बर्बादी से कैसे खुलते हैं आर्थिक तरक्की के दरवाज़े? ये बताने वाले 3 इकनॉमिस्ट को मिला नोबेल
"न कंचित् शाश्वतम्", कुछ भी परमानेंट नहीं है. टूटकर बिखरने और फिर उसी मलबे से कुछ नया, असरदार और बेहतर गढ़ लेने को ही ‘क्रिएटिव डिस्ट्रक्शन’ कहा जाता है. इसी कॉन्सेप्ट ने तीन अर्थशास्त्रियों को नोबेल पुरस्कार दिला दिया है.

नोकिया के ज़माने से, आईफ़ोन के स्टेटस सिंबल तक. टेप रिकॉर्डर में घूमती कैसटों से स्पॉटिफ़ाई के सब्सक्रिप्शन तक. सपना सिनेमा के दौर से मल्टीप्लेक्स, फिर नेटफ़्लिक्स एंड चिल तक. क्या कुछ नहीं बदला. ‘हमारे ज़माने’ से ऑबसेस्ड कई ‘भिड़े’ नॉस्टेल्जिया से बाहर नहीं निकले, पर ये बदलाव की कहानी ही है जो असल में नहीं बदलती. ज्यों की त्यों है. पुनर्निर्माण से बड़ी कोई शक्ति नहीं. नए के लिए पुराने को टूटना ही होता है. ये जिद नहीं है, नियति है.
"न कंचित् शाश्वतम्", कुछ भी परमानेंट नहीं है. टूटकर बिखरने और फिर उसी मलबे से कुछ नया, असरदार और बेहतर गढ़ लेने को ही ‘क्रिएटिव डिस्ट्रक्शन’ कहा जाता है. इसी कॉन्सेप्ट ने तीन अर्थशास्त्रियों को नोबेल पुरस्कार दिला दिया है. ये तीनों कमाल के अर्थशास्त्री हैं Joel Mokyr, Philippe Aghion और Peter Howitt. इन्होंने इकोनॉमिक्स में इस क्रिएटिव डिस्ट्रक्शन और इससे होने वाली इकोनॉमिक ग्रोथ और इसको रोकने की कोशिश करने वाले पूरे नेक्सस का हिसाब समझा दिया.
- क्या है ये पूरा मसला?
- कैसे किसी एक चीज़ की तबाही, आर्थिक समृद्धि के जबर रास्ते खोल देती है?
- और क्यों एक पूरा नेक्सस इस प्रॉसेस में रूठे हुए फूफा जी की भूमिका निभाता है?
आज इसे समझते हैं.
#क्या है क्रिएटिव डिस्ट्रक्शन?
एक थॉट एक्सपेरिमेंट से शुरुआत करते हैं. वाशिंग मशीन और कपड़े प्रेस करने वाले आयरन का इस्तेमाल हम सब करते हैं. लेकिन मार्केट में इसकी वजह से काफी चेंज आया. क्या? पहले जो हर मोहल्ले और कॉलोनी में कपड़े धोने वाले हुआ करते थे, उनकी ज़रूरत खत्म हो गई. लोग या तो खुद अपने कपड़े धोकर प्रेस कर लेते हैं या फिर वहां भेज देते हैं… Sir Loondry meme.
इस बदलाव के बीच अर्थव्यवस्था में बहुत कुछ हुआ. इसे समझते हैं इस सिचुएशन के ही उदाहरण से.
मान लीजिए मोहल्ले में 20 घर हैं. कपड़े धोने वाला हर महीने हर घर के 100 कपड़े धोके, प्रेस करता है. एक कपड़े का 10 रुपये लेता है. माने महीने भर का कुल आउटपुट, 20 *100*10, यानी 20 हज़ार रुपये. पर सोचिए, मोहल्ले के हर घर ने अगर एक एक ऑटोमैटिक वाशिंग मशीन ख़रीद ली तो? एक ढंग की ऑटोमैटिक वाशिंग मशीन 25 से 30 हज़ार की आती है, और आयरन का दाम अलग से. अब मोहल्ले के बजाय पूरे ज़िले में इसकी डिमांड बनने लग जाए तब, या फिर पूरे देश में डिमांड उठेगी तब?
ऐसे में अर्थव्यस्था को नई उड़ान मिलेगी. जैसे,
- कई वाशिंग मशीन और आयरन बनाने वाली कंपनियां खुलेंगी.
- इन कंपनियों को इंजीनियर चाहिए, टेक्निशियन चाहिए, सेल्समैन चाहिए, MBA वाले.
- लॉन्ड्री का बिजनेस चलाने वाले Entrepreneur भी तो पैदा होंगे.
मतलब, एक टेक्नोलॉजी की वजह से पुराने कपड़े धोने वालों का कारोबार जरूर ख़त्म हुआ, पर कुछ हाई स्किल्ड जॉब्स भी बनीं. इस सब के साथ अर्थव्यवस्था का आउटपुट बढ़ेगा.
कैसे?
क्योंकि अर्थव्यस्था में हाई-टेक सामान की मैनुफैक्चरिंग होगी, जो देश की जीडीपी में एक कपड़े धोने वाले से ज़्यादा बड़ा योगदान करेगी, क्वालिटी और पैसे दोनों के मामले में. इसे ही अर्थव्यवस्था के मामले में ‘क्रिएटिव डिस्ट्रक्शन’ कहते हैं. वही क्रिएटिव डिस्ट्रक्शन, जिसने BSNL को ख़त्म किया, उसकी जगह Jio सबसे बड़ा नेटवर्क प्रोवाइडर बन गया पर, इंटरनेट का पूरा गेम बदल गया. सस्ते और तेज इंटरनेट की वजह से कई इंडस्ट्रीज़ उभरीं.
मसलन, ई-कॉमर्स इंडस्ट्री. ब्लिंकिट, इंस्टामार्ट जैसी क्विक कॉमर्स, इंस्टाग्राम इन्फ्लुएंसर्स ने भी ‘कच्चा बादाम’ की रील्स से खूब पैसे कमाए. ये सब तो ख़ुद-ब-ख़ुद हो रहा था, फिर किसी को नोबेल प्राइज देने की क्या जरूरत थी?
#क्यों मिला नोबेल प्राइज?
पहले के ज़माने में क्रिएटिव डिस्ट्रक्शन हमेशा नहीं होता था. अर्थव्यवस्था अक्सर स्टैग्नेशन की समस्या से जूझती थी. यानी आर्थिक तरक्की न के बराबर थी. कभी-कभी कोई बड़ी डिस्कवरी हो जाती थी. जैसे, मध्यकाल में बेहतर जहाज बने तो यूरोप और भारत के बीच समुद्री व्यापार बढ़ा. इससे हुई आर्थिक तरक्की और लोगों ने नोट छापे. हालांकि इनोवेशन का सिलसिला कंटीन्यूअस नहीं था.
Joel Mokyr ने बताया कि अगर इकोनॉमी में एक के बाद एक नए इन्वेंशन्स हो रहे हैं. तो बस ये जान लेना काफ़ी नहीं कि ये नया इनोवेशन बेहतर है. इससे कारोबार आसान बन रहा है. या कारोबार बढ़ रहा है. इसके साथ ये भी समझना ज़रूरी है कि वो काम क्यों कर रही है. इसे जहाज़ वाले उदाहरण से समझते हैं. बेहतर जहाज बने तो यूरोप और भारत के बीच समुद्री व्यापार बढ़ा. लेकिन तीन चार सदियों तक किसी ने इस चीज़ पर फोकस नहीं किया कि कैसे इन जहाज़ों की रफ़्तार बढ़ाई जाए, इसे हवा के भरोसे छोड़ने के बजाए इंजन से पावर दिया जाए. इसलिए क्रिएटिव डिस्ट्रक्शन का कॉन्सेप्ट इम्प्लीमेंट नहीं हो पाया.
बाक़ी दोनों अर्थशास्त्री Philippe Aghion और Peter Howitt ने 1992 में क्रिएटिव डिस्ट्रक्शन का पूरा मैथमैटिकल मॉडल ही बना दिया. माने इन्वेंशन से अर्थव्यवस्था का पहिया कितनी स्पीड से दौड़ेगा. ये भी फार्मूला लगा कर चेक कर सकते थे. लेकिन उन्होंने साथ में ये भी समझाया कि ये क्रिएटिव डिस्ट्रक्शन का खेल इतना सिंपल नहीं है. इससे इकॉनमी में लड़ाई-झगड़ा भी होता है.
कैसे?
जो कंपनियां पुरानी टेक्नोलॉजी पर चल रही हैं, वो नई टेक्नोलॉजी को रोकने की पूरी कोशिश करती हैं. क्योंकि इससे उनका तो नुकसान हो जाएगा. ऐसे में इकॉनमी में कई गुट बनने लगते हैं. जैसे, ओला-उबर आए तो ऑटो वालों ने खूब विरोध किया. क्योंकि उनका मार्केट में कंट्रोल कम होने लगा. लेकिन सोसाइटी ने ओला-उबर वाली इनोवेशन को एक्सेप्ट किया. इसलिए ये बदलाव संभव हो पाया. लेकिन अगर सोसाइटी इन कॉन्फ्लिक्ट्स को स्मार्टली हैंडल नहीं करेगी, तो इनोवेशन की प्रक्रिया रुक जाएगी.
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