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दोस्ती के नाम पर अपराध: दिल्ली हाईकोर्ट ने रेप आरोपी की ज़मानत अर्जी खारिज की

दिल्ली हाईकोर्ट ने एक 17 साल की नाबालिग से रेप के मामले में आरोपी की ऐंटिसिपेटरी बेल अर्जी को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि दोस्ती किसी को रेप या हिंसा का हक़ नहीं देती.

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कोर्ट
भारतीय न्याय व्यवस्था
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कनुप्रिया
24 अक्तूबर 2025 (Published: 06:49 PM IST)
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एक 17 साल की बच्ची थी. उसके घर के बगल में एक लड़का रहता था. लड़के ने पहले सोशल मीडिया पर उस लड़की को फ़ॉलो किया. फिर एक बार मुलाक़ात हुई तो दोनों में दोस्ती हो गई. एक दिन लड़के ने लड़की को अपने एक दोस्त के घर पर होने वाली पार्टी में आने का न्योता दिया. लड़की भी दोस्ती की खातिर वहां पहुंच गई.

लेकिन उस घर में पहुंचने के बाद, उस शख़्स ने, जो खुद को लड़की का दोस्त बताता था उसका रेप किया. इतना ही नहीं, रेप के दौरान जब लड़की ने चीख़ना-चिल्लाना शुरू किया तो उसने उसे पीटा भी. जब लड़की ने कहा कि वो सबको बता देगी, तब आरोपी ने उसे फिर मारा और धमकी दी कि अगर उसने किसी को इस बारे में बताया तो वो उसे जान से मार डालेगा. इसके बाद आरोपी ने लड़की को उसी घर में क़ैद कर कुछ घंटों तक रोककर रखा.

विक्टिम बच्ची ने क्राइम के 11 दिन बाद जाकर केस दर्ज करवाया. FIR लिखी गई. उसने हिम्मत नहीं हारी. लेकिन आरोपी ने गिरफ्तारी से बचने के लिए ऐंटिसिपेटरी बेल की अर्जी डाल दी. वो बेल जो हिरासत में जाने से पहले ही मांग ली जाती है.

जब मुकदमा शुरू हुआ तो दिल्ली पुलिस ने कहा कि आरोपी को ज़मानत नहीं मिलनी चाहिए क्योंकि मामला बहुत गंभीर है. वहीं आरोपी ने दलील दी कि दोनों के बीच जो शारीरिक संबंध बने, वो आपसी सहमति से थे, और वैसे भी लड़की उसकी दोस्त थी और इसलिए रेप का सवाल ही नहीं उठता. उसने ये भी कहा कि अगर रेप हुआ होता तो लड़की ने 11 दिन बाद शिकायत क्यों की?

दिल्ली हाईकोर्ट ने जब ये दलील सुनी तो बेंच में बैठे जस्टिस स्वर्णकांत शर्मा भड़क गए. उन्होंने कहा कि दोस्ती का मतलब ये नहीं होता कि किसी का रेप करने, प्रताड़ित करने या बंदी बनाने का हक मिल जाए. ऐसी दलील देकर दोस्ती जैसे सुंदर रिश्ते का अपमान नहीं किया जाना चाहिए.

ये कहते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने आरोपी की ऐंटिसिपेटरी बेल पिटीशन को खारिज कर दिया. साथ ही, कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को जांच की रफ्तार बढ़ाने का निर्देश दिया और कहा कि चूंकि विक्टिम नाबालिग है, इसलिए POCSO यानी प्रोटेक्शन ऑफ़ विमेन फ़्रॉम सेक्शुअल ऑफेंसेस की जो भी धाराएं लागू होती हैं, वो सभी लगाई जाएं और ट्रायल जल्द से जल्द शुरू किया जाए.


 

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