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चिप्स नमकीन में पड़ने वाले इस तेल की कहानी जान लोगे तो खाने के पहले दो बार सोचोगे!

ताड़ का तेल क्या कमाल करता है?

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प्रतीकात्मक तस्वीर. (फ़ोटो-आजतक)
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प्रशांत मुखर्जी
26 अक्तूबर 2021 (Updated: 26 अक्तूबर 2021, 06:39 AM IST) कॉमेंट्स
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ताड़ का पेड़ तो आपने देखा ही होगा. नहीं देखा तो नीचे लगी है फ़ोटो. वो देखिए. अब इस ताड़ के फल को अंग्रेज़ी में पाम कहते हैं और इससे बनता है पाम ऑयल (Palm Oil). ताड़ का तेल. अब मुमकिन है कि अपनी जानकारी में आपने इसका इस्तेमाल नहीं किया होगा. लेकिन ब्रेड, बिस्किट, चिप्स, कुरकुरे हो या इस तरह की चीज़ें, इस तरह के पैकेट बंद फ़ूड में यही ताड़ का तेल इस्तेमाल में लिया जाता है. चेहरे पर लगाने वाली क्रीम और शैम्पू में भी ये पाम ऑयल होता है. और इस ख़बर में हम आपको बताएंगे कि क्या ताड़ का तेल सही होता है, खाने, और पोतने-लगाने में? लेकिन ताड़ के तेल की बात अचानक से क्यों? क्योंकि बहाना है ताड़ के तेल का इम्पोर्ट. सितंबर 2021 में भारत का ताड़ के तेल का आयात साल 2020 के मुक़ाबिले करीब दोगुना हो गया है. सितंबर 2021 में ताड़ के तेल का कुल आयात 12.62 लाख टन था. वहीं, सितंबर 2020 में ये आँकड़ा 6.43 लाख टन था.
खाने के तेल के कारोबारियों का एक समूह है सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SEA). समूह ने कहा कि सितंबर महीने में देश का कुल खाने के तेल आयात एक साल पहले की तुलना में 66 प्रतिशत बढ़कर रेकॉर्ड 17 लाख टन हो गया. इससे पहले, भारत ने अक्टूबर 2015 में 16.51 लाख लीटर का आयात किया था.
Palm Tree
ताड़ के पेड़ और फल की तस्वीर. (फ़ोटो-आजतक)
तेल का आयात नया रिकॉर्ड SEA द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक़ सितंबर महीने में भारत ने सबसे ज़्यादा पाम तेल इंपोर्ट इंडोनेशिया से किया. भारत ने इंडोनेशिया से 8 लाख 20 हज़ार टन पाम तेल लिया. वहीं, दूसरे नंबर पर मलेशिया रही जिसने भारत को 3 लाख 54 हज़ार टन पाम तेल दिया.
# सितम्बर 2021 में इंडोनेशिया से लिया गया तेल : 8,20,301 टन # सितम्बर 2021 में मलेशिया से लिया गया तेल : 3,54,462 टनताड़ के तेल का इम्पोर्ट क्यों बढ़ा? SEA के कार्यकारी निदेशक डॉ बीवी मेहता के मुताबिक़, भारत ने पहली बार 1996 में पाम तेल का आयात शुरू किया था. लेकिन, तब से लेकर अब तक बीते महीने सितंबर में हुआ इंपोर्ट अब तक का रेकॉर्ड बन गया है.
लेकिन जब खाने का तेल महंगा है, ऐसे में तेल का आयात क्यों इतना चंपा हुआ है? खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के काम कारने वाले एक शोधार्थी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि ऐसा ये दो कारणों से हुआ है. पहली वजह है, भारत सरकार द्वारा पाम तेल पर इंपोर्ट ड्यूटी घटाना, जिसे जुलाई महीने से लागू किया गया था. और दूसरी बड़ी वजह है भारतीय बाज़ार में खाने के तेलों के आसमान चूमते दाम. मतलब डेटा क्या दें, बाज़ार में जाकर खाना बनाने का कोई भी तेल ख़रीदिए, आटा-दाल के साथ तेल का भी भाव समझ में आ जाएगा.
अब महंगाई इतनी थी कि 30 जून 2021 को खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय द्वारा जारी एक अध्यादेश के मुताबिक़ रीफ़ाइंड पॉम ऑयल के इंपोर्ट को "रिस्ट्रिक्टेड" से "फ़्री" कैटेगॉरी में डाल दिया गया था. जिस वजह से इसके इंपोर्ट पर कोई ड्यूटी नहीं लगाई जा रही है. सरकार का ये मानना था कि इससे भारतीय बाज़ार में ज़्यादा तेल आएगा और इससे खाने के तेल के दामों में कमी आएगी. और इम्पोर्ट इसलिए इतना बढ़ा हुआ माना जा सकता है. कौन निकालता है तेल? ताड़ का तेल जिस पेड़ से बनता है, वो मूल रूप से अफ्रीका में पाया जाता है. वहां से इंडिया में कैसे आ गया? वर्ल्ड वाइल्डलाइफ़ फ़ेडरेशन के मुताबिक़ क़रीब 100 साल पहले दक्षिण-पूर्वी एशिया में ताड़ के पेड़ को सजावटी पेड़ की तरह लाया गया था. भूगोल के इस हिस्से में ताड़ का तेल निकालने वाले कौन-कौन से देश आते हैं? इंडोनेशिया, मलेशिया, श्रीलंका. दुनिया भर में ऐसे कुल 42 देश हैं. अब दूसरे देशों के पास समुद्र वाला बढ़िया हिसाब किताब नहीं है, तो उनकी गिनती इस फ़ेहरिस्त में नहीं कर सकते.
अब ताज़ा आंकड़ा बताता है कि इंडोनेशिया और मलेशिया दुनिया भर में पाम तेल की आपूर्ति का 85 प्रतिशत तेल बना रहे हैं. मतलब एकदम हचककर तेल पेराई चल रही है. कैसे निकलता है तेल? पाम तेल कैसे बनता है ये भी समझ लेते हैं. ये तेल ताड़ के पेड़ के फल से बनता हैं. नीचे देखिए फ़ोटो. अब तेल निकालने की टेक्नीक है दो.एक तरीक़ा है कच्चे ताड़ के फल को निचोड़ कर तेल निकालना. और दूसरा तरीक़ा है ताड़ की गिरी से तेल निकालना. मतलब जैसे नारियल के अंदर होता है सफ़ेद वाला. वैसा ही. वही वाली गिरी, जिसको बहुत सारे इलाक़ों में 'गरी' कहा जाता है. अब इस गिरी को भी नारियल की तरह तोड़कर निकालना पड़ता है. फिर उससे निकलता है तेल.
दुनिया भर में खाने की तेल की खपत का एक तिहाई हिस्सा ताड़ तेल से पूरा होता है, ऐसा दावा है वर्ल्ड वाइल्डलाइफ़ फ़ेडरेशन का. इसके कई कारण है. सबसे बड़ा और ठोस कारण है इसके पेड़ की खेती में सहूलियत और इसकी किफ़ायती क़ीमत.
Palm Oil
ताड़ के पेड़ का फल. (फ़ोटो-आजतक)
तेल क्या नुक़सान करेगा? हॉर्वर्ड मेडिकल जर्नल के मुताबिक़ सस्ता होने और आसानी से मिलने के अलावा भी ताड़ के तेल में कई गुण हैं. जैसे कि कमरे के तापमान पर ये सेमी-सॉलिड होता है, इस वजह से इसे फैलाने में आसानी होती है. ये तेल जल्दी ख़राब नहीं होता है, इस वजह से इससे बनी चीजें की शेल्फ-लाइफ बढ़ जाती है. इसके अलावा ज़्यादा टेम्प्रेचर पर भी ये जलता नहीं है. जिस वजह से इससे तली हुई चीजें ज़्यादा समय तक कुरकुरी रहती हैं. इसके अलावा इसका कोई अपना रंग या स्मेल नहीं होता जिस वजह से इसका सेवन ज़्यादा किया जाता है. इसका सबसे ज़्यादा सेवन अफ्रीकी देशों में होता है.
लेकिन इतनी बात का मतलब हो गया कि खाने पीने में सही आइटम है. जल्दी बनता है, देर तक टिकता है. अब क्या? एकदम सही तेल है? शरीर एकदम सही रखेगा? इसको लेकर अलग-अलग विचार हैं.
अमरीकी सरकार के कृषि विभाग की वेबसाइट के मुताबिक़, पाम तेल की पोषण संबंधी प्रोफ़ाइल बाक़ी खाने के तेलों के जैसी ही है. लेकिन इस तेल के सेवन से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव काफ़ी चर्चा का विषय रहा है. दिल्ली के सफ़दरजंग अस्पताल में काम कर चुके डॉ रोहित बताते हैं कि दुनिया भर में इस पर कई शोध हुए हैं. और दावे मिलेजुले हैं.
हॉर्वर्ड मेडिकल जर्नल के मुताबिक ताड़ के तेल के एक बड़े चम्मच यानी कि 14 ग्राम ताड़ तेल में लगभग 120 कैलोरी और 14 ग्राम कुल फ़ैट होता है. जिसमें 7 ग्राम सैच्युरेटेड फ़ैट है. जो कि मक्खन के बराबर फ़ैट है. वहीं, इसमें विटामिन ई और ए की भी थोड़ी बहुत मात्रा पाई जाती है. सैच्युरेटेड फ़ैट को आसान शब्दों में ऐसे समझ सकते हैं कि वो फ़ैट जो रूम टेम्प्रेचर पर ठोस रहे. जैसे मक्खन. सैच्युरेटेड फ़ैट कोलेस्टरॉल बढ़ा सकता है, जिससे दिल से जुड़ी कई बीमारियां हो सकती हैं.
डॉ रोहित बताते हैं कि ताड़ के तेल में फ़ैट ज़्यादा होने की वजह से कई शोधों में ताड़ के तेल के सेवन से दिल की बीमारियों को जोड़ कर देखा गया है. वो आगे बताते हैं कि ऐसा नहीं है कि पाम तेल के सेवन से दिल की बीमारी ज़रूर होगी, लेकिन जब बाज़ार में दूसरे खाने के तेल मौजूद हैं जिसमें फ़ैट कम है, तो पाम के सेवन से बचा जा सकता है.
इसके अलावा हेल्थ वेबसाइट के मुताबिक़ तेल को बार-बार गर्म करने से इसकी एंटीऑक्सीडेंट क्षमता भी कम हो जाती है. जिस वजह से दिल के बीमारियों को बढ़ाने के में इसका योगदान हो सकता है.

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