कुछ साल पहले हमारी साथी स्वाति ने बेनजीर भुट्टो की किताब, डॉटर ऑफ द ईस्ट. से एकबड़ा रोचक किस्सा ढूंढकर निकाला था. बात तब की है जब बांग्लादेश युद्ध के बाद शिमलामें भारत और पाकिस्तान समझौते की मेज पर आमने-सामने आए. 2 जुलाई, 1972 की शाम,इंदिरा गांधी और जुल्फिकार अली भुट्टो बंद कमरे में मीटिंग में जुटे थे. बाकी सबफाइनल हो चुका था. सिवाए एक चीज के. भारत की मांग थी कि कश्मीर में 'संघर्ष विरामरेखा' को 'नियंत्रण रेखा' का नाम दिया जाए. भुट्टो को डर था कि कश्मीर का जिक्रहोते ही पाकिस्तान में हंगामा हो जाएगा. कश्मीर मुद्दे पर बातचीत पटरी से उतरने लगीथी. फिर देर शाम इंदिरा और भुट्टो के बीच एक घंटे की मीटिंग हुई. मीटिंग पूरी होनेके बाद पाकिस्तानी डेलीगेशन का एक मेंबर बाहर आया और बोला, “मुबारक हो बेटा हुआहै”.दरअसल ये खुशबखरी का कोड वर्ड था. पाकिस्तान की नहीं मानी जाती तो कहा गया होता,“बेटी हुई है.” माना जाता है कि शिमला समझौते में पाकिस्तान का पलड़ा भारी रहा.युद्ध के दौरान जो भी जमीन खोई थी, वो उन्हें वापस मिल गई. साथ ही वो 93 हजार सैनिकभी भारत वापस लौटाने पर राजी हो गया, जो युद्ध के दौरान बंदी बनाए गए थे.