क्या है सिंचाई घोटाला, जिसके आरोप में फंसे अजित पवार को फडणवीस जेल भेजने की बात कहते थे
मगर कुछ साल बाद उन्हें अपना डिप्टी सीएम चुन चुके थे.
Advertisement

अजित पवार पर 70 हज़ार करोड़ के सिंचाई घोटाले का हिस्सा होने के आरोप हैं.
महाराष्ट्र में राजनीतिक उठापटक के बीच सबसे ज़्यादा सुर्खियों में रहे शख़्स हैं NCP के नेता अजित पवार. पहले BJP के साथ गए. उप-मुख्यमंत्री बने. और फिर 26 नवंबर को पद छोड़कर घर वापसी कर ली.इससे ठीक एक दिन पहले यानी 25 नवंबर को एक ख़बर आई कि महाराष्ट्र के एंटी-करप्शन ब्यूरो(ACB) ने हज़ारों करोड़ के सिंचाई घोटाले से जुड़े 9 केस बंद कर दिए हैं. सिंचाई घोटाले के मामलों में अजित पवार भी नामज़द हैं. 9 केस बंद होने की ख़बरें आईं तो लोग कहने लगे 'BJP को समर्थन देने का इनाम मिला है अजित दादा को.'
इस पर ACB ने सफाई दी कि बंद किए गए 9 केसों में कोई भी अजित पवार से जुड़ा नहीं है. आसान भाषा में जानिए क्या है ये सिंचाई घोटाला और इसके सियासी ताल्लुक़ात.

चुनावी रैली के दौरान अजित पवार.
क्या है सिंचाई घोटाला?
मामला 2011-12 का है. भारत के नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक (CAG) ने अपनी रिपोर्ट्स में महाराष्ट्र के जल संसाधन मंत्रालय में हुईं गड़बड़ियां उजागर की थीं. CAG की रिपोर्ट के मुताबिक, जल संसाधन मंत्रालय लंबे समय के लिए योजना नहीं बना रहा है, न ही प्राथमिकता के आधार पर प्रोजेक्ट्स को चुन रहा है. पर्यावरण से जुड़ी मंज़ूरी भी सही समय पर नहीं मिल रही है और प्रोजेक्ट्स लटक रहे हैं. इससे लागत बढ़ रही है.

घोसीखुर्द डैम. इसके निर्माण में भी भ्रष्टाचार की शिकायतें आईं थीं.
दूसरी ओर इकनॉमिक सर्वे की रिपोर्ट से सामने आया कि 2001-02 से 2011-12 के बीच सिंचाई के लिए 70 हज़ार करोड़ खर्चे गए, लेकिन राज्य की सिंचाई क्षमता में सिर्फ 0.1 प्रतिशत का इज़ाफा हुआ. उस व़क्त अनुमान लगाया गया कि ये सिंचाई घोटाला क़रीब 35 हज़ार करोड़ का हो सकता है. सिंचाई मंत्रालय 1999 से ही NCP के पास था. घोटाला उजागर होने तक अजित पवार लंबे समय तक इस मंत्रालय के मंत्री रहे थे. बाद में उन्होंने इस्तीफा भी दिया था.

जब अजित पवार महाराष्ट्र में जल संसाधन मंत्री थे, तब शरद पवार केंद्र में कृषि मंत्री थे.
घोटाला सामने कैसे आया?
फरवरी 2012 में महाराष्ट्र के सिंचाई विभाग में चीफ इंजीनियर रहे विजय पंढारे ने घोटाले का खुलासा करते हुए लेटर लिखा. तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण और राज्यपाल के शंकरनारायणन को. बताया डैम बनाने में कई तरह की जालसाज़ी हो रही है. अनुमानित लागत बढ़ाई जा रही है. पंढारे ने मुख्यमंत्री और राज्यपाल से CBI जांच की सिफारिश करने का आग्रह किया था. विजय पंढारे के अलावा RTI एक्टिविस्ट अंजलि दमानिया और प्रवीण वटगांवकर ने भी इस घोटाले का पर्दाफाश किया था. CAG और इकॉनमिक सर्वे की रिपोर्ट ने इन एक्टिविस्टों के दावों को और मज़बूती दे दी.

अंजलि दमानिया.
कैसे आरोप थे?
अजित पवार पर लगे आरोप 2009 में बतौर जल संसाधन मंत्री रहते हुए, प्रोजेक्ट्स को दी गई मंजूरियों से जुड़े हैं. आरोप लगे कि पहले प्रोजेक्ट्स को कम लागत का बताकर फटाफट मंज़ूरी दे दी जाती है. बाद में प्रोजेक्ट्स में बदलाव कर दिए जाते हैं. उदाहरण के लिए महराष्ट्र के कोंकन क्षेत्र में कोंढाणा डैम का बजट बिना कोई मूल्यांकन किए 80 करोड़ से बढ़ाकर 435 करोड़ कर दिया गया. और फिर बाद में सरकार को ये प्रोजेक्ट बंद करना पड़ा. जून 2009 से अगस्त 2009 के बीच यानी सिर्फ 3 महीनों में विदर्भ इलाके में चल रहीं 38 सिंचाई परियोजनाओं का बजट बढ़ा दिया. 6,672 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 26,772 करोड़ रुपये. इसी पर बवाल हो गया. क़रीब 70 हज़ार करोड़ के अनुमानित घोटाले का ये एक हिस्सा था.

हनुमान सागर डैम, अकोला, महाराष्ट्र.
तत्कालीन सरकार ने क्या एक्शन लिया?
जब मार्च 2012 में महाराष्ट्र असेंबली में सालाना इकॉनमिक सर्वे रिपोर्ट रखी गई तो पता चला कि 10 सालों में 70 हज़ार करोड़ खर्च करने के बाद भी महाराष्ट्र का सिंचित क्षेत्र सिर्फ 0.1 फीसदी ही बढ़ा है. विवाद बढ़ा तो तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने अगस्त 2012 में श्वेत पत्र जारी करने का आदेश दिया. सितंबर 2012 को तत्कालीन जल संसाधन मंत्री अजित पवार ने इस्तीफा दिया. नवंबर 2012 में श्वेत पत्र आया. इसमें लिखा था कि 10 सालों में सिंचित क्षेत्र 28 फीसदी बढ़ा है. मुख्यमंत्री ने कह दिया कि अजित पवार को मंत्रीमंडल में शामिल होना चाहिए. अब मुख्यमंत्री ने कह दिया था तो अजित पवार को दोबारा मंत्री बनाया गया. हालांकि, विपक्ष को ये मंज़ूर नहीं था. इसलिए एक SIT बनाई गई. चेयरमैन बनाए गए डॉ. माधव चितले. जून 2014 में रिपोर्ट आई. अजित पवार और तत्कालीन सुनील तत्करे को क्लीन चिट मिल गई. पूरा आरोप लगा टॉप ऑफिसर्स पर.

तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण.
जब फडणवीस सरकार आई तो क्या हुआ?
2014 में चुनावी भाषण के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस दम भरते थे कि अगर उनकी सरकार आई तो अजित पवार जेल में चक्की पीसेंगे. जनता ने बहुमत दिया. सरकार बनी. और दिसंबर 2014 में फडणवीस ने सिंचाई घोटाले में अजित पवार की भूमिका जांचने के लिए एंटी-करप्शन ब्यूरो को इजाज़त दी. जांच के दायरे में तत्कालीन मंत्री सुनील तत्करे और बड़े अधिकारी भी आए. कोंकन के जिस डैम की बात आपको पहले बताई, उससे जुड़े 4 इंजीनियरों को बर्ख़ास्त कर दिया गया.

3 दिन की सरकार में मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री रहे देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार.
लेकिन फडणवीस की 5 सालों की सरकार में अजित पवार को गिरफ्तार नहीं किया गया. नवंबर 2018 में भाजपा नेता कहने लगे कि अजित पवार को किसी भी वक्त गिरफ्तार किया जा सकता है.
लेकिन ठीक एक साल बाद उसी महाराष्ट्र में अजित पवार ने उप-मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. उसी भाजपा की देवेंद्र फडणवीस सरकार में. बाद में इस्तीफा भी दिया और अब चर्चा है कि दोबारा शिवसेना-कांग्रेस-NCP सरकार में उप-मुख्यमंत्री बनेंगे.

पहले NCP के सदन के नेता चुने गए थे अजित पवार.
वीडियो- एनसीपी चीफ शरद पवार ने क्यों कहा, 'ये गोवा, कर्नाटक और मणिपुर नहीं, महाराष्ट्र है'

.webp?width=60)

