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US ड्रोन ने बिगाड़ी अफगान-पाक सुलह की कोशिश! भारत को बेवजह विलन बना रहा पाकिस्तान

Pakistan ने अनजाने में यह मान लिया कि वह US को अपनी जमीन का इस्तेमाल अफगानिस्तान पर Drone Attacks के लिए करने दे रहा है. यही वजह है कि Afghanistan-Pakistan के बीच शांति वार्ता फेल हो रही है. और पाकिस्तान इसका दोष भारत पर डाल रहा है.

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अमेरिका के ड्रोन पाकिस्तान में मौजूद बेस का इस्तेमाल कर अफगानिस्तान में हमले करते हैं (PHOTO-AP)
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मानस राज
30 अक्तूबर 2025 (Updated: 30 अक्तूबर 2025, 03:21 PM IST)
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बॉर्डर पर कई बार हुई झड़प, कई पाकिस्तानी सैनिकों की मौत, काबुल में एयरस्ट्राइक्स (Airstrikes in Afghanistan); इन सभी घटनाओं की लंबी श्रृंखला के बाद आखिरकार अफगानिस्तान-पाकिस्तान के बीच शांति कायम करने को लेकर बातचीत शुरू हो गई है. इससे पहले तुर्किए (Turkey Peace Talks) में हुई बातचीत बेनतीजा रही थी. आदत से मजबूर पाकिस्तान ने फेल हुई इस बातचीत के लिए भी भारत को जिम्मेदार ठहरा दिया था. लेकिन अब एक रिपोर्ट सामने आई है जिसमें इस बातचीत के फेल होने का असली कारण बताया गया है. कहा गया है कि बातचीत रुकने का कारण भारत था ही नहीं. इसका मुख्य कारण अफगानिस्तान में हमला करने वाले अमेरिकी ड्रोन्स (US Drones striking Afghanistan) हैं. अफगानिस्तान का कहना है कि पाकिस्तान की जमीन का इस्तेमाल कर अमेरिकी ड्रोन उन पर बम गिरा रहे हैं. इस्लामाबाद इन्हें रोकने में पूरी तरह बेबस है.

इस मुद्दे पर अफगानी समाचार एजेंसी TOLO न्यूज ने 28 अक्टूबर को एक रिपोर्ट छापी. रिपोर्ट के अनुसार, TOLO न्यूज से बातचीत करने वाले सूत्रों ने कहा कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान के खिलाफ हमलों के लिए अफगान जमीन का इस्तेमाल रोकने के लिए तभी तैयार होगा, जब इस्लामाबाद अफगान एयरस्पेस का उल्लंघन करना बंद कर दे. साथ ही वो अमेरिकी ड्रोन उड़ानों को रोके. लेकिन पाकिस्तान ने यह शर्त मानने से इनकार कर दिया.

रिपोर्ट के अनुसार, अफगान-पाक बातचीत में कई फाइनल क्लॉज पर असहमति सामने आई है. ये बातचीत पाकिस्तानी डेलिगेशन के गैर-कूटनीतिक व्यवहार के कारण टूट गई है. इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान ने पाकिस्तान के खिलाफ अफगान जमीन का इस्तेमाल रोकने की अपनी कमिटमेंट दोहराई. लेकिन बदले में इस्लामाबाद से अफगान एयरस्पेस का उल्लंघन बंद करने और अमेरिकी ड्रोन उड़ानों को रोकने के लिए कहा गया. इस मामले पर TOLO न्यूज से बात करते हुए फ्रांस में अफगानिस्तान के पूर्व राजदूत उमर समद ने कहा 

यह पूरी तरह से साफ नहीं है कि दोनों पक्षों के इरादे क्या थे. क्या पाकिस्तान सच में प्रैक्टिकल समाधान चाहता था, या वह इस मौके का इस्तेमाल यह दिखाने के लिए कर रहा था कि वह मुद्दों को हल करना चाहता है?

दूसरी ओर, पाकिस्तानी डेलिगेशन ने भी कथित तौर पर ऐसी मांगें रखीं जो दोनों पक्षों को मंजूर नहीं थीं. इस्लामाबाद ने इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान से तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) को आधिकारिक तौर पर एक आतंकवादी संगठन घोषित करने की मांगी की. अफगानिस्तान की राजधानी काबुल के एक पत्रकार तमीम बाहिस ने भी एक्स पर एक पोस्ट कर अमेरिकी ड्रोन्स के मुद्दे का जिक्र किया है. तमीम ने लिखा

अफगानी न्यूज चैनलों के अनुसार, पाकिस्तान ने एक 'विदेशी देश' के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर करने की बात स्वीकार की है, जो अफगानिस्तान के अंदर निगरानी और संभावित हमलों के लिए अपने हवाई क्षेत्र में ड्रोन्स ऑपरेट करने की अनुमति देता है.

TOLO न्यूज ने सूत्रों के हवाले से बताया कि पाकिस्तानी डेलिगेशन ने शुरू में कुछ शर्तें मान ली थीं, लेकिन एक फोन कॉल के बाद उन्होंने अपना रुख बदल लिया. यह फोन कॉल शायद पाकिस्तान के हाई कमांड को किया गया था, जिसमें कहा गया कि उनका US ड्रोन पर कोई कंट्रोल नहीं है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि कतर और तुर्किए के मीडिएटर भी पाकिस्तानी डेलिगेशन के बर्ताव से हैरान थे.

यही वह फोन कॉल था जिसने पाकिस्तानियों को ड्रोन हमलों पर US के साथ अपने एग्रीमेंट का एहसास कराया और उन्हें अपना स्टैंड बदलने पर मजबूर किया. लेकिन इस्लामाबाद इस बात को सार्वजनिक तौर पर कबूल करता तो उसकी थू-थू होती. इसलिए ख्वाजा आसिफ ने नाकाम बातचीत के लिए तालिबान लीडरशिप और भारत को दोषी ठहरा दिया. ख्वाजा आसिफ ने तालिबान को धमकाते हुए कहा था

मैं उन्हें यकीन दिलाता हूं कि पाकिस्तान को तालिबान सरकार को पूरी तरह खत्म करने, और उन्हें वापस गुफाओं में छिपने के लिए मजबूर करने के लिए अपने पूरे हथियारों का एक छोटा सा हिस्सा भी इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं है. अगर वे ऐसा चाहते हैं, तो तोरा-बोरा में उनकी हार के सीन का दोबारा होना, जिसमें वे दुम दबाकर भागेंगे, इस इलाके के लोगों के लिए देखने लायक नजारा होगा.

सितंबर में शुरू हुई थी लड़ाई

पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच सितंबर की शुरुआत में युद्ध छिड़ गया था. ये जंग तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के पाकिस्तानी सेना पर बढ़ते हमलों के बाद हिंसक झड़पों से शुरू हुईं. इसके जवाब में, पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के काबुल और कंधार में हमले किए. ड्रोन अटैक और JF-17 फाइटर जेट्स की बमबारी में दोनों तरफ 200 से अधिक लोग मारे गए. हालांकि, लोगों को इसमें एक विडंबना दिखी. पाकिस्तान ने अनजाने में यह मान लिया कि वह अमेरिका को अपनी जमीन का इस्तेमाल ड्रोन हमले के लिए करने दे रहा है. अपनी खराब अर्थव्यवस्था के कारण, पाकिस्तान अपने सैनिकों को किराए पर दे रहा है और अपने इलाके को देशों और आतंकवादियों दोनों के लिए लॉन्चपैड के तौर पर इस्तेमाल करने दे रहा है.

तुर्किए में तालिबान डेलिगेशन के साथ बातचीत में यह खुलासा हुआ कि पाकिस्तान का अमेरिका के साथ एक गुप्त समझौता है. इसके तहत वह अफगानिस्तान पर ड्रोन हमलों के लिए अपने इलाके का इस्तेमाल करने की इजाजत देता है. इस्लामाबाद इन हमलों को रोकने में लाचार है, और यही असली वजह थी कि तुर्किए में बातचीत बेनतीजा खत्म हुई और पाकिस्तान ने भारत पर आरोप मढ़ दिया.

वीडियो: दुनियादारी: ट्रंप ने दिया अफगानिस्तान पर ड्रोन अटैक का आदेश? पाकिस्तान का भेद खुला!

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