शाहरुख़ खान स्टेज पर खड़े हैं. एक किस्सा बतिया रहे हैं. बचपन में जब मैं पतंग उड़ाताथा, मांझे में अक्सर गांठ पड़ जाती थी. मैं घंटो उसे सुलझाने में लगा रहता. फिर एकरोज़ मेरी मां ने मुझसे कहा कि मैं अंडे के कुछ छिलके और पेंट से नया मांझा बना सकताहूं. और मुझे अहसास हुआ, ये घंटों मांझे को सुलझाने से कहीं बेहतर है. इसके बाद कहानी का मर्म समझाने के लिए शाहरुख़ कहते हैं.“परेशानियां ऐसी ही हैं. उन पर घंटों सोचने से कोई फायदा नहीं है.” साल 2009 में एकबुक लांच के दौरान शाहरुख़ शाहरुख़ ने ये बात कही थी. किताब का नाम था, ‘डिस्कवर दडायमंड इन यू’. किताब भी ऐसे ही नायाब वन लाइनर्स से भरपूर थी. देखिए वीडियो.