11 दिसंबर 2015 (Updated: 7 जनवरी 2016, 08:49 AM IST) कॉमेंट्स
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हिरण्याक्ष राक्षस का भगवान नारायण के अवतार के हाथों मरना तय था. हिरण्याक्ष ने महर्षि नारद को टेलीपैथी से कहा कि भगवान कहां हैं, हमको मिलना है. नारद जी बोले कि भगवान तो अभी धरती को रसातल से निकालने में बिजी हैं.
हिरण्याक्ष तुरंत भगवान के पास पहुंचा. उसने देखा कि भगवान जंगली सुअर के रूप में धरती को अपने दांतों पर उठाए बाहर निकल रहे हैं. हिरण्याक्ष ने भगवान से बहुत बदतमीज़ी से कहा- ओ मूर्ख. इस धरती को छोड़ और यहां से कट ले. आज मैं मोगैम्बो वाले मूड में हूं. यहीं तुझे निपटा दूंगा.
भगवान के दांतों पर धरती अटकी हुई थी, इसलिए उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. हिरण्याक्ष को ठंडक नहीं पड़ी. वो फिर बदतमीजी करते हुए भगवान को कोंचने लगा.
भगवान ने धरती को रखा पानी पर और बोले- बेटा बहुत टिपिर-टिपिर कर रहे थे, अब आओ तुमको बताते हैं. हम खुद जंगली सुअर का रूप धरे हुए हैं. तुम जैसे गली के कुत्ते से भला क्यों डरेंगे? ये कहकर भगवान ने राक्षस पर गदा चलाई. पर राक्षस था मायावी, उसने चला दी आंधी. बिजली कड़कड़ने लगी, चांद, सूरज सब छुप गए. फिर भगवान ने निकाला अपना सुदर्शन चक्र और उसके मायाजाल को काट दिया. फिर जड़े उन्होंने हिरण्याक्ष को 2-3 कंटाप ऐसे कि राक्षस गोल गोल घूमने लगा और आंखें बाहर आ गईं..
राक्षस का लग गया काम. जान तो गई ही, बेइज्जती अलग हुई.
(श्रीमद्भागवत महापुराण)