तिरुपति मंदिर के प्रसाद में 'जानवरों की चर्बी'? एक क्लिक में जानिए पूरे विवाद की कहानी
आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू की सरकार बनने के बाद जून के महीने में सीनियर IAS अफसर जे श्यामलाल राव को TTD में नया कार्यकारी अधिकारी नियुक्त किया गया था. इस नियुक्ति के बाद लड्डुओं की गुणवत्ता पर चर्चा शुरू हुई.
आंध्र प्रदेश के तिरुमाला में तिरुपति मंदिर के 'प्रसादम' में कथित तौर पर जानवरों की चर्बी मिलाने का मामला अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है. NDTV की रिपोर्ट के मुताबिक एक वकील ने याचिका दायर कर आरोप लगाया कि मौलिक हिंदू धार्मिक रीति-रिवाजों का उल्लंघन किया गया है. उनका कहना है कि इस मामले ने अनगिनत श्रद्धालुओं की भावनाओं को गहरी ठेस पहुंचाई है, जो इस प्रसाद को ‘आशीर्वाद’ मानते हैं.
कहां से शुरू हुआ विवाद?आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने 18 सितंबर को आरोप लगाया कि पिछली YSRCP सरकार के दौरान तिरुपति लड्डू प्रसादम बनाने में जानवरों की चर्बी का इस्तेमाल किया जाता था. नायडू ने अमरावती में NDA विधायक दल की बैठक में कहा,
“यहां तक कि तिरुपति के लड्डू भी घटिया सामग्री से बनाए जाते थे… उन्होंने घी की जगह जानवरों की चर्बी का इस्तेमाल किया था.”
YSRCP ने इस आरोप को “दुर्भावनापूर्ण” बताते हुए खारिज कर दिया और नायडू को सबूत पेश करने की चुनौती दी. पार्टी के वरिष्ठ नेता और श्री वेंकटेश्वर मंदिर का संचालन करने वाले तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (TTD) के पूर्व चेयरमैन वाई वी सुब्बा रेड्डी ने कहा,
“नायडू राजनीतिक लाभ के लिए किसी भी स्तर तक गिर सकते हैं. लड्डू के लिए इस्तेमाल किया गया घी राजस्थान और गुजरात की देशी गायों के दूध से बना उच्च गुणवत्ता वाला था. उनकी टिप्पणी दुर्भावनापूर्ण है.”
इसके बाद, 19 सितंबर को उस लैब की रिपोर्ट सामने आई जिसने तिरुपति लड्डू में इस्तेमाल होने वाले घी की जांच की थी. गुजरात के राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के पशुधन और खाद्य विश्लेषण और अध्ययन केंद्र (CALF) प्रयोगशाला की रिपोर्ट में कहा गया है,
तिरुपति लड्डू बनाने के लिए इस्तेमाल किए गए घी में एनिमल फैट मौजूद था. रिपोर्ट में संकेत दिया गया है कि घी में गोमांस और मछली के तेल के अंश थे. साथ ही एक सेमीसॉलिड सफेद फैट मिला है जो सूअर की चर्बी को पिघलाकर मिलता है.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, ये लैब टेस्ट 23 जुलाई को किया गया था. लड्डुओं के टेस्ट में शिकायत के बाद ये लैब टेस्ट कराया गया था. रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य में नायडू की सरकार बनने के बाद जून के महीने में सीनियर IAS अफसर जे श्यामलाल राव को TTD में नया कार्यकारी अधिकारी नियुक्त किया गया था. इस नियुक्ति के बाद लड्डुओं की गुणवत्ता पर चर्चा शुरू हुई.
रिपोर्ट के मुताबिक, जुलाई में लैब टेस्ट में AR डेयरी फूड्स के घी में फॉरेन फैट की मौजूदगी का पता चला. यानी दूध में मौजूद फैट के अलावा भी फैट पाया गया. जिसके कारण TTD ने ठेकेदार को ब्लैकलिस्ट कर दिया. और कर्नाटक मिल्क फेडरेशन को कॉन्ट्रैक्ट दे दिया. पहले ब्लैकलिस्ट किए गए ठेकेदार से 320 रुपये प्रति किलो में घी खरीदा जाता था. लेकिन अब कर्नाटक से 475 रुपये प्रति किलोग्राम के रेट से घी खरीदा जा रहा है.
यहां ये जानना जरूरी है कि पिछले साल कर्नाटक के नंदिनी घी ब्रांड का कॉन्ट्रैक्ट खत्म किया था, जिस पर राजनीतिक विवाद भी हुआ था. ये घी कर्नाटक मिल्क फेडरेशन (KMF) बेचता था. तब TTD अधिकारियों ने आश्वासन दिया था कि प्रसादम के स्वाद पर कोई असर नहीं पड़ेगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. तिरुपति लड्डू का पूरा विवाद ही घी से जुड़ा है.
इस मामले में अब AR डेयरी का पक्ष भी सामने आया है. CNN-News18 से बात करते हुए कंपनी के प्रबंध निदेशक राजशेखरन राजू ने कहा कि घी में एनिमल फैट की मौजूदगी की कोई संभावना नहीं है. उन्होंने कहा,
तिरुपति लड्डू प्रसादम का इतिहास"हम मेजर सप्लायर नहीं हैं. हमने केवल चार टैंकर की आपूर्ति की और क्वॉलिटी संबंधी मुद्दे पर रिपोर्ट भेजने के बाद हमने आपूर्ति बंद कर दी थी. हमने कभी भी भारी मात्रा में घी की आपूर्ति नहीं की और कभी भी प्रसाद के लड्डुओं के लिए केवल हमारे घी का उपयोग नहीं किया गया."
तिरुपति के इन प्रसिद्ध लड्डुओं को श्रीवारी लड्डू भी कहा जाता है. कहा जाता है कि इनका इतिहास 300 साल पुराना है. तिरुपति के मंदिर में भगवान को लड्डू चढ़ाने और भक्तों को प्रसाद के रूप में देने की शुरुआत 1715 में हुई थी. 2014 में रजिस्ट्रार ऑफ पेटेंट्स, ट्रेडमार्क्स एंड जियोग्राफिकल इंडिकेशन्स ने तिरुपति लड्डू को जीआई टैग दिया. इसका मतलब यह है कि मंदिर के अलावा कोई भी लड्डू को “तिरुपति लड्डू” नाम देकर नहीं बेच सकता.
प्रसादम को पोटू नाम की एक विशेष रसोई में बनाया जाता है. सभी रसोइए वैष्णव ब्राह्मण समुदाय से आते हैं. सदियों से इनके परिवार यही काम करते आ रहे हैं. लड्डू बनाने वालों को अपना सिर मुंडवाना पड़ता है और रसोई में काम करते समय उन्हें एक ही कपड़ा पहनना होता है जो कि बिल्कुल साफ-सुधरा होना चाहिए.
पिछले साल इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए मंदिर की रसोई के प्रमुख आर श्रीनिवासुलु ने बताया था,
कैसे बनता है लड्डू?"हम औसतन रोजाना 3.5 लाख लड्डू तैयार करते हैं और खास मौकों या त्योहारों पर 4 लाख तक लड्डू बनाते हैं. 600 विशेष रसोइये हैं जो लड्डू बनाने में माहिर हैं और दो शिफ्टों में लड्डू तैयार करते हैं. रसोइयों का कड़ा हेल्थ चेकअप किया जाता है. करीब दो शताब्दियों तक रसोई में लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन पिछले कुछ दशकों में हमने LPG का इस्तेमाल करना शुरू किया है. और अब यह पूरी तरह से आधुनिक रसोई बन गई है. रसोई का एक-एक इंच CCTV कैमरों से लैस हैं. तीन कन्वेयर बेल्ट लड्डुओं को रसोई से निकालकर बांटने के लिए ले जाया जाता हैं."
उच्च गुणवत्ता वाला घी उन 10 सामग्रियों में से एक है, जिनका इस्तेमाल लड्डू बनाने में किया जाता है. घी के अलावा, लड्डू बनाने में बेसन, चीनी, चीनी का बूरा, काजू, इलायची, कपूर और किशमिश का इस्तेमाल किया जाता है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, भगवान को चढ़ाए जाने वाले लड्डू और अन्य प्रसाद तैयार करने के लिए हर दिन कम से कम 400-500 किलो घी, 750 किलो काजू, 500 किलो किशमिश और 200 किलो इलायची का इस्तेमाल किया जाता है. TTD हर छह महीने में घी खरीदता है और हर साल करीब 5 लाख किलो घी खरीदता है.
वेंकटेश्वर मंदिर में लड्डू तीन साइज़ में बनते हैं - छोटे, मध्यम और बड़े. सबसे छोटा लड्डू 40 ग्राम का होता है. यह लड्डू मंदिर में आने वाले हर श्रद्धालु को प्रसाद के रूप में दिया जाता है. इसके लिए कोई पैसा नहीं देना होता. मध्यम आकार वाला लड्डू 175 ग्राम का होता है, जिसकी कीमत 50 रुपये प्रति लड्डू है. और सबसे बड़े लड्डू की बात करें तो इस एक लड्डू का वजन 750 ग्राम होता है, जिसकी कीमत 200 रुपये होती है.
ये लड्डू मंदिर परिसर के साथ-साथ बाहर भी विशेष काउंटर्स पर उपलब्ध हैं. कहा जाता है कि ये लड्डू 15 दिन तक खराब नहीं होते.
जगन मोहन का बयान आयाभारी बवाल होने के बाद अब YSRCP प्रमुख और आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी ने भी चुप्पी तोड़ी है. इंडिया टुडे के इनपुट्स के मुताबिक रेड्डी का कहना है,
"मैं खुद प्रधानमंत्री को एक पत्र लिख रहा हूं. मैं भारत के मुख्य न्यायाधीश को भी एक पत्र लिख रहा हूं. मैं उन्हें समझाने की कोशिश करूंगा कि कैसे चंद्रबाबू नायडू ने तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया. ऐसा करने के लिए उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की जानी चाहिए."
इस बीच केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस पूरे विवाद पर रिपोर्ट मांगी है. स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा कि उन्हें इस मामले की जानकारी सोशल मीडिया के जरिए मिली है. नड्डा ने कहा कि उन्होंने चंद्रबाबू नायडू से बात की है और इस मसले पर रिपोर्ट मांगी है.
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