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बेटी की अंतर-धार्मिक शादी के खिलाफ पिता HC पहुंचा, कोर्ट ने संविधान पढ़ा दिया

गुजरात हाई कोर्ट ने धर्म बदलकर प्रेम विवाह करने वाली बेटी के खिलाफ पिता की याचिका खारिज की, और कहा कि अपनी पसंद से शादी करना संविधान के अनुच्छेद 21 मौलिक अधिकार है.

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High Court
संविधान का अनुच्छेद 21 हमें अपनी मर्जी से शादी करने का अधिकार देता है
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कनुप्रिया
4 नवंबर 2025 (Updated: 4 नवंबर 2025, 06:50 PM IST)
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संविधान ने हमें अनुच्छेद 21 के तहत 'जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार' दिया, वहीं आज भी इस देश में ऐसे बालीग लोग हैं, जो अपने लिए सरकार चुनने का हक तो रखते हैं मगर उन्हें अपना जीवनसाथी चुनने का हक नहीं है. विडंबना ये है कि कुछ मां-बाप एक बार के लिए अपने बच्चों को एक ख़राब और बेमेल शादी में दुखी देखना तो चुन सकते हैं, लेकिन उन्हें अपनी मर्जी से प्रेम विवाह नहीं करने देना चाहते.

ऐसी ही एक घटना गुजरात में हुई. एक लड़की को अपने से पराये धर्म के एक लड़के से प्यार हो गया. लेकिन पिता नहीं माने. जब लड़की तमाम कोशिशों के बावजूद अपने पिता को मना नहीं मना पाई, तो उसने घर से भागकर और अपना धर्म बदलकर शादी कर ली. उसने स्पेशल मैरिज एक्ट (SMA 1954) के तहत शादी की. ये वो कानून है जो भारत में अलग-अलग धर्मों के लोगों की शादी को कानूनी मंज़ूरी देता है. और जैसा कि कानून कहता है, मैरिज रजिस्ट्रार ने इस शादी को रजिस्टर भी कर दिया.

पिता को जैसे ही ये बात पता चली, वो तुरंत पुलिस के पास गए और और मांग की कि मैरिज रजिस्ट्रार के ख़िलाफ़ फर्स्ट इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट (FIR) दर्ज की जाए. पिता का कहना था कि धर्म बदलकर शादी करना गुजरात के एंटी कन्वर्ज़न लॉ और भारतीय न्याय संहिता के ख़िलाफ़ है. लेकिन पुलिस ने पिता का यह तर्क समझने से मना कर दिया और FIR दर्ज करने से इनकार कर दिया.

इसके ख़िलाफ़, पिता ने गुजरात हाई कोर्ट में अपील दायर की. गुजरात हाई कोर्ट ने पिता की याचिका को खारिज करते हुए दो टूक शब्दों में अपना फ़ैसला सुनाया. कोर्ट ने साफ़ कहा कि:

"पहली बात, एंटी कन्वर्ज़न लॉ सिर्फ ज़बरदस्ती का धर्म-परिवर्तन करवाने वाले लोगों को सज़ा देता है. लेकिन यहाँ मामला अपने मन से धर्म बदलने और आपसी सहमति से शादी करने का है. और इसका अधिकार संविधान का अनुच्छेद 21 सभी को देता है. इस अधिकार में कोई भी दखल नहीं दे सकता है."

हमारा संविधान सिर्फ कागज़ों का पुलिंदा नहीं है. इसे बड़ी सोच और समझ के साथ लिखा गया था. अलग-अलग जाति, धर्म, वर्ग और काम करने वाले लोगों ने साथ बैठकर ये तय किया था कि इस देश के भविष्य के लिए, यहां की आम जनता के लिए ऐसे कौन से सिद्धांत गढ़े जाएंगे, जिनसे हर किसी के हक की बात हो. इसी प्रक्रिया में मौलिक अधिकार लिखे गए, मौलिक कर्तव्य तय किए गए, और एक समृद्ध भारत का सपना देखा गया.

यह फ़ैसला इस याद के लिए है कि: अगर आप बालिग़ हैं, और आपसी सहमति से किसी से शादी करना चाहते हैं, तो हमारे देश में ऐसे कानून मौजूद हैं, जो आपके प्रेम और चुनाव की सुरक्षा के लिए ही बनाए गए हैं.

 

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