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'जब मैंने ब्रा पहननी शुरू की, मेरे भाई को पता भी नहीं चला'

MEOW: मां बताती हैं कि जब मैं पैदा हुई थी, भाई करीब आने में घबराता था. यहां जानिए क्यों?

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symbolic image. फोटो क्रेडिट- reuters
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प्रतीक्षा पीपी
28 अगस्त 2016 (Updated: 28 अगस्त 2016, 07:30 AM IST) कॉमेंट्स
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एक बड़े ही करीबी दोस्त ने एक दिन कहा: "एक बात पूछूं. तुम्हारे भाई से तुम्हारी बनती नहीं है क्या?" मैं सकपका गई. उसने कहा, "असल में तुम्हें मम्मी-पापा से फ़ोन पर बात करते हुए खूब देखा है. भाई से बात करते हुए कभी नहीं देखा. 1 मिनट के लिए भी नहीं."
भाई से मेरी खूब बनती है. मिलते हैं तो घंटों बातें करते हैं. शादी हो गई है उसकी. लेकिन दोस्त का ये सवाल जायज़ था. मैंने सोचा. पिछली बार भाई से उसकी शादी की सालगिरह के दिन बात हुई थी. वो ऑफिस में था. मैं भी ऑफिस में थी. शायद 33 सेकेंड की कॉल थी. तबसे 2 महीने हो गए. उसके पहले मेरे बर्थडे पर बात हुई थी. उसके पहले नए साल पर. भाभी के हाथ में फोन हो तो आधे घंटे तक बात चलती है. भाई से एक मिनट के अंदर सिमट जाती है. पिछले साल जब तक कॉलेज में थी, महीने में एक बार बात हुआ करती थी. पॉकेट मनी भेजने के लिए. फिर उसके लिए भी व्हाट्सऐप पर मैसेज भेजने शुरू कर दिए. हमारे दिलों में ठंडक तो नहीं. फिर भी ऐसा होता है.
मां बताती हैं कि जब मैं पैदा हुई थी, भाई करीब आने में घबराता था. वो हमारी जेनरेशन का पहला बच्चा था. कई दिन लगे उसे समझाने में. कि मां के सीने से चिपके इस मांस के टुकड़े को 'बहन' कहते हैं. भाई लगभग चार साल बड़ा था. कोई ठोस याद नहीं है मन में. कि ऐसे हमने मिल कर कोई खुराफात की थी. ऐसे साथ में पीटे गए थे. ऐसा कोई राज शेयर किया था. ऐसा कुछ भी नहीं था. हम साथ स्कूल नहीं गए. उसे को-एड स्कूल में पढ़ाया गया. मुझे गर्ल्स स्कूल में. शुक्रिया उस वक़्त बाबा (दादाजी) के होने का, कि हम दोनों पढ़ाई में भी औसत और अच्छे के बीच रहे. दोनों की ज़रूरतें अलग रहीं. इसलिए कभी सिबलिंग राइवलरी जैसी कोई चीज नहीं रही. उसने कभी पॉकेट मनी बचा कर मुझे कीरिंग का तोहफा नहीं दिया. मैंने कभी उसकी कोई 'सीक्रेट गर्लफ्रेंड' होने जैसा राज दबाकर नहीं रखा.
हम यूं ही बड़े हुए. पापा मुझे लाड़ करते. दादी भाई को. बाबा दोनों को पढ़ाते. मम्मी सब बैलेंस करती चलतीं. लिंग भेद कभी महसूस किया तो इतना ही, कि दादी भाई के दूध के गिलास में एक्स्ट्रा शक्कर घोल देतीं. जिससे वो खीज उठता. या बड़े वाले अंगूर छांट कर उसकी कटोरी में रख देतीं. ये भी शायद लिंग भेद नहीं था. बस घर का बड़ा बच्चा होने की लक्ज़री थी उसके लिए.
जिस घर में हम बड़े हुए. वहां अलग कमरों और पर्सनल स्पेस का कॉन्सेप्ट नहीं था. अब लगता है कि मम्मी और पापा को भी अलग कमरा सिर्फ इसलिए दिया गया होगा कि मैं और भाई पैदा हो सकें. मेन गेट को छोड़ कर कभी घर का कोई भी दरवाजा अंदर से बंद नहीं किया गया. कम से कम तब तक, जब तक हम जागते रहते थे.
लेकिन ये कमाल की बात है. कि प्राइवेट स्पेस न होते हुए भी मुझे और भाई को कभी एक दूसरे की प्राइवेट लाइफ में एंट्री नहीं मिली. क्योंकि वो लड़का था. और मैं लड़की. मैंने बचपन से अपने अंडरवियर खुद धोए थे.
दादी ने भाई के अंडरवियर धोने कब बंद किए, मुझे मालूम नहीं पड़ा. जैसे मैंने सेनिटरी नैपकिन इस्तेमाल करने कब शुरू किए, उसे मालूम नहीं पड़ा होगा. मम्मी की अलमारी के एक ऐसे कोने में सेनिटरी नैपकिन रखे जाते थे, जहां किसी पुरुष का हाथ नहीं पहुंच सकता था. ज़ाहिर है, भाई ने भी नहीं देखा होगा.
फिर मैंने ब्रा पहननी शुरू की. शायद भाई को वो भी पता नहीं होगा. या होगा भी तो उसने अनदेखा कर दिया होगा. मम्मी हमेशा अपनी ब्रा पेटीकोट जैसे किसी दूसरे कपड़े के नीचे सुखाती थीं. मैंने बिना कहे वही आदत अपना ली. टीशर्ट, तौलिया किसी भी कपड़े के नीचे सुखाती. क्योंकि भाई बड़ा हो रहा था.
जिस लड़की को वो बहन कहता आया था, उसके अंदर भी एक ऐसा जीव है, जिसके स्तन हो सकते हैं, जिसको पीरियड हो सकते हैं, जो सेक्स कर सकता है, जो बच्चे पैदा कर सकता है. शायद ये पता लगना उसके लिए ठीक बात नहीं होती. ऐसा घर वालों का मानना था.
एक बार पीरियड शुरू हुआ और घर में पैड खत्म थे. मम्मी ने भाई को अखबार के छोटे से पुर्जे पर लिख कर दिया, 'विस्पर'. और समझाया कि ये दुकान वाले को दे दे. दुकान वाले ने भी उसे अखबार के टुकड़े में लपेट कर भाई के हाथ भिजवाया. ये भाई की मेरी पर्सनल लाइफ में पहली और आखिरी एंट्री थी. जब पहली बार पीरियड की वजह से पेट में भयानक दर्द हुआ, भाई की पहली टिप्पणी थी, "कल इसको चाऊमीन नहीं खाना चाहिए था. देखो नुकसान कर गया." फिर अक्सर दर्द होता. भाई कुछ नहीं कहता. उसने शायद अंदाजा लगा लिया होगा कि ये मम्मी और बहन के बीच की पर्सनल बात है. इस दुनिया में उसकी एंट्री नहीं है. है भी तो उतनी ही जिसमें एक अंगुल कागज़ का एक पुर्जा समा सके.
फिर जब मैं बाबा या पापा से चिपक कर बैठती, दादी की तरफ से कमेंट आ जाता, "अब बड़ी हो गई हो. चिपका न करो." ये सब सुन कर भाई को शायद पता लग गया, कि बहन बड़ी हो गई है. जो इक्के-दुक्के झगड़े हो जाया करते थे हमारे बीच, वो अनकही चुप्पी में बदल गए. कि हम अलग हैं. हमारे शरीर अलग हैं. वो न अब डांटता, न नाक खींचता. उसे शायद मालूम नहीं था कि जिस बहन को पीरियड होने लगते हैं उसके साथ कैसा बर्ताव किया जाता है.
फिर भाई शहर छोड़ पढ़ने चला गया. बाबा को उम्र ने लील किया. घर में औरतें ज्यादा हो गईं. अब दर्द के समय मुंह ढांप कर रोने के बजाय खुल के कराहा जा सकता था.
लेकिन मेरे और भाई के बीच चुप्पी रह गई. कॉलेज में आई तो मेल फ्रेंड्स ने बताया, इरेक्शन के फेज में शरीर में ऐसे बदलाव आते हैं. नाइटफॉल के समय ऐसा लगता है. भाई से दूर हो कर मैंने भाई को समझना शुरू किया. और ये माना कि मुझसे दूर हो कर भाई मुझे समझ रहा होगा. फीमेल दोस्तों की जुबान से. या भाभी की जुबान से. लेकिन मैंने फ़ोन नहीं किया उसे. जब लड़कों ने फ़्लर्ट किया तो सोचा उसके साथ भी किसी लड़की ने फ़्लर्ट किया होगा. जब उसे प्रेम हुआ होगा तो उसने क्या सोचा होगा. शायद वो भी ऐसे सोचता होगा. पर उसने भी फ़ोन नहीं किया.
इसलिए हम कम बातें करते हैं. क्योंकि हमने हाल ही में एक दूसरे को समझना शुरू किया है.

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