सुप्रीम कोर्ट ने लिया सड़क हादसों पर सुओ-मोटो संज्ञान, टोल तो ले रहे हैं लेकिन सड़कें मौत बन चुकी हैं
राजस्थान और तेलंगाना में हुए दो भयानक सड़क हादसों में 40 लोगों की मौत के बाद सुप्रीम कोर्ट ने खुद संज्ञान लिया और सरकार से जवाब मांगा कि खराब सड़कों और मनमाने ढंग से बने ढाबों पर कार्रवाई क्यों न हो.

नवंबर 2025 की शुरुआत में ही देश के दो अलग-अलग राज्य में ऐसे रोड एक्सीडेंट्स हुए, जिसने 40 लोगों की जान ले ली. पहला, राजस्थान में. 2 नवंबर की रात- अंधेरे में दिल्ली-अजमेर हाइवे पर एक डम्पर ट्रक खड़ा था. पीछे से एक खचाखच भरे टेंपो को ट्रक नहीं दिखा. ज़ोरदार टक्कर हुई और 18 लोगों की जान चली गयी. इसके बाद 3 नवंबर को नेशनल हाईवे-163, जो तेलंगाना के हैदराबाद से शुरू होकर छत्तीसगढ़ के भोपालपटनम तक जाता है. वहां एक सरकारी बस और ट्रक की टक्कर हुई जिसमें 20 लोग मारे गए. तेलंगाना के लोगों का कहना है कि उस सड़क पर इतने हादसे होते हैं कि उसका नामकरण कर दिया गया है- डेथ कॉरिडोर.
इन हादसे वीभत्स थे, इतने डरावने कि इसने आम जनता के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट को भी चिंता में डाल दिया. 10 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुओ-मोटो कॉग्नीज़न्स यानी स्वतः संज्ञान लिया. साथ ही ये भी तय हुआ कि सुनवाई ठीक अगले दिन यानी 11 तारीख को होगी, चूंकि मामले पर जल्दी और गंभीरता से काम करने की ज़रुरत है.
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने बहुत सारे रिपोर्ट्स खंगाली. बीते कुछ सालों में हुए हादसों की भी पड़ताल हुई. रिपोर्ट्स को देख कर ये समझ आ रहा था कि हादसों के पीछे मूलतः तीन कारण हैं. पहला- रोड की ख़राब स्थिति, दूसरा- रोड पर सही तरीके से सेफ्टी साइन्स का न लगा होना, और तीसरा अनरेग्युलेटेड रोड-साइड एक्टिविटी. यानी ऐसे कामों का सड़क पर बिना रोक-टोक के होना जिनकी मंज़ूरी नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई कर रहे बेंच में थे जस्टिस जे.के माहेश्वरी और जस्टिस विजय बिश्नोई. जब उन्होंने इन दोनों हाइवे की हालत का मुआयना किया तब पता चला कि रोड की हालत बहुत ही खराब है. इस पर बेंच ने कहा, ‘ये कहां से न्यायपूर्ण है कि यात्रियों से ऐसे घटाया रोड पर चलने के लिए टोल तो लिए जाते हैं, लेकिन जिन सड़कों के लिए वो टोल भरते हैं, उसकी हालत में कोई सुधार नहीं होती, उससे गुज़रते हुए वो मौत के घाट उतारते हैं.’
कोर्ट ने हाइवे के ऊपर बिना किसी रोक के सैकड़ों ढाबे खोल दिए जाने के ऊपर भी ऐतराज़ जताया. उनका साफ़ कहना था कि इस तरह धड़ल्ले से जो हाइवे खुलते गए हैं, इनका ही हश्र है कि रात को चलने वाले ट्रक बिना किसी सोच-विचार के कहीं भी ट्रक पार्क कर देते हैं.
इसी के साथ कोर्ट ने NHAI (नैशनल हाइवेज़ ऑथोरिटी इंडिया) और मिनिस्ट्री ऑफ़ रोड ट्रांसपोर्ट को ये आदेश दिया कि वो हाइवे पर सारे ऐसे ढाबों की पड़ताल करें जिसे ऐसी जगह बना दिया गया है जहां ढाबों का होना प्रतिबंधित है. दूसरा, कि मिनिस्ट्री और NHAI मिल कर ये जांच करें कि हाइवे बनाने के लिए जितने प्राइवेट कम्पनी को ठेका दिया गया था, क्या उन्होंने सारा काम नियमानुसार किया है? और आखिरी, गृह मंत्रालय से भी कहा है कि सुनिश्चित करें कि इस समस्या से निपटने के लिए सारे मंत्रालय आपस में मिल कर काम करें.
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