पनामा नहर, ग्रीनलैंड और कनाडा... क्या सच में 'अखंड अमेरिका' के बारे में गंभीर हैं डॉनल्ड ट्रंप?
Trump US Expansion Explained: शपथ लेने के बाद अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने मैक्सिको की खाड़ी का नाम अमेरिका की खाड़ी करने और पनामा नहर पर अमेरिका का दावा करने जैसे बड़े एलान किये हैं. इसके साथ ही कनाडा, ग्रीनलैंड, पनामा नहर और मेक्सिको की खाड़ी को लेकर उनके बयान पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बन गए हैं. ट्रंप का कहना है कि कनाडा, पनामा नहर और ग्रीनलैंड को अमेरिका का हिस्सा होना चाहिए. आखिर इन बयानों के पीछे कौन सी स्ट्रैटजी है?

अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डॉनल्ड (Donald Trump) ट्रंप चर्चा का विषय बने हुए हैं. ट्रंप लगातार कह रहे हैं कि वो कनाडा, ग्रीनलैंड और पनामा नहर को अमेरिका का हिस्सा बनाना चाहते हैं और ‘मेक्सिको की खाड़ी’ का नाम बदलकर अमेरिका की खाड़ी करना चाहते हैं. ग्रीनलैंड और पनामा नहर को लेकर तो उन्होंने सैन्य अभियान चलाने की बात से भी इनकार नहीं किया है. वहीं, कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बनाने के लिए आर्थिक तरीके इस्तेमाल करने की बात कही है.
ट्रंप इस संबंध में बहुत सी बातें कर रहे हैं और उन्हें लगातार जवाब भी मिल रहे हैं. इस बीच, बातें यह भी हो रही हैं कि आखिर ट्रंप ये सब करना क्यों चाहते हैं? ऐसा पहली बार नहीं है जब ट्रंप ने इस तरह के बयान दिए हों. अपने पहले कार्यकाल में भी वो इस तरह की बातें कह चुके हैं.
आगे सारी कहानी विस्तार से समझते हैं.
सबसे पहले बात पनामा नहर की. पनामा नहर उत्तरी और दक्षिणी अमेरिकी महाद्वीपों को जोड़ती है. अटलांटिक और प्रशांत महासागर के बीच एक जरूरी ट्रेड रूट है पनामा नहर. 1977 तक इस नहर का नियंत्रण अमेरिका के पास ही था. फिर 1977 में हुई एक संद्धि. तय हुआ कि 1997 तक अमेरिका इस नहर का नियंत्रण पनामा को दे देगा, बस जरूरत पड़ने पर नहर की सुरक्षा के लिए अपने सैनिक भेज सकेगा.
ट्रंप का कहना है कि उस संधि का कोई मतलब नहीं है. ट्रंप के मुताबिक, पनामा नहर में चीन के जहाजों की संख्या बढ़ती जा रही है और साथ ही साथ पनामा अमेरिकी जहाजों पर बहुत ज्यादा टैक्स लगा रहा है. ऐसे में अमेरिका की सुरक्षा और आर्थिक हितों के लिए इसका नियंत्रण वापस लेना जरूरी है.
दरअसल, पनामा ने साल 2017 में चीन के साथ अपने राजनयिक संबंध बहाल किए थे. पनामा नहर अमेरिकी व्यापार के लिए एक जरूरी ट्रेड रूट है. इस बीच नहर में चीनी जहाजों की गतिविधि भी बढ़ी है. ट्रंप यह आरोप लगाते रहे हैं कि पनामा नहर का नियंत्रण चीन के पास चला गया है.

वहीं पनामा का कहना है कि ऐसा कुछ नहीं हुआ है और पनामा नहर का नियंत्रण पनामा के पास ही रहेगा. पनामा के विदेश मंत्री हावियर मार्टिनेज आका ने 8 जनवरी को कहा कि हमारी नहर संप्रभु है और यह हमारे देश के इतिहास का हिस्सा है. इससे पहले, 31 दिसंबर को देश के राष्ट्रपति होसे राउल मुलीनो ने कहा था कि पनामा नहर हमेशा पनामा का हिस्सा रहेगी.
कनाडा को लेकर ट्रंप कह चुके हैं कि इसे अमेरिका का 51वां राज्य होना चाहिए. वो कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को गवर्नर ट्रूडो कहकर संबोधित कर रहे हैं. उनसे जब यह पूछा गया कि क्या कनाडा को अमेरिका में मिलाने के लिए वो सैन्य शक्ति का इस्तेमाल करेंगे तो उन्होंने कहा कि सिर्फ और सिर्फ आर्थिक बल का इस्तेमाल किया जाएगा. ट्रंप ने कहा,
"कनाडा और अमेरिका का मिल जाना एक बहुत बड़ी बात होगी. कनाडा और अमेरिका के बीच जो सीमा रेखा है, वो नकली है. आप इस रेखा को हटा दें तो फिर देखिए कि आपके सामने क्या है. यह हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी अच्छा होगा."
इसी तरह की बातें ट्रंप ने ग्रीनलैंड को लेकर भी कही हैं. ट्रंप का कहना है कि ग्रीनलैंड का अमेरिका में शामिल होना बहुत जरूरी है और अगर डेनमार्क ग्रीनलैंड को अमेरिका में शामिल नहीं होने देता है, तो वो उसके ऊपर तगड़े टैरिफ लगाएंगे.
इतिहास में जाएं तो ग्रीनलैंड डेनमार्क का उपनिवेश था. 1953 में इसे आजादी मिली. लेकिन यह आजादी पूरी आजादी नहीं थी. ग्रीनलैंड डेनमार्क का ही हिस्सा रहा, लेकिन इसे अपना शासन चलाने की आजादी दी गई.
इधर, मेक्सिको को लेकर ट्रंप का कहना है कि वो अमेरिका का फायदा उठा रहा है. मेक्सिको के साथ व्यापार में अमेरिका को घाटा होता है और बकौल ट्रंप मेक्सिको से हिंसक गतिविधियों और ड्रग तस्करी में शामिल लोग अमेरिका में आते हैं. ट्रंप ने यह भी कहा है वो कि ‘मेक्सिको की खाड़ी’ का नाम बदलकर ‘अमेरिका की खाड़ी’ रखेंगे.
इस बीच कनाडा, मेक्सिको और डेनमार्क के जनप्रतिधिनिधियों की तरफ से बयान भी आए हैं. कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कहा है कि कनाडा कभी भी अमेरिका का हिस्सा नहीं बनेगा. इधर, मेक्सिको की प्रधानमंत्री क्लॉडिया शीनबॉम कह चुकी हैं कि पूरे उत्तरी अमेरिकी महाद्वीप का नाम बदलकर अमेरिका-मेक्सिकाना कर दिया जाना चाहिए. वहीं डेनमार्क का कहना है कि ग्रीनलैंड के लोग अपने लिए निर्णय लेने में सक्षम हैं, उनके पास आजादी है.

एक्सपर्ट्स का कहना है कि ट्रंप के इन बयानों का मतलब जस का तस नहीं निकाला जाना चाहिए. इन बयानों के पीछे गहरे आर्थिक और भू-राजनीतिक हित हैं. अंतरराष्ट्रीय मामलों की जानकार स्वस्ति राव ने हमें बताया,
"ट्रंप इसी तरह के बयान देते हैं. अमेरिका, मेक्सिको और कनाडा के बीच CUSMA नाम का समझौता है. इसके तहत अमेरिका के साथ व्यापार में इन दोनों देशों को कई तरह की छूट मिलती हैं. मतलब, इन दोनों देशों को अमेरिका के साथ व्यापार में फायदा होता है. इसलिए ट्रंप लगातार उनके ऊपर टैरिफ बढ़ाने की बात करते हैं. इस तरह के बयानों का मतलब यही है कि ट्रंप अमेरिका के लिए भी कुछ हासिल करना चाहते हैं."
वहीं अगर ग्रीनलैंड की बात करें तो यहां पूरी दुनिया की प्राकृतिक गैस का लगभग 30 फीसदी और तेल का लगभग 13 फीसदी हिस्सा मौजूद है. साथ ही साथ ऐसी खनिज संपदा उपलब्ध है, जिसकी अनुमानित कीमत लगभग एक खरब अमेरिकी डॉलर है. ग्रीनलैंड में बर्फ तेजी से पिघल रही है. ऐसे में कहा जा रहा है कि आने वाले समय में इन प्राकृतिक संसाधनों को हासिल करना आसान हो जाएगा.
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ऐसा पहली बार नहीं है जब अमेरिका ने ग्रीनलैंड को खरीदने का प्रस्ताव रखा हो. साल 1867 में जब राष्ट्रपति एंड्रू जॉनसन ने अलास्का को खरीदा था तो उन्होंने ग्रीनलैंड को खरीदने पर भी विचार किया था. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने ग्रीनलैंड को खरीदने के लिए डेनमार्क के सामने 100 मिलियन डॉलर का प्रस्ताव रखा था.
रूस-चीन का बढ़ता प्रभावकनाडा और ग्रीनलैंड को लेकर ट्रंप की सोच सिर्फ अमेरिका के आर्थिक हितों तक सीमित नहीं है. यह देखा जा रहा है कि आर्कटिक क्षेत्र में रूस और चीन का प्रभाव बढ़ रहा है. चीन की कोशिश आर्कटिक क्षेत्र में पोलर सिल्क रूट स्थापित करने की है. अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के डायरेक्टर एस्थर मैक्ल्यूर ने पिछले साल अप्रैल में कहा था,
"रूस और चीन आर्कटिक क्षेत्र में लगातार आक्रामक रवैया अपना रहे हैं. हमें चुनौती मिल रही है."
इस बारे में स्वस्ति राव कहती हैं,
"आर्कटिक क्षेत्र में वर्चस्व की जंग पिछले एक दशक से चल रही है. इस क्षेत्र में चीन के जहाज आ रहे हैं. उन जहाजों को ज्यादा लंबे समय तक रोका नहीं जा सकता है. ऐसे में, अमेरिका के लिए ग्रीनलैंड और कनाडा का उत्तरी हिस्सा जरूरी हो जाता है. जरूरी नहीं है कि ये हिस्से अमेरिका में ही मिल जाएं."
आखिर में सवाल यही आता है कि इन क्षेत्रों में अगर अमेरिका के आर्थिक और भू-राजनीतिक हित मौजूद हैं तो क्या सिर्फ इस आधार पर अमेरिका को इन्हें अपना हिस्सा बना लेना चाहिए? कुछ एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस संबंध में ट्रंप ने जो बयान दिए हैं, वो उत्तेजक हैं लेकिन असल में ऐसा कुछ नहीं होने जा रहा है. इसे प्रेसिडेंट ट्रंप की प्रेसर टैक्टिक्स के रूप में देखा जाना चाहिए. वो चाहते हैं कि इन इलाकों में अमेरिका का रोल बढ़े और व्यापार में उसे नुकसान ना हो.
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