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क्या है रिया चक्रवर्ती पर दर्ज हुआ NDPS एक्ट केस, कैसे मिलती है इसमें सजा

NDPS एक्ट को भारत के सबसे कठोर कानूनों में गिना जाता है.

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रिया चक्रवर्ती पर एनडीपीएस एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया है.
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28 अगस्त 2020 (Updated: 28 अगस्त 2020, 12:53 PM IST)
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# 'चरस से भरा बैग पकड़ाया'
#'आदमी 5 किलो गांजे के साथ धरा गया'
ऐसी एक न एक खबर रोज़ दिखेगी अखबार में. चरस. गांजा. स्मैक. ये बात किसी के लिए नई नहीं है. कि तमाम घर इन नशों के चलते बर्बाद हो जाते हैं. गारंटीड नशा छूट जाएगा- ऐसे इश्तेहारों से छोटे शहरों की दीवारें और खंबे पुते रहते हैं. लेकिन ड्रग्स उतने ही धड़ल्ले से बड़े शहरों में भी लिए जाते हैं. और इसमें हम ग्लैमर इंडस्ट्री को कैसे छोड़ सकते हैं?
तो तमाम आरोपों के बाद अब रिया चक्रवर्ती पर ड्रग्स लेने और दिलवाने के आरोप है. आरोप लगा, तो नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो ने एनडीपीएस एक्ट के तहत एफआईआर भी दर्ज कर ली. अधिकारियों ने बताया कि रिया की मैरियुआना, एलएसडी और एमडीएमए जैसी प्रतिबंधित नशीले पदार्थों को लेकर कथित चैट सामने आई है. ऐसे में प्रतिबंधित नशीली दवाओं के सेवन और इस्तेमाल के आरोप में जांच शुरू की गई है. तो ये एनडीपीएस एक्ट क्या है और क्या बला हैं ये केमिकल ड्रग्स, समझेंगे आसान भाषा में.
रिया चक्रवर्ती पर पुलिस, सीबीआई, ईडी के बाद नारकोटिक्स ब्यूरो ने भी केस दर्ज कर लिया है.
रिया चक्रवर्ती पर पुलिस, सीबीआई, ईडी के बाद नारकोटिक्स ब्यूरो ने भी केस दर्ज कर लिया है.

अब सवाल उठता है कि यह एनडीपीएस एक्ट क्या है
# तो नशीले पदार्थों के सेवन, बेचने, बनाने को लेकर एक कानून है. इसका नाम है नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985.
# इस नाम में दो तरह की दवाएं छुपी हैं- नारकोटिक और साइकोट्रोपिक. इनके बारे में भी आपको बताएंगे. मगर पहले एक्ट के बारे में.
# इन दवाओं पर कंट्रोल करने वाले कानून को शॉर्ट में कहते हैं एनडीपीएस एक्ट. हिंदी में इसका नाम है स्वापक औषधि और मन:प्रभावी अधिनियम, 1985. इस कानून को नशीली दवा और मादक पदार्थ अधिनियम 1985 भी कहा जाता है.
# संसद ने साल 1985 में इसे पास किया था. यह कानून किसी एक व्यक्ति को मादक दवाओं के निर्माण, उत्पादन, खेती, स्वामित्व, खरीद, भण्डारण, परिवहन या उपभोग करने के लिए प्रतिबंधित करता है.
# बहुत सारे नशीले पदार्थ ऐसे होते हैं, जिनका उत्पादन जरूरी होता है. लेकिन इन पर कड़ी निगरानी भी रखनी होती है. नहीं तो बड़े स्तर पर उत्पादन किया जाएगा और लोगों में नशे की लत बढ़ जाएगी. ऐसे में सरकार एनडीपीएस एक्ट के तहत नशीले पदार्थों पर नियंत्रण करती है.
# इस कानून में अभी तक तीन बार 1988, 2001 और 2014 में बदलाव भी हुए हैं.
किन-किन दवाओं पर है प्रतिबंध
# एनडीपीएस एक्ट के तहत प्रतिबंधित दवाओं की एक लिस्ट जारी होती है. यह लिस्ट केंद्र सरकार जारी करती है. यह लिस्ट समय-समय पर बदलती रहती है. इसके लिए राज्य सरकारें भी सलाह देती हैं या सिफारिश करती हैं.
अब जैसा कि हमने बताया. लिस्ट में दो तरह की दवाएं होती हैं-
पहला, नारकोटिक यानी नींद लाने वाले ड्रग्स. नारकोटिक में जो दवाएं या पदार्थ आता है, वह प्राकृतिक होता है. या फिर प्राकृतिक चीजों से बनता है. जैसे- चरस, गांजा, अफीम, हेरोइन, कोकेन, मॉर्फीन आदि.
दूसरा, साइकोट्रोपिक यानी दिमाग पर असर डालने वाले ड्रग्स. साइकोट्रोपिक में जो दवाएं आती हैं, वो केमिकल बेस्ड होती है. या फिर इन्हें दो-तीन तरह के केमिकल को मिलाकर बनाया जाता है. जैसे- एलएसडी, एमएमडीए, अल्प्राजोलम आदि.
प्रतिबंधित नारकोटिक्स दवाएं.
प्रतिबंधित नारकोटिक्स दवाएं.

ये दवाएं या नशीले पदार्थ ऐसे होते हैं, जो इंसानी जीवन के लिए संकट खड़ा कर सकते हैं. इनमें वह दवाइयां भी होती हैं, जो जीवनरक्षक होती हैं. लेकिन ज्यादा लेने पर नशा होता है और जान भी जा सकती है. जैसे- अल्प्राजोलम. अक्सर यह दवा नींद न आने की शिकायत करने वाले लोगों को दी जाती है. लेकिन इनका तय सीमा से ज्यादा सेवन जानलेवा होता है. नीचे आप उन दवाओं की लिस्ट देख सकते हैं, जो बैन हैं और एनडीपीएस एक्ट के तहत आती हैं. नीचे आप वो साइकोट्रोपिक दवाएं देख सकते हैं, जो प्रतिबंधित हैं.
नीचे वो साइकोट्रोपिक दवाएं हैं जो प्रतिबंधित हैं-

एनडीपीएस एक्ट में कार्रवाई कौन करता है?
इस एक्ट के तहत पुलिस भी कार्रवाई कर सकती है. इसके अलावा केंद्र और राज्यों में अलग से नारकोटिक्स विभाग भी बने होते हैं. यह नशीले पदार्थों की तस्करी और इसके अवैध तरीके से इस्तेमाल पर नज़र रखते हैं. नशीले पदार्थों से जुड़े मामलों में कार्रवाई करने वाली सर्वोच्च जांच संस्था नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो है. यह केंद्रीय एजेंसी है. यानी देश में नशीले पदार्थों का मामला होने पर यह जांच कर सकती है. इसकी स्थापना 17 मार्च, 1986 को हुई थी.
देश में हर साल कई तरह की ड्रग्स बरामद होती है.
देश में हर साल कई तरह की ड्रग्स बरामद होती है.

एनडीपीएस एक्ट में किस तरह की सजाएं होती हैं
एनडीपीएस एक्ट के तहत मुख्य रूप से तीन तरह की सजाएं होती हैं. यह सजाएं प्रतिबंधित पदार्थों की मात्रा के आधार पर होती है. मात्रा के आधार पर तीन तरह की सजाएं होती हैं-
1. अल्प मात्रा या कम मात्रा. इसमें एक साल की सजा हो सकती है. या फिर 10 हजार रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है. या फिर एक साल की जेल और 10 हजार रुपये का जुर्माना, दोनों हो सकता है. इस तरह का अपराध जमानती होता है. यानी आसानी से जमानत मिल जाती है. हालांकि बार-बार पकड़े जाने पर जमानत मिलना मुश्किल हो जाता है.
2. वाणिज्यिक मात्रा (कमर्शियल क्वांटिटी). इसके तहत 10 से 20 साल तक की सजा हो सकती है. और एक से दो लाख रुपये तक जुर्माना शामिल है. इस तरह के अपराध गैर जमानती होते हैं. यानी पकड़े जाने पर जमानत नहीं मिलती.
3. अल्प मात्रा और वाणिज्यिक मात्रा के बीच की मात्रा होने पर 10 साल तक की सजा और एक लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है. या दोनों हो सकते हैं. ऐसे मामलों में जमानत मिलना या न मिलना पकड़े गए नशीले पदार्थ और पुलिस की धाराओं पर निर्भर करता है.
अब यहां भी एक पेच है. अपनी स्क्रीन पर ये टेबल देखिए. पेच ये है कि नशीले पदार्थों की अल्प मात्रा या कमर्शियल मात्रा अलग-अलग हो सकती है. यानी एक किलो गांजा और 2 ग्राम कोकेन, दोनों अल्प मात्रा वाले अपराध में आते हैं. नशे के टाइप के हिसाब से मात्रा तय होती है.
एनडीपीएस एक्ट के तहत नशीली दवाओं की मात्रा के आधार पर सजा होती है.
एनडीपीएस एक्ट के तहत नशीली दवाओं की मात्रा के आधार पर सजा होती है.

सजा किन-किन धाराओं में मिलती है
# एनडीपीएस एक्ट में सजा के लिए कई तरह की धाराएं लगती हैं, जिन्हें आप इस टेबल में देख सकते हैं. इसमें अफीम की खेती करना, ड्रग्स लाना-ले जाना, ड्रग्स की तस्करी करना, जबरन किसी को ड्रग्स करवाना, ड्रग्स का कारोबार करना या इसमें पैसा लगाना या फिर खुद ड्रग्स लेना. सब शामिल है.
NDPS कानून में अपराध की सजा.
NDPS कानून में अपराध की सजा.

# एक और बात. अगर कोई व्यक्ति बार-बार अपराध करता है, तो पहले की तुलना में अगली बार डेढ़ गुना सजा मिलती है. साथ ही मृत्युदंड भी दिया जा सकता है. ऐसा एनडीपीएस एक्ट की धारा 31 (क) के तहत किया जा सकता है. हालांकि ऐसा बहुत कम होता है.
# इस कानून में एक राहत भी है. अगर कोई व्यक्ति ड्रग्स के नशे का आदी है, लेकिन वह इसे छोड़ना चाहता है, तो सेक्शन 64ए के तहत उसे इम्युनिटी यानी राहत मिल जाएगी. सरकार उसका इलाज भी कराती है.
# एनडीपीएस एक्ट के तहत सुनवाई के लिए स्पेशल कोर्ट के गठन का प्रावधान भी है. इन कोर्ट का गठन एनडीपीएस एक्ट की धारा 36 के तहत होता है. ये कोर्ट नशीले पदार्थों से जुड़े मामलों की ही सुनवाई करते हैं.
# एनडीपीएस एक्ट के फर्जी मुकदमों से बचाने के लिए धारा 50 बचाव का काम करती है. इसके तहत अगर पुलिस या किसी जांच अधिकारी को किसी के पास नशीला पदार्थ होने का शक हो, तो उसकी तलाशी किसी गजेटेड अधिकारी या मजिस्ट्रेट के सामने ही ली जा सकेगी.
# एनडीपीएस एक्ट में तीन पौधों को भी शामिल किया गया है. इनकी खेती, खरीदने-बेचने, सेवन, आयात-निर्यात और उत्पादन के लिए सरकार से परमिशन लेना जरूरी है. अगर ऐसा नहीं होता है, तो सजा मिल सकती है. ये पौधे हैं- कोका जिससे कोकेन बनता है, गांजा और पोस्त जिससे अफ़ीम बनती है.
# अगर मामला संगीन हो जिसमें सरकारी हस्तक्षेप हो, तो वो जितनी चाहे उतनी स्पेशल कोर्ट लगा सकती है.
अब सवाल, क्या शराब भी एनडीपीएस एक्ट में आती है?
नहीं, शराब इस कानून के तहत नहीं है. शराब से जुड़े मामलों के लिए एक्साइज एक्ट होता है. इसमें शराब से जुड़े नियम होते हैं. जैसे- एक बार कितनी शराब खरीदी जा सकती है, कहां पी सकते हैं. शराब के एनडीपीएस एक्ट में नहीं आने के पीछे कई कारण है. जैसे- शराब का नशा, गांजा, भांग या अफीम की तुलना में अलग तरह का होता है. साथ ही शराब प्रतिबंधित दवाओं या पदार्थों की श्रेणी में भी नहीं आती है.
अब दूसरा सवाल- चरस, गांजा बैन है तो भांग दुकानों पर क्यों मिलती है?
पहली बात तो यह कि भांग का नशा, गांजे और चरस की तुलना में हल्का होता है. क्योंकि गांजे की तुलना में भांग में टेट्रा हाइड्रोकैनाबिनोल (THC) कम होता है. THC के कम या ज्यादा होने का असर नशे की मात्रा पर पड़ता है. इसके अलावा एनडीपीएस एक्ट में भी एक लूपहोल है, जो भांग की खरीदी-बिक्री और इस्तेमाल की छूट देता है. दरअसल, इस कानून में नर पौधे से बनने वाली भांग पर प्रतिबंध नहीं है, जबकि मादा पौधे से बनने वाली चरस और गांजे पर है. ऐसे में भांग को सरकारी ठेकों के द्वारा बेचा जाता है, जिससे सरकारी खजाने में पैसे जाते हैं.
सभी नशे स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक
अब यहां ये कहना न होगा कि ये सभी नशे स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक हैं. फिर चाहे वो शारीरक स्वास्थ्य हो या मानसिक. सिगरेट के लिए तो मुकेश हराने का सरकारी विज्ञापन आता था, जो कालांतर में मीम भी बन गया. लेकिन नारकोटिक्स के प्रभाव के बारे में न हमें ज्यादा पता होता है, न ही हम इसके बारे में जानकारी लेने या बांटने की कोशिश करते हैं. कभी-कभी नशा करना, ट्रिपी म्यूजिक सुनना हमें बड़ा आकर्षक और कूल लगता है. शायद हमें बेहतर भी महसूस करवाए. लेकिन हर एक नशा, जो कुछ घंटों के लिए हमें बेहतर महसूस करवाता है, उतने ही दिन हमारे जीवन से कम करता जाता है. सुरक्षित रहें, स्वस्थ रहें.


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