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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: अब वकीलों को आसानी से समन नहीं कर सकेंगी जांच एजेंसियां

सुप्रीम कोर्ट ने ED और CBI जैसी जांच एजेंसियों को निर्देश दिए हैं कि वे आरोपी का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों को बिना किसी ठोस कारण और वरिष्ठ अधिकारी की अनुमति के समन न भेजें.

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Supreme Court ED
सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों को धड़ल्ले से सामान भेजने वाली बात पर स्वतः संज्ञान लिया
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कनुप्रिया
31 अक्तूबर 2025 (Updated: 31 अक्तूबर 2025, 05:02 PM IST)
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सुप्रीम कोर्ट ने एक बेहद जरूरी मामले पर खुद ध्यान देते हुए उस पर विचार किया है. यह कदम इसलिए उठाया गया क्योंकि पिछले कुछ सालों में एक रिवाज नज़र आ रहा था. क्या होता था कि अपराध से जुड़े मामलों में जो वकील आरोपी का प्रतिनिधित्व कर रहे होते थे, उन्हें सरकारी जाँच एजेंसियां जैसे ED और CBI अचानक बुलावा पत्र भेज देती थीं.

जांच एजेंसियां ऐसा इसलिए करती थीं ताकि वे उन वकीलों से केस के अंदर की गोपनीय जानकारी निकाल सकें. इससे वकीलों पर दबाव बनता था और उनके लिए अपने मुवक्किल का बचाव करना मुश्किल हो जाता था. लेकिन, क्या यह कानूनन सही माना जाता है?

नहीं. ऐसा इसलिए भी क्योंकि हमारी कानूनी व्यवस्था का सबसे बड़ा सिद्धांत है: "जब तक जुर्म साबित न हो जाए, तब तक निर्दोष मानना." कानूनी रूप से, हर नागरिक को यह अधिकार है कि उसे अपने बचाव के लिए एक वकील मिले. किसी भी अंतिम फैसले पर पहुंचने से पहले, आरोपी को अपनी बात रखने और सुने जाने का पूरा मौका दिया जाना चाहिए. इसके अलावा, एक वकील और क्लाइंट के बीच एक खास और भरोसे का रिश्ता होता है, जिसे 'वकील-मुवक्किल विशेषाधिकार' कहते हैं. इसका मतलब है कि क्लाइंट की सारी बातें वकील के पास गोपनीय और सुरक्षित हैं. लेकिन जब सरकारी जांच एजेंसी वकील को केस के मामले में पूछ-ताछ के लिए बुलावा भेज देती हैं, तब उनसे गोपनीय जानकारी बताने के लिए मजबूर किया जाता है, और यहीं 'कानून की उचित प्रक्रिया' खतरे में पड़ जाती है.

सुप्रीम कोर्ट ने इस खतरे को भांपते हुए खुद संज्ञान लिया और अब नए दिशा-निर्देश दिए हैं. कोर्ट ने साफ किया है कि पुलिस या जाँच एजेंसियां आरोपी के वकील को केस की जानकारी पूछने या परेशान करने के लिए सीधे बुलावा पत्र नहीं भेज सकतीं. वकील और क्लाइंट की बातें पूरी तरह गोपनीय रहेंगी, क्योंकि ये इंसाफ दिलाने के लिए बहुत जरूरी है. अगर वकील को बुलावा भेजना बहुत जरूरी है, और वो कानून के किसी अपवाद (एक्सेप्शन) के तहत आता है यानी स्पेशल केस में, तो भी पुलिस को अपने से बड़े अफसर यानी SP रैंक से पहले लिखित में मंजूरी लेनी होगी और बुलावा भेजने का सही कारण बताना होगा. वकील के पास रखे डिजिटल सामान जैसे फ़ोन या कागजात को जांच एजेंसी सीधे नहीं ले सकती. अगर चाहिए भी, तो पहले कोर्ट को बताना होगा, और कोर्ट की निगरानी में ही डिवाइस की जांच होगी, ताकि गोपनीयता भंग न हो.

ये पूरा मामला तब शुरू हुआ जब ED ने दो बड़े वकीलों अरविंद दातार और प्रताप वेणुगोपाल को समन भेज दिया. वकीलों की संस्थाओं ने जोरदार विरोध किया, जिसके बाद ED को अपना समन वापस लेना पड़ा. बाद में, जब गुजरात पुलिस ने भी एक और वकील को समन भेजा, तो सुप्रीम कोर्ट को लगा कि ये गलत हो रहा है और इससे इंसाफ की प्रक्रिया कमजोर हो रही है. इसलिए, कोर्ट ने खुद इस मामले को उठाया और कानून की उचित प्रक्रिया को बचाने के लिए ये कड़े और जरूरी दिशा-निर्देश जारी कर दिए.

 

 

 

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