शाहरुख के दुआ पढ़कर फूंकने को "थूक" बताने वाले लोग कौन हैं?
कई लोग लता जी को संघी और फासिस्ट साबित करने में भी लगे हैं.
Advertisement

गायिका लता मंगेशकर के लिए दुआ पढ़ते ऐक्टर शाहरुख खान (फोटो: ट्विटर)
"क्या इसने थूका है?''.
हालांकि बाद में लोगों ने इनको निशाने पर लिया तो ये मासूम बनने लगे. कहा कि मैं तो सिर्फ सवाल पूछ रहा था. कुछ और भी किया. पहले इनकी ट्विटर प्रोफाइल में इनकी पीएम मोदी के साथ फोटो थी. वो भी बदल ली इन्होंने. नेता जी, जब आपने कुछ गलत लिखा ही नहीं तो पीएम मोदी वाली तस्वीर क्यों हटा दी. इतना क्या घबराना. वैसे किसी भी पार्टी में इतना लोकतंत्र भी नहीं होना चाहिए कि कोई कुछ भी लिख दे. कई और लोगों ने भी अरुण यादव जैसे ही पोस्ट किए. अब जिन्हें दुआ को फूंकने के बारे में नहीं जानकारी, वो मूर्ख ही फूंकने की बात लिख रहे थे. जिन्हें भारत देश की कल्चरल और रिलिजियस डाइवर्सिटी का ना पता है, ना नाज है, वो कुछ भी लिख सकते हैं. तो उनके लिए बता देते हैं फातिहा क्या होता है, दुआ मांगना क्या होता है, और दुआ मांगने के बाद फूंका क्यों जाता है. मौलाना सूफियान, देवबंद ने बताया किक्या इसने थूका है ❓ pic.twitter.com/RZOa2NVM5I
— Arun Yadav (@beingarun28) February 6, 2022
यह इस्लामी तरीका होता है कि जब कोई बीमार होता है या जब किसी के अंतिम संस्कार में हम जाते हैं तो उसकी मगफिरत के लिए दुआ पढ़कर दम (फूंका) जाता है, ताकि उस पढ़ी हुई दुआ का असर उस शख्स तक पहुंच जाए.लेकिन किसी के समझाने से भी सब समझ ही जाएं, ऐसा भी तो नहीं है. कल जब कई लोगों ने लिखा कि वो थूक नहीं रहे थे, फूंक रहे थे. उसके बाद भी कपिल मिश्रा जैसे बीजेपी के नेता आहत होते दिखे. कपिल मिश्रा ने ट्विटर पर लिखा - हिंदुओं के अंतिम संस्कार में फातिहा पढ़ना, फूंक मारना बदतमीजी है, घटिया हकरत है. क्या मुसलमानों के अंतिम संस्कार में हिंदू जाकर गंगा जल छिड़कते हैं क्या? महामृत्युंजय का जाप करते हैं क्या." अब ऐसी बातों का क्या ही जवाब दें. इन्हें नहीं पता भारत क्या. भारत को कई सारे फूलों का गुलदस्ता क्यों कहा जाता है. भारत का होना दुनिया के लिए क्यों अचम्भा है. अंग्रेज़ों को क्यों लगता था कि भारत एक देश रह ही नहीं पाएगा. तीन नस्ल - आर्य, द्राविड और मंगोल. कई धर्म - संस्कृति और सैकड़ों भाषाओं वाला देश है. हर संस्कृति में अपने आराध्यों से संवाद करने का तरीका अलग अलग है. सबकी अपनी आस्था है. इसी देश में हिंदुओं में भी इतनी विभिन्नताएं हैं. मसलन यूपी का कोई ब्राह्मण मांस भक्षण को देखने भर से आहत हो सकता है, तो कश्मीर के ब्राह्मण महाशिवरात्री पर भी मांस खा लेते हैं. दोनो में से भी कोई भी कम हिंदू या ज़्यादा हिंदू नहीं है. हिंदुओं के नाम पर ये नफ़रत फैलाना और दूसरों को नीचा दिखाना बंद करिए ना. किसी के दुआ पढ़ने भर से आप कैसे आहत हो सकते हैं. जब कोई किसी हिंदू के मरने पर Rest In Peace लिखता तब वो भी तो किसी और भाषा, किसी और संस्कृति की परंपरा है. हिंदू धर्म के किस ग्रंथ में ऐसा लिखा है. लेकिन इस पर कोई आहत नहीं होता, सब सहजता से स्वीकार लेते हैं. वैसे ही दुआ में क्या दिक्कत है. वैसे इन ट्रोल्स की एक और जमात है. वो लता जी को संघी और फासिस्ट साबित करने में लगे हैं. एक अनवैरिफाइड ट्विटर हैंडल से लिखा गया कि –
''सावरकर की प्रशंसक की मौत पर दुखी होने की कोई जरूरत नहीं है. यह एक विरोधाभास है कि भारत के गैर-दक्षिणपंथी लोग कहते हैं कि सावरकर और गोडसे पर मीम बनाना तो नैतिक है, लेकिन उनकी फैनगर्ल के लिए ऐसा करना अनैतिक है.”ऐसे और भी ट्विटर हैं. फर्क बस इतना है इस तरफ किसी पार्टी के नेता नहीं दिखे. बाकी कूड़ा तो इस खेमे में भी कम नहीं था. कितना हिसाब करेंगे हम, छोड़िए.