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ये संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद क्या है, जहां भारत के रास्ते में चीन रोड़ा बनकर खड़ा है

भारत 8वीं बार UNSC का अस्थाई सदस्य बना है

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जानिए भारत को स्थाई सदस्यता क्यों नहीं मिल पा रही है. फोटो- आजतक
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Varun Kumar
6 जनवरी 2021 (Updated: 6 जनवरी 2021, 01:16 PM IST)
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संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अस्थाई सदस्य के रूप में भारत का दो साल का कार्यकाल शुरू हो गया है. इस मौके पर UN सिक्योरिटी काउंसिल में भारत का राष्ट्रीय ध्वज लगाया गया. भारतीय ध्वज के साथ चार अन्य नए अस्थाई सदस्यों- नॉर्वे, केन्या, आयरलैंड और मैक्सिको के ध्वज भी लगाए गए. आइए आपको बताते हैं, यूनाइटेड नेशन्स की इस महत्वपूर्ण संस्था के बारे में. ये भी बताएंगे कि इसका काम क्या है, ये कहां है. इसमें भारत की स्थिति क्या है और चीन किस तरह भारत की उम्मीदों पर पानी फेरता रहा है. ग्लोबल सुरक्षा का सबसे बड़ा मंच संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद यानी UNSC को ग्लोबल सिक्योरिटी मैनेजमेंट का सबसे बड़ा मंच माना जाता है. संयुक्त राष्ट्र की सबसे महत्वपूर्ण यूनिट माना जाता है. पूरी दुनिया में सुरक्षा बनी रहे, यही इसका काम है. आपको पता है जिस साल सेकेंड वर्ल्ड वॉर हुआ था, यानि 1945 में, उसी साल UNSC को भी बनाया गया था. हालांकि इसका पहले सेशन 17 जनवरी 1946 को लंदन में हुआ था. दुनिया के पांच देश इस संगठन के स्थाई सदस्य हैं. ये देश हैं- अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और चीन. इनके अलावा 10 देश UNSC के अस्थाई सदस्य होते हैं.
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इसका A टु Z जानने के लिए खबर आखिर तक पढ़िएगा. फोटो-आजतक
अस्थाई सदस्य कैसे चुने जाते हैं? वैसे हमेशा से ऐसा नहीं था. पहले 11 सदस्य हुआ करते थे, फिर साल 1965 में इनकी संख्या को बढ़ाकर 15 कर दिया गया. हर साल पांच नए अस्थाई सदस्य UNSC के लिए चुने जाते हैं. अस्थाई सदस्यों को चुनते वक्त भौगोलिक प्रतिनिधित्व यानी Geographical representation को नज़र में रखा जाता है. ये परंपरा 1963 में शुरू हुई थी. वैसे UNSC में अस्थाई सदस्य देशों को चुनने का जो तरीका है, वो एकदम चकरा देने वाला है.
UNSC की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक, 10 अस्थाई सदस्यों में से पांच सदस्यों को दो साल के लिए चुना जाता है. ये प्रक्रिया हर साल होती है. 10 देशों में से पांच देश अफ्रीका और एशिया के होने चाहिए. एक ईस्टर्न यूरोप से, दो देश लैटिन अमेरिका और कैरीबियाई, बाकी दो देश वेस्टर्न यूरोपियन व अन्य इलाकों से होने चाहिए. वीटो पावर है सबसे खास UNSC के स्थाई सदस्य देशों का जलवा रहता है. इन स्थाई सदस्यों के पास ऐसा क्या है, जो अस्थाई सदस्यों के पास नहीं होता. उस चीज का नाम है वीटो पावर. वीटो लैटिन भाषा का शब्द है, जिसका मतलब है 'इसमें मेरी सहमति नहीं है'. सीधे शब्दों में कहें तो इनकार करना.
ये जो इनकार है, NO है, इसकी ताकत इतनी है कि चार सदस्य देश अमेरिका, ब्रिटेन, रूस और फ्रांस मसूद अजहर को ग्लोबल आतंकी घोषित करना चाहते थे, लेकिन चीन बोला- NO. मेरा वीटो है. अब चीन का ये जो NO है, ये बड़ा महंगा पड़ा. भारत की तमाम कोशिशों और चार देशों के जोर लगाने के बावजूद करीब एक दशक तक मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित नहीं किया जा सका. 2019 की मई में चीन ने अपना वीटो हटाया, तब जाकर मसूद को UNSC की कमिटी ने ग्लोबल आतंकी करार दिया. मतलब समझे... ये वीटो बहुत ताकतवर है. कैप्टन अमेरिका की शील्ड से भी ज्यादा.
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न्यूयॉर्क में यूएन सिक्योरिटी काउंसिल का मुख्यालय है. (फाइल फोटो)
क्या काम करता है UNSC UNSC का हेडक्वार्टर है अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में. कई फिल्मों में दिखाया गया है. सुदंर सी कांच की चमचमाती हुई बिल्डिंग. यूनाइटेड नेशन्स का लोगो. कुल मिलाकर जबरदस्त है. अब आप पूछेंगे कि वो सब तो ठीक है लेकिन यहां काम क्या होता है? यहां दरअसल प्लानिंग होती है. पूरी दुनिया की सुरक्षा की प्लानिंग. अंतरराष्ट्रीय शांति बनी रहे, कोई एक दूसरे पर हमला ना करे, आतंक का खात्मा हो, वगैरा वगैरा. शांति अभियान भेजने हों या फिर वैश्विक सैन्य अभियान, यहीं से तय किए जाते हैं. भारत की राह में चीन का रोड़ा जो देश इसके सदस्य हैं, उन सभी देशों को इसकी बात माननी होती है. किसी देश पर प्रतिबंध लगाना हो या फिर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के फैसले को लागू करना हो, संयुक्त राष्ट्र को UNSC के समर्थन की जरूरत होती है. कुल मिलाकर मामला भौकाली है. जो देश अस्थाई सदस्य हैं, वो एक बड़े संगठन का हिस्सा हैं. ऐसा समझ लीजिए जैसे किसी सत्ताधारी पार्टी में पदाधिकारी बन गए हों. और स्थाई सदस्य, उनका तो अपना जलवा है. वो एक ऐसे 'खास क्लब' में बैठे हैं, जिसमें वो किसी और को घुसने नहीं देना चाहते.
ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि भारत काफी वक्त से स्थाई सदस्यता के लिए जोर लगा रहा है, लेकिन इस क्लब में एंट्री लेना बड़ा कठिन रहा है. दूसरे अस्थाई देशों के साथ रेस लगाओ, चार्टर की बाधाएं पार करो, नियमों के बाउंसरों से भिड़ो, और फिर जब आप एंट्री के गेट पर पहुंचो, तो टॉप फाइव देशों में से कोई एक वीटो लगा दे. यानी NO बोल दे. सोचिए ज़रा. भारत के लिए तो ये मामला और भी पेचीदा है, क्योंकि चीन अंदर बैठा है जो पाकिस्तान की हिमायत लेता रहा है.
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भारत को स्थाई सदस्यता मिलने में रुकावट कहां है?

भारत दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश है, तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाला देश है, कई बड़े और मजबूत संगठनों का अहम हिस्सा है, संयुक्त राष्ट्र की ओर से जो मिशन भेजे जाते हैं, उनमें सबसे अधिक सैनिक भेजने वाला देश है, इसके बाद भी स्थाई सदस्यता से महरूम है. शायद चीन को डर है कि भारत अंदर आएगा तो उसके इरादों पर शक जताएगा, साउथ चाइना सी में उसकी हरकतों का विरोध करेगा, हॉन्ग-कॉन्ग के मुद्दे पर उसे घेरेगा. चीन का डर एक तरह से स्वाभाविक लगता है क्योंकि वो लगातार भारत की सीमाओं पर अतिक्रमण कर रहा है, पाकिस्तान की बेतहाशा मदद कर रहा है, और तो और भारतीय हितों को नुकसान पहुंचाने वाले काम कर रहा है. ऐसे में यकीनन भारत, चीन को घेरने की कोशिश करेगा. 7 बार अस्थाई मेंबर रहा है भारत भारत इससे पहले 7 बार UNSC में अस्थाई सदस्य रह चुका है. 1950-51, 1967-68, 1972-73, 1977-78, 1984-85, 1991-92 और 2011-12. पता है, साल 1975 में तो इस अस्थाई सदस्यता को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच जबरदस्त मार मची थी. आठ राउंड चुनाव चला था. और अस्थाई सदस्यता पाकिस्तान के पास चली गई थी. अब भारत आठवीं बार UNSC का अस्थाई सदस्य बना है.
हालांकि ऐसा कहा जाता है कि शुरुआत में भारत को स्थाई सदस्यता का ऑफर मिला था, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने चीन को यह सदस्यता दिला दी थी. इस बात के कोई प्रमाण तो नहीं मिलते, लेकिन इस मुद्दे पर अक्सर कांग्रेस और बीजेपी के बीच तनातनी का माहौल बन जाता है.

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