राजा थे प्रियव्रत. धरती को सात महाद्वीपों में बांटकर संन्यासी बन गए. उनके बेटे अग्नित्र को जंबूद्वीप मिला. अग्नित्र के बाद उनके बेटे नाभि ने राजकाज संभाला. पर उनके सामने भी एक प्रॉब्लम आई जो राजाओं के सामने अक्सर आती थी- उन्हें संतान नहीं हुई. इसके लिए उन्होंने यज्ञ कराया. यज्ञ में जब भगवान प्रकट हुए तो नाभि ने बोला प्रभुजी अपने जैसा सुंदर सुशील लड़का हमको दे दो. प्रभु बोले, चीज तो बेटा तुमने ठीक मांगी, पर मेरे जैसा तो कोई दूसरा है नहीं. लेकिन वादा फिर भी वादा है, इसलिए मैं ही तुम्हारा बेटा बनकर जन्म लूंगा.
कुछ समय बाद बाद भगवान ने जन्म लिया ऋषभदेव के नाम से. जब वे बड़े हुए तो इंद्र की बेटी जयंती से उनकी शादी हुई. ऋषभदेव और जयंती के हुए सौ बेटे. उनमें सबसे बड़े थे भरत.
ऋषभदेव ने अपने बेटों को समझाया कि भरत को ही अपने पापा जैसा समझें और उनकी हर बात मानें. इसके बाद उन्होंने भरत को राजा डिक्लेयर किया और जंगल में जाकर संन्यासी बन गए.
(श्रीमद्भगवत महापुराण)