अंडरवॉटर ड्रोन क्या है? जिसके दम पर यूक्रेन ने रूस की सबमरीन डुबो दी, भारत के पास ये है क्या?
Underwater Drone Explained: यूक्रेन के इस ड्रोन का नाम ‘सब सी बेबी’ है. रूस की जिस सबमरीन पर हमला किया गया, वह काला सागर में एक बड़े नौसैनिक अड्डे पर तैनात थी. यूक्रेन का दावा है कि यह पहली बार है जब अंडरवॉटर ड्रोन से किसी पनडुब्बी को निशाना बनाया गया है.

यूक्रेन ने दावा किया है कि उसने पानी के नीचे चलने वाले ड्रोन की मदद से रूस की एक अहम सबमरीन को नष्ट कर दिया है. यह सबमरीन यूक्रेन पर क्रूज मिसाइलें दागने के लिए इस्तेमाल होती थी. हमला रूस के काला सागर में एक बड़े नौसैनिक अड्डे पर किया गया. यूक्रेन का दावा है कि यह पहली बार है जब अंडरवॉटर ड्रोन से किसी पनडुब्बी को निशाना बनाया गया है.
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, यूक्रेन के इस ड्रोन का नाम ‘सब सी बेबी’ है. रूस की जिस सबमरीन पर हमला किया गया, वह एक किलो-क्लास सबमरीन है. यूक्रेन की सिक्योरिटी सर्विस (SBU) ने एक बयान में कहा,
यूक्रेन पर कैलिब्र क्रूज मिसाइलें दागने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एक रूसी पनडुब्बी को SBU के अंडरवॉटर ड्रोन ने उड़ा दिया है.
बयान में इस हमले को इतिहास में अपनी तरह का पहला हमला बताया गया है. SBU ने कहा कि रूसी सबमरीन नोवोरोस्सियस्क पोर्ट पर खड़ी थी. यूक्रेन के लगातार हमलों की वजह से रूस अपने ज्यादातर जहाज क्रीमिया से हटाकर यहां ले आया था.
SBU की ओर से जारी वीडियो में देखा जा सकता है कि पानी में जोरदार धमाका हुआ, जहां एक सबमरीन और कुछ दूसरे जहाज खड़े थे.
नई सबमरीन बनाने में 500 मिलियन डॉलर का खर्चा
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की के सलाहकार ने कहा कि यह पहली बार इतिहास में हुआ कि किसी पानी के अंदर चलने वाले ड्रोन ने सबमरीन को उड़ा दिया है. यूक्रेनी अधिकारियों के मुताबिक, यह पनडुब्बी किलो-क्लास की डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बी थी और इसमें कम से कम चार क्रूज मिसाइलें थीं, जिनका इस्तेमाल रूस ने यूक्रेन के शहरों पर हमला करने के लिए किया था.
SBU ने कहा कि पनडुब्बी की कीमत लगभग 400 मिलियन डॉलर थी और इसे बहुत गंभीर नुकसान पहुंचा है. रूस को नई पनडुब्बी बनाने में लगभग 500 मिलियन डॉलर (करीब 4500 करोड़ भारतीय रुपये) खर्च आ सकता है. हमले में इस्तेमाल हुआ ड्रोन ‘सब सी बेबी’ पहले भी रूस के गुप्त तेल टैंकरों को निशाना बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा चुका है.
‘नेवल वॉर’ में बड़ा बदलावयूक्रेन की नौसैनिक क्षमता रूस के मुकाबले बहुत कम है. इसके बावजूद, यूक्रेन ने ड्रोन और मिसाइलों का इस्तेमाल करके रूस की काला सागर सबमरीन को नुकसान पहुंचाया. यूक्रेनी नौसेना ने कहा कि पनडुब्बी को मारना बहुत मुश्किल काम है और यह युद्ध में एक बड़ा बदलाव है. पनडुब्बी की मरम्मत करना भी मुश्किल होगा, क्योंकि इसे पानी से बाहर लाना पड़ेगा, जिससे यह आगे के हमलों के लिए कमजोर हो जाएगी.
इस बीच, रूस ने इन दावों को खारिज कर दिया है. रूसी सरकारी मीडिया के मुताबिक, काला सागर बेड़े ने कहा कि इस घटना से नोवोरोस्सियस्क नौसैनिक अड्डे पर तैनात जहाजों या पनडुब्बियों को कोई नुकसान नहीं हुआ है और सैनिक अपना काम जारी रखे हुए हैं.
‘किलो-क्लास’ सबमरीन क्या है?यह पनडुब्बियों का एक ग्रुप है, जिन्हें 1970 के दशक में सोवियत संघ ने डिजाइन किया गया था और मूल रूप से सोवियत नौसेना के लिए बनाया गया था. यह पनडुब्बी डीजल-इलेक्ट्रिक से चलती है और अपनी खामोशी के लिए जानी जाती है, इसलिए इसे दुश्मन के रडार से पकड़ना मुश्किल होता है. इसका इस्तेमाल क्रूज मिसाइल दागने, दुश्मन जहाजों पर हमला करने और समुद्र में गुप्त निगरानी के लिए किया जाता है.

भारत के पास भी किलो-क्लास सबमरीन हैं. भारतीय नौसेना में इन्हें सिंधुघोष सबमरीन कहा जाता है. भारत ने इन्हें रूस से खरीदा और कुछ को बाद में अपग्रेड भी किया. इन पनडुब्बियों की विस्थापन क्षमता 3,000 टन है. विस्थापन (displacement) यानी पानी में डूबने पर सबमरीन कितना पानी विस्थापित करती है या हटाती है.

यह सबमरीन 300 मीटर तक गहराई में जा सकती हैं और समुद्र में 18 समुद्री मील की रफ्तार से चल सकती हैं. इनमें 53 लोगों का दल होता है और ये करीब 45 दिन तक बिना किसी बाहरी मदद के समुद्र में काम कर सकती है.
अंडरवॉटर ड्रोन की दौड़ में भारत कहां खड़ा है?भारत की अंडरवॉटर ड्रोन तकनीक यानी पानी के नीचे चलने वाले ड्रोन के मामले में स्थिति ऐसी है कि हम अभी दौड़ में हैं, लेकिन सबसे आगे नहीं हैं. भारत के पास अंडरवॉटर ड्रोन को AUV यानी ऑटोनॉमस अंडरवॉटर व्हीकल और ROV यानी रिमोट ऑपरेटेड व्हीकल के रूप में डेवलप किया जा रहा है. इनका इस्तेमाल फिलहाल जासूसी, समुद्री निगरानी, माइंस की पहचान और समुद्र तल की मैपिंग जैसे कामों में हो रहा है. सीधे सबमरीन उड़ाने वाली कैटेगरी में भारत अभी नहीं पहुंचा है.

DRDO इस फील्ड में सबसे आगे काम कर रहा है. DRDO का प्रोजेक्ट है AUV 150 और AUV 300. ये ड्रोन बिना इंसानी कंट्रोल के तय मिशन पर जा सकते हैं. दुश्मन की हरकतें देखना, समुद्र के नीचे डेटा इकट्ठा करना और नौसेना को रियल टाइम इनपुट देना इनका काम है.
भारतीय नौसेना ने हाल के सालों में कई प्राइवेट कंपनियों और स्टार्टअप्स को भी इस सेक्टर में उतारा है. लार्सन एंड टुब्रो, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड और कुछ डीप टेक स्टार्टअप्स अंडरवॉटर ड्रोन पर काम कर रहे हैं. फोकस अभी डिफेंस से ज्यादा सर्विलांस और सिक्योरिटी पर है.
जहां तक हथियारबंद अंडरवॉटर ड्रोन की बात है, भारत इस मामले में यूक्रेन, अमेरिका और चीन से पीछे है. यूक्रेन ने जिस तरह अंडरवॉटर ड्रोन से सीधे सबमरीन को निशाना बनाया, वैसी ऑपरेशनल कैपेबिलिटी भारत ने अभी सार्वजनिक तौर पर नहीं दिखाई है.

लेकिन एक अहम बात ये है कि भारत की जरूरतें थोड़ी अलग हैं. भारत की रणनीति फिलहाल समुद्र के नीचे प्रभुत्व जमाने (Undersea Dominance) से ज्यादा समुद्र के नीचे की हलचल पर नजर रखना (Undersea Awareness) पर टिकी है. मतलब दुश्मन क्या कर रहा है, कहां कर रहा है, ये पहले पता चले. हमला बाद की स्टेज है.
सीधी बात ये कि भारत तकनीक बना रहा है, टेस्ट कर रहा है और धीरे धीरे स्केल बढ़ा रहा है. अंडरवॉटर ड्रोन वॉरफेयर में हम अभी स्टूडेंट स्टेज में हैं, लेकिन सिलेबस पूरा करने की स्पीड तेज है.
वीडियो: दुनियादारी: ट्रंप-पुतिन के हाथ मिलाने से यूक्रेन का होगा नुकसान?

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