हड़प्पा-मोहनजोदड़ो को किसने बर्बाद किया? आर्यों ने या अापदाओं ने?
जानकार कई थ्योरी दे गए हैं. सब में उसके खात्मे की अलग-अलग कहानियां हैं. कई आपस में टकराती.
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फोटो - thelallantop
आशुतोष गोवारिकर की नई पिक्चर आ रही है 'मोहनजोदड़ो' नाम से. ऋतिक रौशन हीरो हैं. 12 अगस्त 2016 को. वैसे 'दी लल्लनटॉप' ने तो आपको बताया ही है हड़प्पा-मोहनजोदड़ो के बारे में. बस ये नहीं बताया कि ये सभ्यता खत्म कैसे हुई. मूवी को तो आने में अभी वक्त है. लेकिन कोई नहीं. उससे पहले ही आपको बता देते हैं.
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1900 BC के करीब हड़प्पा-मोहनजोदड़ो के बुरे दिन आ गए. ईटों, वजन करने वाले पत्थरों और सील पुराने हो चुके थे. वैसे तो नुकसान हर चीज का हुआ पर शहरों ने नुकसान सबसे ज्यादा हुआ. हालत खराब हो चुकी थी. अब सोच रहे होगे कि ये सब हमें कैसे पता चला ? अरे उस समय की जो चीजें मिली हैं उनसे पता चलता है. और फिर स्कूल में हिस्ट्री क्लास में तो पढ़ ही होगा. भले भेजे में कुछ टिका न हो.
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हड़प्पा-मोहनजोदड़ो बहुत बड़ी सभ्यता थी. वहां के लोग भी बड़े गजब थे. उनके पास घर, बंगला, गाड़ी, सड़कें, सब कुछ ए-वन था. पर एक दिन सब खत्म हो गया. 1700-1800 BC के करीब हड़प्पा-मोहनजोदड़ो में न तो कोई इंसान बचा और न ही वो शहर. हिस्ट्री के जानकार इस सभ्यता के बारे में खूब पढ़े. और पढ़ने-लिखने के बाद कुछ थ्योरी दे गए. जिन पर अच्छी खासी पॉलिटिक्स चलती रहती है.
क्या कहती हैं थ्योरी ?सबसे फ़ेमस थ्योरी है 'आर्यन इनवेजन' की. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि जब सेंट्रल एशिया से आर्यन भारत आए, तो उन्होंने हड़प्पा-मोहनजोदड़ो के लोगों को मारा और उनके शहरों को भी तहस-नहस कर डाला. आर्यन की कहानियों और काव्यों में यहां के मूल निवासियों के लिए इस्तेमाल किए गए शब्द 'दास' या 'दस्यु' की बात की गई है. और इसे हड़प्पा-मोहनजोदड़ो के लोगों के लिए ही इस्तेमाल किया जाता था, ऐसा इस थ्योरी को सपोर्ट करने वाले जानकारों का मानना है.
इंद्र आर्यन के देवता थे. ऋग्वेद में इंद्र के लिए पुरंदर शब्द का इस्तेमाल किया गया है. जिसका मतलब किलों को तहस-नहस करने वाला होता है. इसे जानकार लोग हड़प्पा-मोहनजोदड़ो की टूटी-फूटी इमारतों के कनेक्शन में देखते हैं. हड़प्पा-मोहनजोदड़ो के लोगों के पास से बड़े या खतरनाक हथियार नहीं मिले हैं. तो बाहर से आए आर्यन लोगों से लड़ाई में उनकी हार को माना जा सकता है.
कुछ हड्डियों के अवशेष मिले हैं. जिन लोगों ने उसे देखा इनका मानना है कि वो लोग आर्यन का सामना करने में शहीद हुए थे. कुछ दूसरे लोगों ने भी हड्डियों को देखा है. और उनका कहना है कि शहीद-वहीद कुछ नहीं. ये लोग आपस में ही लड़-कट के मर गए थे.
दूसरी थ्योरी है कि हड़प्पा-मोहनजोदड़ो में बाढ़ आ गई थी. इसी वजह से यहां के लोगों को अपना शहर छोड़ कर जाना पड़ा. पानी के तेज बहाव के साथ आई मिट्टी के सबूत कुछ जगहों पर मिलते हैं. इससे यह थ्योरी थोड़ी मजबूत हो जाती है. पुरानी सभ्यताएं पानी की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए नदियों के आसपास ही बस जाते थे. और पानी की कमी काफ़ी बड़ा मुद्दा था.
एक और थ्योरी है. जिसमें मौसम में आए बदलावों को हड़प्पा-मोहनजोदड़ो के खत्म होने का ज़िम्मेदार माना जाता है. जिस तरह से आज मानसून का भरोसा नहीं है वैसे ही उस वक्त भी था. लोग बताते हैं कि बारिश कम हुई तो दो बड़ी नदियां, घागर और हाकड़ा सूख गए. खेती-बाड़ी करने में दिक्कते आने लगी. इसलिए वहां के लोग हड़प्पा-मोहनजोदड़ो के शहर छोड़ कर चले गए. अब ये बात कितनी सही है, हमें कहां से पता चलेगा.
एक कॉमन सेंस वाली थ्योरी भी है. इसमें कहा जाता है कि हड़प्पा-मोहनजोदड़ो के इलाके में लोग बहुत दिनों से रह रहे थे. तो अब उनकी फैमिली भी बढ़ने लगी थी. जनसंख्या बढ़ी तो लोगों की जरूरतें बढ़ी. जिसके चलते उस इलाके में नेचुरल रिसोर्सेज खत्म होने लगे. जाहिर सी बात है, सबकुछ खत्म ही होने लगा था तो लोग वहां रह के क्या उखाड़ते? इसीलिए वहां से चले गए. पर हड़प्पा-मोहनजोदड़ो के दिन ढलने में ये कितना वाजिब रहा ये दावे से नहीं कहा जा सकता.
एक और थ्योरी है ट्रेड से जुड़ी. मेसोपोटमिया यानी ईरान से हड़प्पा-मोहनजोदड़ो के रिश्ते बड़े अच्छे थे. मेसोपोटमिया के रिकार्ड्स में हड़प्पा-मोहनजोदड़ो की सभ्यता के लिए 'मेलुहा' शब्द का इस्तेमाल किया जाता था. अच्छा ख़ासा ट्रेड होता था दोनों के बीच. कुछ लोग कहते हैं कि ये ट्रेड मंदा पड़ने लगा था. इसीलिए हड़प्पा के दिन ढल गए.
यह स्टोरी 'दी लल्लनटॉप' के साथ इंटर्नशिप कर रहीं पारुल तिवारी ने लिखी है.