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पीएम मोदी कच्छ के जिन सिख किसानों से मिले, उनका 1965 के युद्ध से क्या संबंध है?

मोदी जब गुजरात के सीएम थे, तब से ये सिख किसान जमीन की जंग लड़ रहे हैं.

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कच्छ के किसानों से पीएम मोदी ने 15 दिसंबर को मुलाकात की. (तस्वीर: इंडिया टुडे)
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आदित्य
15 दिसंबर 2020 (Updated: 15 दिसंबर 2020, 06:56 PM IST) कॉमेंट्स
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पीएम नरेंद्र मोदी 15 दिसंबर मंगलवार को गुजरात के दौरे पर थे. इस दौरान उन्होंने कच्छ में दुनिया के सबसे बड़े रिन्यूएबल एनर्जी पार्क (नवीकरणीय ऊर्जा पार्क) और मांडवी में डिसैलिनेशन (खारे पानी को मीठा बनाने के) प्लांट की आधारशिला रखी. इसके बाद पीएम मोदी ने कच्छ के लखपत और नज़दीकी इलाकों के सिख किसानों से मुलाक़ात की. दिल्ली बॉर्डर पर करीब 20 दिनों से किसानों के प्रदर्शन के बीच गुजरात में सिख किसानों से पीएम की ये मुलाकात अहम मानी जा रही है. कहा जा रहा है कि पीएम ने इन किसानों से मिलकर सिख समुदाय और किसानों को संदेश देने की कोशिश की है. मोदी जिन किसानों से मिले, उनकी कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है. आइए बताते हैं.
कच्छ के ये किसान 1965 में पंजाब छोड़ गुजरात क्यों आए थे?
1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ. इस दौरान कच्छ का रण क्षेत्र एकदम से वीरान था. उस वक्त पीएम थे लाल बहादुर शास्त्री. उन्हें लगा कि सीमा से लगे इलाके इस हाल में ना रहें, इसलिए उन्होंने सैकड़ों सिख किसान परिवारों को यहां बसाया था. शास्त्री का मानना था कि बॉर्डर क्षेत्र में आबादी रहने से रणनीतिक रूप से भारत को फायदा होगा. आबादी रहने से घुसपैठ को भी रोका जा सकेगा. पीएम की अपील के बाद गुजरात सरकार ने 1965 से 1984 के बीच पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के 550 लोगों को आधिकारिक तौर पर जमीनें अलॉट की थीं. इन 550 में से 390 सिख थे. माने दो तिहाई से भी अधिक.
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भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने सिख किसानों को कच्छ में बसाया था. (तस्वीर: पीटीआई)


इन किसानों ने कच्छ को कैसे बदला?
1965 में पंजाब और हरियाणा के किसान जब कच्छ आए तो अपने साथ कई नई टेक्नोलॉजी लाए. इसके कारण खेती में बढ़ोतरी देखी गई. कच्छ कॉटन एसोसिएशन के सेक्रेटरी श्रीश हरिया इंडियन एक्सप्रेस 
 से बात करते हुए बताते हैं कि इन किसानों के आने से पहले इलाके में 1 लाख बेल्स (एक बेल्स करीब 165 किलोग्राम होती है) कपास की खेती होती थी, जो 2012 तक बढ़कर 5 लाख पार कर गई थी. कच्छ के पूर्व जिला अधिकारी अनिल पटेल ने क्षेत्र में सिख किसानों के प्रयासों की तारीफ की थी. उन्होंने कहा था कि इन किसानों ने बंजर जमीन पर कपास और हाई क्वालिटी मूंगफली की खेती की शुरुआत की, और अब तक उसे बढ़ाने में लगे हुए हैं.
फिर दिक्कत कहां आई?
यहां के लोगों को 2010 में तब झटका लगा था, जब गुजरात में नरेंद्र मोदी की सरकार थी और कच्छ के डीएम थे एम. थेनरासन. डीएम ने इनमें से अधिकतर परिवारों को बाहरी करार दे दिया. 784 किसानों की जमीनों के कागजात सीज़ कर दिए गए. इन 784 किसानों में से 245 पंजाब और हरियाण से थे. बाकी राजस्थान और महाराष्ट्र प्रदेश से थे. बाहरी का ठप्पा लगने के बाद ये किसान न किसानी कर पा रहे थे, और न जमीन बेच और खरीद सकते थे. बैंक भी कर्ज देने से मना करने लगे थे. दरअसल, गुजरात सरकार ने 1973 में एक अधिनियम पारित किया किया था. इसके तहत गुजरात में उन लोगों को कृषि जमीन बेचे जाने पर रोक लगा दी गई थी, जो प्रदेश में पुश्तैनी रूप से खेती से नहीं जुड़े थे. सरकार ने इसी नियम के तहत किसानों पर ये कार्रवाई की.
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पीएम मोदी ने अपने दौरे पर किसानों से उनके मसलों पर बातचीत की है. (तस्वीर: आजतक)


मोदी सरकार मामले को सुप्रीम कोर्ट ले गई
मामला 2011 में गुजरात हाई कोर्ट में पहुंचा, जहां किसानों को जीत मिली. इसके बाद गुजरात की नरेंद्र मोदी सरकार ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जहां ये मामला अब भी पेंडिंग है.
अगस्त 2013 में कच्छ के इन किसानों ने सुप्रीम कोर्ट से न्याय की तलाश में महीने भर दिल्ली में डेरा डाले रखा. 2013 में गुजरात सरकार ने 52 किसानों को यह कहकर जमीन वापस दे दी कि ये जमीन खेती के लिए भूमिहीन मजदूरों को दी गई थी, लेकिन अधिकतर किसानों की दिक्कतें अभी भी बनी हुई हैं.
पूरे मसले पर किसान क्या कह रहे?
कच्छ के सिख किसान लक्ष्मण सिंह बरार ने इंडियन एक्सप्रेस
से बात करते हुए कहा कि हम मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतज़ार कर रहे हैं. एक और किसान सुरेंद्र सिंह भुल्लर ने कहा है कि जब मोदी ने मुख्यमंत्री रहते हुए हमारी बात नहीं मानी तो पीएम बनने के बाद मुझे उनसे कोई उम्मीद नहीं है.

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