10 जून 2016 (Updated: 10 जून 2016, 01:29 PM IST) कॉमेंट्स
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सीक्वल का जमाना है. ये रोग फिल्मों से चालू हुआ. पहली वाली चल गई तो उसे मनरेगा बना डाला. तब तक उसके 3-4-5-6 पार्ट आएंगे जब तक लोग उनको ट्रॉल न करने लगें. कृष 3 और घायल वन्स अगेन ऐसी ही फिल्में थीं. बूढ़ी गाय से दूध निकालने चले थे. पब्लिक ने धरके थूर दिया.
लेकिन फिल्मों तक ही बात सीमित रहती तो ठीक था. सीक्वल का कीड़ा चार हाथ आगे बढ़ गया. जब पान मसाला बनाने वालों का ध्यान इधर गया. सलमान खान की फिल्म दबंग आने के बाद 'दबंग गुटखा' आया था. दबंग 2 आई तो मसाला भी अपग्रेड हो गया. दूसरा वर्जन भी आ गया दबंग टू के नाम से.
इसी तरह हमारे देश में सरकारें भी आती हैं. UPA और UPA2. अगली वाली पिछली से ज्यादा करप्ट रहने का दबाव रहा. उसी तरह ये मसाला भी पिछली बार से ज्यादा घटिया होगा. एक और खास बात होती है सीक्वल्स की. ये जबरदस्ती बनाए जाते हैं. देख लो गेम ऑफ थ्रोन्स. इसके दो चार सीजन देख लो. फिर अगले वाले चाट लगने लगते हैं. पता होता है कि ये सस्पेंस और अविश्वसनीय बनाने के लिए कुछ भी करेंगे. जादू वादू गुच्ची पेलैया कुछ भी खोंस देंगे.
सीक्वल कभी कभी आपको बुरी नजरों से बचाने आते हैं. जैसे फूंक और फूंक दो. माने फूंक 2. ये फॉर्मूला हॉलीवुड वालों को छजता है. उनके यहां लोग आधी खोपड़ी के होते हैं. एक हिट हो जाए तो अगली सब फिल्में चिमट कर देखते हैं. हमारी क्वालिटी और है. हम एक में ही ऊब जाते हैं.
लेकिन पान मसाले की बात और है. इसके सीक्वल चलेंगे. अब दाने दाने में कैंसर का दम लिए विमल भी अपना नया वर्जन निकालेगा. रजनीगंधा 2 भी आएगा. आशावादी बनो.