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ट्राइबल महिलाओं को जायदाद में हक़ नहीं मिल सकता: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आदिवासी महिलाओं को जमीन या संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलेगा.

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सुप्रीम कोर्ट
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कनुप्रिया
22 अक्तूबर 2025 (Published: 03:03 PM IST)
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इस देश में जितनी विविधता है उसी के हिसाब से कानून भी हैं. अलग-अलग धर्म और संस्कृति के लोगों की विविधता को ध्यान में रखते हुए कानून बनाए गए हैं ताकि सबकी अस्मिता और आइडेंटिटी बची रहे. लेकिन एक प्रॉब्लम है. कुछ कानून ऐसे हैं जो कल्चर की आड़ में रिग्रेसिव हैं. जैसे बहुत से ट्राइबल लॉज़ में महिलाओं को प्रॉपर्टी का हक अब तक नहीं मिला है. और अंत में सवाल ये बच जाता है कि हमारे संविधान में सभी को समान हक मिलने वाली बात को और ठीक इसके उलट बात कहने वाले पर्सनल लॉज़ को बैलेंस कैसे किया जाए.

ऐसा ही एक मामला 22 अक्टूबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा. बात चल रही थी हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के 2015 के एक फैसले की. इस फैसले में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा था कि देश के आजाद होने के बाद भी हिमाचल के कुछ ट्राइब्स में महिलाओं को प्रॉपर्टी का हक नहीं मिलता. यानी बंटवारे के बाद सारी प्रॉपर्टी घर के बेटों को दे दी जाती है और लड़कियों को कुछ नहीं मिलता. इसलिए कोर्ट ने कहा कि सोशल इक्वलिटी को मेंटेन करने के लिए ज़रूरी है कि ट्राइबल महिलाओं को भी हिन्दू सक्सेशन एक्ट के तहत प्रॉपर्टी में पुरुषों के जैसे समान अधिकार मिले. जैसा कि हिन्दू सक्सेशन एक्ट में है.

अब हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के इसी फैसले को चैलेंज करते हुए एक अपील सुप्रीम कोर्ट में पहुंची. सुप्रीम कोर्ट ने दो टूक में कहा:

स्केड्यूल्ड ट्राइब्स यानी अनुसूचित जनजाति के कानून अलग होते हैं और इसीलिए उन्हें हिन्दू एक्ट्स के तहत नहीं चलना होता.

हिन्दू सक्सेशन एक्ट के सेक्शन 2 में साफ़ लिखा है कि इस एक्ट का कोई भी प्रावधान अनुसूचित जनजातियों पर अप्लाई नहीं होगा.

इसलिए ऐसा करने के लिए पूरे हिन्दू सक्सेशन एक्ट में बदलाव करना होगा जो अभी संभव नहीं है. दूसरा कि इस देश में अलग-अलग धर्मों और संस्कृतियों से आने वाले लोग अलग-अलग कानून से गवर्न किए जाते हैं और उनके अपने कानून का महत्व है. उन्हें अधिकार है.

लेकिन सुप्रीम कोर्ट जो कहे, उसके बाद भी एक सवाल मेरे लिए आपके लिए है. 2025 के 26 नवंबर को हमारे संविधान के 76 साल पूरे हो जाएंगे. और संविधान की खास बात ये है कि उसने इंसानों को उनकी जाति, धर्म, जेंडर, भाषा से परे देखा है. अब जब संविधान ये कहता है तो कुछ कम्युनिटीज में महिलाओं को अभी तक बेसिक राइट्स न मिलने को आप कैसे देखते हैं. 

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