जितना भर सोच पाते हैं, उतना ज़ख्म गहरा होता जाता है. ज़ख्म जितना गहरा होता जाताहै, सोचने-समझने की क्षमता क्षीण होती जाती है. ठीक-ठीक याद करें तो पिछले साल इसीतारीख़ को जलते घरों और मरते लोगों की तस्वीर देख हमारा दिल दहल गया था. अखबारों औरटीवी चैनलों में देखा तो नाम दिया गया था - दिल्ली दंगे 2020. इस घटना से पूरीदिल्ली दहल गई थी. एक ऐसे अनजाने से डर ने दिल को जकड़ लिया था मानो तेज़ हवा में भीसांस ना आ रही हो. इस कुसमय को लल्लनटॉप के रजत सैन और रुहानी भाटिया ने अपने कैमरेकी नज़रों से एक डॉक्यूमेंट्री में पिरोया है. देखिए और ज़हन में ताज़ा रखिए वोगलतियां कि फिर ऐसा कुछ भयावह सा, हमें दोबारा न देखना पड़े.