The Lallantop
Advertisement

इस राजा ने वरदान में मांगे एक हजार कान

इनसिक्योर इंद्र ने बार बार राजा पृथु का घोड़ा चुराते रहे. अगर ब्रह्मा जी इंटरफियर न करते जो जा सकती थी इंद्र की जान.

Advertisement
Img The Lallantop
फोटो - thelallantop
pic
प्रतीक्षा पीपी
11 दिसंबर 2015 (Updated: 16 दिसंबर 2015, 11:16 AM IST) कॉमेंट्स
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share
राजा पृथु ने एक दिन सोचा कि भाई धरती पर सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है तो क्यों न घर बैठे पुण्य में इन्वेस्ट करें. उन्होंने डिसाइड किया कि एक नहीं, दो नहीं, सौ अश्वमेध यज्ञ करेंगे. 99वें यज्ञ तक आते आते इंद्र भगवान डरने लगे कि कहीं ये कल का लड़का सौ यज्ञ कर के मेरे जितना पावरफुल न हो जाए. इंद्र साधु बन कर चुप्पे से पृथु का यज्ञ वाला घोड़ा चुरा लाए. अत्रि ऋषि ने उन्हें भागते हुए देख लिया और लगा दिया पृथु के बेटे को उसके पीछे. जब इंद्र ने देखा कि चोरी पकड़ी जा सकती है, तो घोड़े को छोड़कर कट लिए. घोड़े को फिर पार्किंग में लगाया गया लेकिन इंद्र फिर उसे चुरा ले गए. ऐसे ही इंद्र बार बार घोड़ा चुराते और पृथु का बेटा बार बार उसे वापस ले आता. इसलिए उनके बेटे का नाम विजितश्व रखा गया. पृथु को इंद्र की करतूत के बारे में पता चला. पर यज्ञ के समय उन्होंने अश्वमेध व्रत लिया हुआ था. वरना इंद्र का तो कतल ही हो जाना था. फिर उन्होंने दिमाग लगाया, और बोले कि यज्ञ के मंत्रो की पावर से इंद्र को यहीं खींच लाएंगे और यज्ञ की आग में ही वो भस्म हो जाएंगे. जब इंद्र को नाम लेकर बुलाया गया, तब ब्रह्मा जी आए. उन्होंने पृथु से कहा भाई इंद्र तो देवता हैं. गलती से मिस्टेक हो गया होगा. उन्हें माफ कर दो. फिर भगवान विष्णु इंद्र को लेकर आए. पृथु ने इंद्र को माफ़ किया. भगवान विष्णु ने जब खुश होकर वरदान मांगने को कहा, तब पृथु ने एक हजार कान मांगे, जिससे वो भगवान का भजन सुन सकें. फिर पृथु ने पूरी सरकार विजितश्व के नाम कर दी और खुद संन्यासी बनकर जंगल में चले गए. (श्रीमद्भगवत महापुराण)

Advertisement