन करना पड़ता है.
शाहीन ने बताया, “मुत्ताकी काबुल में अपने दफ्तर में रेगुलर महिलाओं से मिलते हैं. मैं खुद महिला पत्रकारों के साथ इंटरव्यू करता हूं.” तालिबानी प्रवक्ता ने आगे कहा,
ऐसा नहीं है कि जानबूझकर महिलाओं को प्रेस ब्रीफिंग से बाहर रखा गया. कुछ पुरुष पत्रकार भी बाहर थे, जिन्हें ब्रीफिंग में हिस्सा लेने के लिए पास नहीं मिल पाए.
उन्होंने बताया कि आने वाले समय में भारत यात्रा के दौरान महिला पत्रकारों को भी प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल किया जाएगा, बशर्ते दोनों डेलीगेशन के बीच कोऑर्डिनेशन हो. साथ ही किसी भी समस्या से बचने के लिए पत्रकार पहले से ही बातचीत कर लें.
राहुल-प्रियंका गांधी ने सरकार पर साधा निशानाइस घटना पर महिला पत्रकारों समेत कई विपक्षी नेताओं ने सवाल उठाए. कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने ‘X’ पर पोस्ट करते हुए सरकार पर निशाना साधा. उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को टैग करते हुए लिखा,
तालिबान के प्रतिनिधि की प्रेस कॉन्फ्रेंस से महिला पत्रकारों को हटाए जाने पर अपनी स्थिति साफ करें. अगर महिलाओं के अधिकारों को मान्यता देना सिर्फ एक चुनाव से दूसरे चुनाव तक अपनी सुविधानुसार दिखावा नहीं है, तो फिर भारत की सबसे सक्षम कुछ महिलाओं का अपमान हमारे देश में कैसे हो सकता है, जबकि महिलाएं ही इस देश की रीढ़ और गौरव हैं.
इस पोस्ट को शेयर करते हुए लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने लिखा,
मोदी जी, जब आप महिला पत्रकारों को सार्वजनिक मंचों से बाहर रखने की अनुमति देते हैं, तो आप भारत की हर महिला को यह बता रहे होते हैं कि आप उनके साथ खड़े होने के लिए बहुत कमजोर हैं. हमारे देश में महिलाओं को हर क्षेत्र में समान भागीदारी का अधिकार है. इस तरह के भेदभाव पर आपकी चुप्पी नारी शक्ति पर आपके नारों के खोखलेपन की पोल खोलती है.
वहीं, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा ने भी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा, “सरकार ने तालिबान के मंत्री को महिला पत्रकारों को प्रेस कॉन्फ्रेंस से बाहर रखने की अनुमति देकर हर भारतीय महिला का अपमान किया है.”
सरकार ने क्या कहा?तीखी आलोचना के बाद भारत सरकार ने भी अपना पक्ष रखा. आधिकारिक सूत्रों ने शनिवार, 11 अक्टूबर को इंडिया टुडे को बताया,
अफगान विदेश मंत्री की प्रेस ब्रीफिंग में विदेश मंत्रालय की कोई भागीदारी नहीं थी.
बताते चलें, अमीर खान मुत्ताकी अफगानिस्तान में तालिबान सरकार (जो जनता द्वारा नहीं चुनी गई है) का हिस्सा हैं. ये ग्रुप (तालिबान) महिलाओं पर लगाए गए प्रतिबंधों के लिए जाना जाता है, जो उन्हें काम करने से रोकता है. तालिबान का मानवाधिकार रिकॉर्ड और अफगानिस्तान में आतंकवादी ग्रुप्स को सुरक्षित पनाह मिलने की संभावना. ये कुछ ऐसे कारक हैं, जिनकी वजह से भारत इस ग्रुप के साथ अपने संबंधों को लेकर सतर्कता बरतता है.
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तालिबान प्रशासन ने महिलाओं और लड़कियों के उन अधिकारों को बड़े पैमाने पर खत्म किया है, जो हाल के दशकों में निर्वाचित सरकारों ने उन्हें दिए थे. संयुक्त राष्ट्र (UN) ने भी कहा है कि अफगान महिलाओं को वर्कफोर्स में शामिल होने के मौकों से रोका जा रहा है. साथ ही, वो पुरुष रिश्तेदारों के बिना कई सेवाओं तक पहुंचने में असमर्थ हैं. इसके अलावा, लड़कियों को शिक्षा के अधिकार से भी वंचित किया जा रहा है.
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