The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • News
  • Shahid Azmi Murder Case Bombay High Court Dismisses Plea Of Transfer

शाहिद आजमी मर्डर केस की सुनवाई पर लगी रोक हटी, जेल में डाले गए लोगों को छुड़वाते थे!

शाहिद खुद लगभग 7 साल जेल में रहे. वो आतंकी मामलों में आरोपी बनाए गए लोगों के केस लड़ते थे.

Advertisement
Bombay High Court Lifts Stay On Shahid Azmi Murder Case
शाहिद आज़मी (फाइल फोटो: विकिपीडिया)
pic
सुरभि गुप्ता
13 फ़रवरी 2023 (Updated: 13 फ़रवरी 2023, 10:52 PM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) ने एडवोकेट शाहिद आज़मी की हत्या के मुकदमे को ट्रांसफर करने की याचिका हाल ही में खारिज कर दी. ये याचिका शाहिद आज़मी (Shahid Azmi) की हत्या के मामले में एक आरोपी हसमुख सोलंकी ने दायर की थी. कोर्ट ने मुकदमे पर लगाई रोक भी हटा दी है.

कोर्ट ने क्या कहा?

इस मामले में आरोपी हसमुख सोलंकी ने मुकदमे को दूसरे कोर्ट में ट्रांसफर करने की मांग की थी. हसमुख सोलंकी ने पक्षपात किए जाने का आरोप लगाया था. याचिका पर कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड में मौजूद मैटेरियल ये नतीजा निकालने के लिए काफी नहीं है कि ट्रायल कोर्ट आवदेक के खिलाफ पक्षपाती है.

इंडिया टुडे की विद्या की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस प्रकाश डी. नाइक ने आरोपी हसमुख सोलंकी की याचिका को खारिज करते हुए कहा,

मुझे इस नतीजे पर आने का कोई कारण नहीं मिला कि जज आवेदक (सोलंकी) के खिलाफ पक्षपाती रहे. आवेदक के लिए यह आशंका करने की कोई वजह नहीं है कि जज के सामने उसकी निष्पक्ष सुनवाई नहीं हो पाएगी, इसलिए कार्यवाही को किसी दूसरे सत्र जज को ट्रांसफर करने का कोई मामला नहीं बनता है.

13 साल पहले हुई थी हत्या

शाहिद आज़मी की 13 साल पहले हत्या हुई थी. 11 फरवरी, 2010 को 33 साल के शाहिद आज़मी को उनके कुर्ला स्थित ऑफिस में गोली मारी गई थी. शाहिद आज़मी की हत्या के मामले में चार आरोपी हैं. विनोद विचारे, पिंटू ढगले, देवेंद्र जगताप और हसमुख सोलंकी. रिपोर्ट्स के मुताबिक, शुरुआत में आरोप 5 लोगों के खिलाफ थे, लेकिन गैंगस्टर संतोष शेट्टी को अक्टूबर 2014 में छोड़ दिया गया था.

कौन थे शाहिद आज़मी?

वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता थे शाहिद आज़मी. शाहिद आज़मी को ऐसे लोगों का कानूनी प्रतिनिधित्व करने के लिए जाना जाता था, जिन्हें उनके मुताबिक आतंकवादी मामलों में गलत फंसाया जाता था. शाहिद आज़मी ने खुद लगभग 7 साल तिहाड़ जेल में गुजारे थे. उन्हें टेररिस्ट एंड डिसरप्टिव एक्टीविटीज प्रिवेंशन एक्ट के तहत राजनेताओं की हत्या में कथित संलिप्तता पर गिरफ्तार किया गया था. लेकिन बाद में शाहिद आज़मी को सुप्रीम कोर्ट ने बरी कर दिया था. जेल में रहते हुए, उन्होंने LLB की पढ़ाई शुरू की थी और बरी होने के बाद आतंक के मामलों में आरोपी बनाए गए कई लोगों का केस लड़ा.

आज़मी ने जुलाई, 2006 के ट्रेन विस्फोटों के आरोपी का कोर्ट में प्रतिनिधित्व किया था. उन्होंने महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट (मकोका) के एक प्रावधान की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. 26/11 मुकदमे में आज़मी ने फहीम अंसारी और सबाउद्दीन अहमद का केस लड़ा. इन दोनों पर आतंकवादियों द्वारा इस्तेमाल किए गए नक्शे को तैयार करने का आरोप था. शाहिद आज़मी की दलीलों के कारण 2010 में दोनों आरोपियों को बरी कर दिया गया था.

बता दें कि शाहिद आज़मी की बायोग्राफी के तौर पर 'शाहिद' नाम की फिल्म भी बनाई गई थी. इस फिल्म को हंसल मेहता ने डायरेक्ट किया था.

वीडियो: दी लल्लनटॉप शो: क्या बीजेपी नेता रहीं विक्टोरिया गौरी को नियमों के खिलाफ जाकर हाईकोर्ट में जज बनाया गया?

Advertisement