हम आज जानते हैं कि गोल है धरती. वो अपनी धुरी पर घूम रही है. सूरज का चक्कर लगा रही है. इसी वजह से मौसम बदलते हैं. दिन रात होते हैं. लेकिन सबसे पहले ये सच्चाई जानने वाला कौन था.
पहले धरती का शेप किसी को पता नहीं था. कोई रोटी सी चपटी कहता कोई चौकोर. भारत में वैदिक सभ्यता के लोग बड़े सयाने थे. याज्ञवल्क्य ने अपने संस्कृत के ग्रंथों में धरती को गोल ही लिखा था. ग्रीक सिविलाइजेशन भी हिस्ट्री के समझदारों में है. अरस्तू और होमर हजारों साल पहले बता चुके थे कि धरती गोल है. उनसे भी पहले थे साइंटिस्ट पाइथागोरस. वो भी गणित के बूते पर कहते थे.
अरस्तू का चेला सिकंदर था न. वो मानता था गुरू की बात. सेल्यूकस तो ये भी कह चुका था कि धरती न सिर्फ गोल है बल्कि घूम भी रही है. कहते हैं जब कोलंबस समुद्री यात्रा पर निकला तो लोग डराने लगे. वो बताते थे कि यह समुद्र एक झरने की तरह खत्म होगा. वह झरना जो कही नहीं गिरता. पता नहीं कहां चले जाओगे तुम. 1492 में कोलंबस इन बातों का लोड न लेकर निकल लिया था. पता नहीं ये सच है कि नहीं लेकिन लोग कहते हैं इसलिए हम बता दिए. नानी की कहानी जैसे.
15वीं सदी में इटली की धरती पर आए गैलीलियो. उन्होंने बनाया टेलिस्कोप. दुनिया को दिखाया कि बात में दम है. लेकिन ये सब लोग मानते थे कि धरती सौर मंडल का सेंटर है. फाइनली आइजक न्यूटन ने सबकी बोलती बंद कर दी. उन्होनें बनाया नया रिफ्लेक्टिंग टेलिस्कोप. सबको बुला बुला के दिखाया कि देख लो अपनी आंखों से. तब कहीं जाकर बहस खत्म हई.