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बीते तीन साल में पहले से ज्यादा जवान क्यों सुसाइड कर रहे हैं?

छुट्टी? परिवार से दूरी? क्या है आत्महत्या, हत्या और सर्विस छोड़ने की वजह?

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बीएसएफ और सीआरपीएफ के जवान (बाएं से दाएं, फोटो- BSF/Amit Shah)
31 मार्च 2022 (Updated: 30 मार्च 2022, 02:46 IST)
Updated: 30 मार्च 2022 02:46 IST
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देश की सुरक्षा में लगे जवानों में आत्महत्या की दर पिछले कुछ सालों में बढ़ी है. केंद्र सरकार ने 29 मार्च को संसद में बताया कि पिछले 10 सालों में केंद्रीय सशस्त्र बलों (CAPF) के 1205 जवानों ने आत्महत्या की है. केंद्रीय सशस्त्र बल के जवान देश के भीतर और सीमा की सुरक्षा में लगे हुए हैं. इसके तहत CRPF, CISF, ITBP, SSB, NSG और असम राइफल्स के जवान आते हैं. इन सभी बलों में करीब 10 लाख जवान हैं. गृह मंत्रालय ने लोकसभा में बताया कि पिछले साल 156 जवानों ने और साल 2020 में कुल 143 जवानों ने आत्महत्या कर ली. जवानों की आत्महत्या के पीछे सरकार घरेलू समस्याओं, बीमारी और वित्तीय समस्याओं को कई कारणों में मानती है. हालांकि गृह मंत्रालय से जुड़ी संसदीय समिति इन आत्महत्याओं के पीछे मानसिक और भावनात्मक तनाव को भी वजह मानती है. आत्महत्या के पिछले 10 सालों के आंकड़ों को देखते हैं - साल 2012 में 118 साल 2013 में 113 साल 2014 में 125 साल 2015 में 108 साल 2016 में 92 साल 2017 में 125 साल 2018 में 96 साल 2019 में 129 साल 2020 में 143 साल 2021 में 156 जवान क्या कहते हैं? छत्तीसगढ़ में असिस्टेंट कमांडेंट के पद पर तैनात CPRF के एक जवान ने नाम ना बताने की शर्त पर कहा कि कई कारणों के साथ आत्महत्या की एक बड़ी वजह सर्विस कंडीशन्स हैं. उन्होंने बताया कि ऑपरेशन के इलाकों में ज्यादातर समय छुट्टी या काम के घंटों का कोई कॉन्सेप्ट नहीं होता है. उन्होंने कहा,
"कश्मीर में CRPF के जवानों को लॉ एंड ऑर्डर के लिए रोज नाका लगाना पड़ता है. इसके साथ-साथ कैंप की भी सुरक्षा उन्हीं को करनी पड़ती हैं. फोर्स में ये चीजें रहेंगी ही. लेकिन समस्या का समाधान तभी हो सकता है जब आप फोर्स की क्षमता को पूरी करेंगे."
उन्होंने आगे बताया कि जवान अब भी कुछ इलाकों में लंबे समय तक अपने परिवार से संपर्क नहीं रख पाते हैं,
"छत्तीसगढ़ और नॉर्थ ईस्ट में बहुत सारे रिमोट एरिया अब भी हैं ऐसे हैं, जहां नेटवर्क एक बड़ा मुद्दा है. यही समस्या बीएसएफ के कई जवानों के साथ भी है. इसके कारण वे लंबे समय तक अपने परिवार के साथ नहीं जुड़ पाते हैं और उनके भीतर तनाव पैदा होता है."
प्रयागराज में तैनात एक और CPRF जवान ने दी लल्लनटॉप को बताया कि हमेशा घर से दूर रहने के बावजूद जवानों का भविष्य सुरक्षित नहीं है. उन्होंने कहा कि भत्ते और सैलरी भी नाम मात्र के हैं. उन्होंने नाम ना लिखने की शर्त पर बताया,
"आज कोई जवान जम्मू-कश्मीर में है तो कल वो नॉर्थ-ईस्ट में है. बार-बार ट्रांसफर और ज्यादातर समय कॉन्फ्लिक्ट इलाकों में रहने के कारण दबाव बनता है. इसके अलावा जवानों की अपनी घरेलू समस्याएं भी हैं. इन सबसे उनके भीतर आत्महत्या की प्रवृति पैदा होती है."
नेता क्या कहते हैं? दिसंबर 2018 में, गृह मंत्रालय से जुड़ी संसद की स्थायी समिति ने भी CRPF जवानों के लंबे काम के घंटे को लेकर चिंता जाहिर की थी. इस समिति के अध्यक्ष पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री और कांग्रेस नेता पी चिदंबरम थे. समिति ने कहा था कि राज्य सरकारों द्वारा जवानों को दी जा रही सुविधाएं 'काफी खराब' हैं, जिससे जवानों के मनोबल पर प्रभाव पड़ता है. राज्यसभा में सौंपी गई रिपोर्ट में कमिटी ने चौंकाने वाली बात कही थी. कमिटी ने कहा था,
"CRPF जवानों के एक दिन में 12-14 घंटों की लंबी ड्यूटी से कमिटी निराश है. और 80 फीसदी से ज्यादा CRPF जवान अपने वीक ऑफ और छुट्टियां नहीं ले पाते हैं. कमिटी जानती है कि सशस्त्र बलों का काम ऐसा है कि उन्हें 24 घंटे सातों दिन तैयार रहना होता है. हालांकि 12-14 घंटों के काम और कोई छुट्टी नहीं होने के कारण उनका मानसिक और शारीरिक रूप से नुकसान होता है. और इससे उनका काम भी प्रभावित होता है."
हत्या के मामले जवानों के बीच सुसाइड बढ़ने का यह आंकड़ा तब आया है जब इसी महीने BSF के जवानों द्वारा अपने साथी की हत्या के दो मामले आए. इन दोनों घटनाओं के बाद जवानों के तनाव और उनके काम करने की स्थिति को लेकर बहस शुरू हुई थी. 7 मार्च को पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में एक BSF जवान ने आत्महत्या से पहले अपने साथी की गोली मारकर हत्या कर दी थी. वहीं इससे एक दिन पहले, 6 मार्च को पंजाब के अमृतसर में BSF के ही एक जवान ने अपने साथियों पर ओपन फायरिंग कर दी थी. इसमें कुल 5 जवानों की मौत हुई थी. गृह मंत्रालय ने दिसंबर 2021 में संसद में बताया था कि पिछले तीन सालों (2019-21) में सशस्त्र बलों के भीतर ऐसी 25 घटनाएं हो चुकी हैं. इनमें सबसे ज्यादा 12 घटनाएं CRPF में और 9 घटनाएं BSF में दर्ज की गईं. हालांकि सरकार ने ये नहीं बताया कि इन घटनाओं में कुल कितने जवानों की मौत हुई. गृह मंत्रालय से संबंधित संसदीय समिति ने दिसंबर 2019 में राज्यसभा में बताया था कि CRPF के जवान लगातार कॉन्फ्लिक्ट क्षेत्रों में तैनाती के कारण काफी ज्यादा तनाव का सामना करते हैं. इन क्षेत्रों में वे ज्यादातर समय दयनीय स्थिति में रहने को मजबूर होते हैं. "छुट्टी का मुद्दा है बड़ा" कंफेडेरेशन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्सेस मार्टर्स वेलफेयर एसोसिएशन रिटायर्ड जवानों की एक संस्था है. संगठन के महासचिव रणबीर सिंह ने हमें बताया कि वे जवानों के मुद्दे को लगातार सरकार के सामने उठाते रहे हैं. उन्होंने कहा,
"देश में हर 6 महीने में चुनाव होते रहते हैं. जवानों को 2 महीने पहले नोटिस मिलता है कि अब वे छुट्टी नहीं ले सकते. गृह मंत्री ने 100 दिन की छुट्टी का वादा किया था. लेकिन क्या ये लागू हो पाया. जरूरत के समय छुट्टी नहीं मिल पाना जवानों के बीच तनाव का एक बड़ा कारण है."
रणबीर सिंह ने कहा कि उनका संगठन जवानों के पेंशन और अन्य मुद्दों पर पिछले तीन सालों में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय से मुलाकात कर चुका है. हालांकि इसका समाधान नहीं हो पाया. उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि जवान देश की सुरक्षा में लगे हैं, लेकिन उनकी सुरक्षा कौन करेगा. 2019 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि CAPF जवानों की कुल छुट्टियों को 75 दिन से बढ़ाकर 100 दिन किया जाएगा. हालांकि यह अभी तक लागू नहीं हो पाया है. इसके अलावा, सशस्त्र बलों ने जवानों के लिए कैजुअल लीव को 15 से बढ़ाकर 30 दिन करने का प्रस्ताव दिया था, जिसे गृह मंत्रालय ने अभी तक स्वीकार नहीं किया है. प्रयागराज में तैनात जवान ने कहा कि ये छुट्टियां सिर्फ कहने के लिए हैं. उन्होंने कहा,
"अधिकारी स्तर तक के लोग पूरी छुट्टी नहीं ले पाते हैं. जो नक्सल इलाके में हैं या दूसरे कॉन्फ्लिक्ट क्षेत्र में हैं वे कैसे इस छुट्टी को ले सकते हैं, जब जवानों की संख्या ही कम है. सरकार हमारे जवानों को शहादत का दर्जा तक नहीं देती है. पेंशन आप दे नहीं रहे हैं, प्रोमोशन हमारे यहां सबसे धीमा है. इस फोर्स में लोग मजबूर हैं."
जो जवान छोड़ रहे साथ संसद की स्थायी समिति ने हाल ही में सशस्त्र बलों से जवानों के अलग होने को लेकर भी चिंता जताई थी. 2020 के मुकाबले पिछले साल यह दर बढ़ी है. इसमें सबसे ज्यादा BSF और CRPF के जवान हैं. कमिटी ने जवानों के फोर्स से अलग होने का आंकड़ा भी पेश किया. उन्होंने बताया कि CAPF के कितने जवान सुरक्षा बलों से अलग हुए. 2017 में 20 हजार 575 जवान 2018 में 16 हजार 100 जवान 2019 में 14 हजार 872 जवान 2020 में 9 हजार 729 जवान 2021 में 14 हजार 311 जवान पिछले साल यानि 2021 सबसे ज्यादा BSF के जवानों ने नौकरी छोड़ी. फोर्स से अलग होने की वजह कई हैं, जिसमें पेंशन, इस्तीफा, पद से हटाया जाना, वॉलेन्ट्री रिटायरमेंट, मौत भी शामिल हैं. गृह मंत्रालय ने इसके पीछे भी कई कारणों को गिनाया था, जिसमें लंबे समय तक कठिन क्षेत्रों में तैनाती और परिवार से दूर होना भी है. आत्महत्या रोकने के सरकारी कदम? सरकार ने लोकसभा में बताया कि जवानों के मानसिक तनाव को कम करने के लिए कई कदम उठाए गए हैं. केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा कि CAPF में आत्महत्याओं को रोकने के लिए अक्टूबर, 2021 में एक टास्क फोर्स का गठन किया गया था. सरकार ने कहा कि ये टास्क फोर्स रिस्क फैक्टर्स को पहचानने की कोशिश करेंगे और आत्महत्या को रोकने के लिए जरूरी सुझाव देंगे. इस टास्क फोर्स में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेस (NIMHANS) जैसे संगठनों के एक्सपर्ट्स भी शामिल हैं. केंद्र सरकार ने जवानों के बीच आत्महत्या को रोकने के लिए जिन कदमों का जिक्र किया है, उनमें CAPF के लिए 'आर्ट ऑफ लिविंग' कोर्से कराए जाने की बात भी कही गई है. सरकार का कहना है कि इससे जवानों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. इसके अलावा कठिन क्षेत्रों में सर्विस के बाद जवानों की पसंदीदा तैनाती पर विचार किया जाता है. साथ ही ड्यूटी के दौरान घायल होने के कारण अस्पताल में बिताए गए समय को ड्यूटी की अवधि मानी जाती है. सरकार ने कहा कि उन्हें बेहतर मेडिकल सुविधाओं के साथ मनोवैज्ञानिक चिंताओं को दूर करने के लिए एक्सपर्ट के साथ बातचीत का प्रबंधन किया जाता है. इसके अलावा ध्यान और योग का भी आयोजन किया जाता है.

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