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टिकट ब्लैक करने वाला कैसे बना दाऊद का दायां हाथ?

1993 मुम्बई बम धमाकों के बाद अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम और छोटा राजन की दोस्ती दुश्मनी में बदल गई. छोटा राजन कभी दाऊद का दायां हाथ हुआ करता था.

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Chota Rajan and Dawood Ibrahim
कभी दाऊद का दायां हाथ रहा छोटा राजन उसका जानी दुश्मन बन गया (तस्वीर-Indiatoday)
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25 अक्तूबर 2022 (Updated: 21 अक्तूबर 2022, 21:32 IST)
Updated: 21 अक्तूबर 2022 21:32 IST
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पत्रकार ज्योतिर्मय डे अंडरवर्ल्ड के कारनामों पर लिखी अपनी किताब खल्लास में लिखते हैं कि 93 मुम्बई बम ब्लास्ट से पहले, अंडरवर्ल्ड में कौम की चूरन चलती थी. कौम की चूरन खाने का मतलब था, गैंग सेक्युलर है, धर्म का कोई लेना देना नहीं. फिर 1993 में मुम्बई बम धमाके (1993 Mumbai Bombing) हुए और सब कुछ बदल गया. मामला मुस्लिम डॉन दाऊद इब्राहिम(Dawood Ibrahim) और हिन्दू डॉन छोटा राजन का हो गया. 
छोटा राजन(Chota Rajan) कभी दाऊद का दायां हाथ हुआ करता था. 93 में जब छोटा राजन और दाऊद इब्राहिम के बीच फूट पड़ी. तो वो गैंग के नए मेम्बर्स का परिचय दाऊद से ये कहकर करवाता था कि 

“राजा जो अपनी मां का न हो सका वो किसी और का क्या होगा”.

क्या थी छोटा राजन की कहानी? मुंबई के सहकार सिनेमा घर के बाहर टिकट ब्लैक करने वाला राजेंद्र सदाशिव निखल्जे कैसे बना अंडरवर्ल्ड डॉन और कैसे हुई उसके और दाऊद के बीच दुश्मनी?

डी कंपनी की शुरुआत

इस किस्से(D Company) की शुरुआत होती है 70 के दशक की मुम्बई से. इस दौर में मुम्बई अंडरवर्ल्ड में एक नया नाम उभरा, दाऊद इब्राहिम. उसने और उसके भाई साबिर कास्कर ने मिलकर डी कंपनी की शुरुआत की और देखते की देखते अंडरवर्ल्ड के नए किंग बन गए.  इस नई विरासत को खड़ा करने में एक और शख्स का रोल बहुत अहम था. राजन महादेव नायर उर्फ़ ‘बड़ा राजन’. चेम्बूर से तिलक नगर तक के इलाके को अपनी जेब में रखने वाले वाले ‘बड़ा राजन’ की शुरुआत दर्जी के काम से हुई थी. फिर इश्क़ का कांटा लगा और महबूबा को तोहफा देने के चक्कर में उसने एक टाइपराइटर की चोरी कर ली. इस चक्कर में जेल हुई. वहां से बाहर निकला तो उसने टिकटों की स्मगलिंग शुरू कर दी. यही काम करते हुए राजन की मुलाक़ात राजेंद्र सदाशिव निखल्जे से हुई, जो खुद को राजन बुलाया करता था. चूंकि दोनों का नाम राजन था, इसलिए राजन महादेव का नाम बड़ा राजन और राजेंद्र सदाशिव का नाम छोटा राजन पड़ गया. 

D company members
दाऊद इब्राहिम, छोटा शकील, छोटा राजन और डी कंपनी के बाकी सदस्य एक पार्टी में (तस्वीर-TarekFatah/ट्विटर)

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छोटा राजन की कहानी भी कुछ-कुछ बड़ा राजन जैसी ही थी. पांचवी में स्कूल छोड़कर उसने एक लोकल गैंग ज्वाइन कर लिया था, और चेम्बूर में टिकट ब्लैक किया करता था. 1979 में एक बार पुलिस ने टिकट ब्लैक करने वालों पर लाठी चार्ज किया. वहां छोटा राजन भी मौजूद था. उसने पुलिसवालों की लाठी छीनकर उन्हें ही पीटना शट कर दिया, और अकेले कई पुलिसवालों को जख्मी कर दिया. इस घटना के बाद मुम्बई के अपराधी गिरोहों में उसका नाम फ़ैल गया. इस बीच बड़ा राजन अपने नाम से एक गैंग की शुरुआत कर चुका था. छोटा राजन भी इसी गैंग में शामिल हो गया. दोनों चेम्बूर से घाटकोपर तक का इलाका संभालते थे.

उसी दौर में घाटकोपर वेस्ट में यशवंत जाधव सट्टे और जुएं का कारोबार चलाता था. बड़ा राजन गैंग का ओहदा बढ़ा तो दोनों के बीच तनातनी होने लगी. आधी रात को होने वाली सोडावाटर बोतल और ट्यूबलाइट की लड़ाइयों ने जल्द ही दुश्मनी का रूप ले लिया. राजन गैंग छोटा था इसलिए उन्होंने वरदराजन मुदलियार उर्फ़ वरदा भाई से मदद मांगी. वरदा भाई के दखल के चलते यशवंत जाधव चुप बैठ गया लेकिन बदले की आग उसके अंदर ही अंदर सुलग रही थी. उसने मलयाली डॉन अब्दुल कुंजू से हाथ मिलाया. कुंजू और बड़ा राजन की दुश्मनी पुरानी थी. बताया जाता है कि कुंजू ने बड़ा राजन की गर्लफ्रेंड छीनकर उससे शादी कर ली थी. इसलिए दोनों एक दूसरे के जानी दुश्मन हो गए थे. 1982 में इस दुश्मनी का सिला देते हुए कुंजू ने बड़ा राजन की हत्या करवा दी.

इस हत्या के झल्लाया छोटा राजन बदला लेने की फिराक में था. उसने कुंजू की हत्या की कई कोशिशें की लेकिन नाकाम रहा. कुंजू ने छोटा राजन से बचने के लिए पुलिस में सरेंडर कर दिया. यहां भी छोटा राजन ने उसका पीछा न छोड़ा. उसने हॉस्पिटल में कुंजू पर हमला करवाया. लेकिन कुंजू एक और बार बच निकला.  कुंजू क्रिकेट का शौकीन था. मुम्बई में लोकल मुकाबलों में अक्सर मैदान पर दिख जाया करता था. यहीं छोटा राजन ने उसकी फील्डिंग लगाई. कुंजू बैटिंग पर था. एक चौका मारते हुए उसने अपना अर्धशतक पूरा किया. बॉल सीमा रेखा के पार पहुंची. तभी खेल की जर्सी पहने कुछ लड़के बॉल उठाने के बहाने मैदान में घुसे. उन्होंने अपनी बन्दूक निकाली और कुंजू को वहीं ढेर कर दिया.

छोटा राजन दाऊद के गैंग से कैसे जुड़ा?

छोटा राजन द्वारा अपने उस्ताद की मौत के बदले की  कहानी पूरे अंडरवर्ल्ड में फ़ैल चुकी थी. छोटा राजन का ये कारनामा दाऊद इब्राहिम और अरुण गवली के कानों तक भी पहुंचा. दोनों राजन को अपनी गैंग में भर्ती करना चाहते थे. दाऊद इब्राहिम के बड़ा राजन से पुराने रिश्ते थे. इसलिए अपने गुरु के नक़्शे कदम पर चलते हुए उसने  दाऊद(Dawood Ibrahim) का गैंग ज्वाइन कर लिया. आते ही उसने दाऊद के दुश्मन करीम लाला के भांजे की हत्या कर खुद को साबित किया. और जल्द ही दाऊद का करीबी हो गया. 1986 में एक क़त्ल में नाम आने के बाद पुलिस दाऊद की खोज में थी. इसलिए दाऊद फरार होकर दुबई चला गया. उसने मुम्बई में अपने ऑपरेशन की कमान छोटा राजन के हाथ सौंप दी.

Chota Rajan and Dawood Ibrahim
छोटा राजन और दाऊद इब्राहिम(तस्वीर- Indiatoday)

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छोटा राजन ने दाऊद का स्मगलिंग का बिजनेस मुम्बई से नेपाल और श्रीलंका तक फैलाया. मुम्बई में डी कंपनी दाऊद के नाम पर चलती थी, लेकिन असली ताकत छोटा राजन के हाथ में थी. वो बिल्डर्स को धमकाते हुए अब दाऊद का नाम लेना भी जरूरी नहीं समझता था. गैंग के लड़के उसके पक्के वफादार थे. उसके किसी भी लड़के को अगर पुलिस पकड़ती तो राजन वकील की फीस और मुक़दमे का पूरा खर्चा उठाता था. ये बात गैंग के दूसरे मेंबर मसलन छोटा शकील, शरद शेट्टी और सुनील रावत को कतई रास नहीं आ रही थी. उन्होंने दाऊद के कान भरने शुरू किए. लेकिन दाऊद फिर भी छोटा राजन पर भरोसा जताता रहा. इसी बीच एक वाकया हुआ जिसने दाऊद और राजन के समबन्धों में दरार डाल दी. दाऊद लम्बे समय से अपने बड़े भाई साबिर इब्राहिम कासकर की हत्या का बदला लेना चाहता था. और इसकी जिममेदारी उसने छोटा राजन को दे रखी थी.  

एक रोज़ दाऊद छोटा राजन को कॉल कर पूछता है,

“इब्राहिम की मौत का बदला कब लेगा”

इस पर छोटा राजन कुछ ढीला-ढाला जवाब देता है. इस वक्त कमरे में छोटा शकील और उसका साथी सौत्या भी मौजूद थे. सौत्या दाऊद से कहता है कि अगर उसे मौका मिले तो वो कैसे भी इब्राहिम की मौत का बदला लेकर रहेगा. दाऊद हामी भर देता है. छोटा शकील के लिए छोटा राजन को दाऊद की नज़रों में गिराने का इससे बड़ा मौका नहीं हो सकता था. इब्राहिम कासकर की हत्या में अरुण गवली के लड़कों का हाथ था और वो जेल में थे. एक रोज़ सौत्या और छोटा शकील को खबर लगती है कि गवली के लड़के अस्पताल में हैं. दोनों अस्पताल में हमले की प्लानिंग करते हैं. और गवली के आदमियों को मरवा देते हैं. इस घटना से छोटा शकील का कद दाऊद की नजरों में ऊंचा हो गया. शकील ने धीरे-धीरे छोटा राजन की जगह लेनी शुरू कर दी. जल्द ही दाऊद और छोटा राजन के रास्ते अलग होने वाले थे.

डी कंपनी से रिश्ता तोड़ा

1993 में मुम्बई में बम धमाके हुए. इसमें दाऊद का हाथ था. छोटा राजन इसके बाद भी दाऊद का बचाव करता रहा. लेकिन अब मसला धर्म का हो चुका था. मुम्बई के लिए अब दाऊद और छोटा शकील सिर्फ डॉन नहीं बल्कि मुस्लिम डॉन थे. और छोटा राजन और अरुण गवली हिन्दू डॉन थे. जल्द ही ये फासला और बढ़ता गया. छोटा राजन मुम्बई बम धमाकों से नाराज था. लेकिन अभी भी उसका डी कम्पनी से रिश्ता ख़त्म नहीं हुआ था. बम धमाकों के 9 महीने बाद उसने दुबई में दाऊद की बर्थडे पार्टी में शिरकत भी की और वहां खूब नाचा भी. लेकिन धीरे-धीरे उसे अहसास होने लगा था कि डी कम्पनी में कौम का चूरन ख़त्म हो गया है. मीटिंग्स में छोटा राजन को अब काफिर कहकर बुलाया जाने लगा था.

1994 आते-आते राजन और डी कंपनी के रिश्ते पूरी तरह ख़त्म हो गए. डी कंपनी के कई लोग राजन के वफादार थे. उनमें से कई बम धमाकों से नाराज थे. उन्होंने डी कंपनी से नाता तोड़ते हुए राजन का गैंग ज्वाइन कर लिया. राजन अपने गैंग में भर्ती करते हुए लोगों को देशभक्ति की शपथ दिलाया करता था. हालांकि अभी भी वो दुबई में था. जल्द ही उसे लगने लगा कि दुबई में उसकी जान को खतरा है. चूंकि भारत में वो वांटेड लिस्ट में था इसलिए वापिस भारत भी नहीं लौट सकता था. इसलिए उसने पहले काठमांडू और वहां से मलेशिया का रुख किया. इसी बीच छोटा राजन को खबर मिली कि छोटा शकील उसे मारने की फिराक में है.

Chota Rajan Wedding
छोटा राजन की शादी में दाऊद इब्राहिम (तस्वीर-hindustan times)

ये सुनकर छोटा राजन ने बदले की ठान ली. उसने शकील और सौत्या को मरवाने की कोशिश की. सौत्या मारा गया लेकिन शकील बच निकला. इसके बाद काठमांडू में छोटा राजन ने नेपाल के एक नेता मिर्ज़ा दिलशाद बेग की हत्या भी करवाई. छोटा राजन को खबर मिली थी कि मिर्ज़ा बेग दाऊद के गुर्गों को अपने यहां पनाह देता है. साथ ही उसने खुद को देशभक्त डॉन कहकर प्रचारित करना शुरू किया. उसने मुम्बई बम धमाकों के आरोपियों को चुन-चुन कर निशाना बनाया. 1998 में उसने धमाकों के आरोपी अयूब पटेल की हत्या की कोशिश की . वहीं 1998 में उसने सलीम कुर्ला को एक नर्सिंग होम में मरवा डाला. 
उसने बैंकॉक को अपने ऑपरेशन्स का बेस बनाया और यहीं से अपना धंधा चलाता रहा. अगले डेढ़ दशक तक उसके और डी कंपनी के बीच लुकाछिपी का खेल चलता रहा. सितम्बर 2000 में शकील ने छोटा राजन पर उसके घर में हमला करवाया. इस हमले में छोटा राजन को गोली लगी लेकिन वो बच गया. उसे अस्पताल में भर्ती करवाया गया. यहां वो पुलिस की देखरेख में था. मुम्बई मिरर से बात करते हुए छोटा राजन के साथी संतोष शेट्टी ने बताया था कि राजन लुकाछिपी के खेल से थक चुका था और भारत वापस लौटने की सोच रहा था. लेकिन शेट्टी ने उसे समझाया और अस्पताल से उसको फरार भी करवा लिया.

उम्रकैद

साल 2002 में राजन एक और बार पुलिस की गिरफ्त में आया. लन्दन में प्लेन में चढ़ने के दौरान पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया और सिंगापोर भेज दिया. वो यहां से भी भाग निकला. इसके बाद राजन कहां गया, किसी को खबर नहीं थी. आउटलुक मैगजीन की एक रिपोर्ट बताती है कि इस दौरान संभवतः राजन की मदद भारतीय खुफिया एजेंसियां कर रहीं थीं. राजन डी कंपनी की खबर पहुंचाने के साथ-साथ दाऊद की ख़बरें भी दिया करता था. 2004 में छोटा राजन ने डी कंपनी पर एक बड़ा हमला किया और दाऊद का फाइंसेस देखने वाले शरद शेट्टी को दुबई में खुलेआम मरवा डाला. छोटा शकील ने उसे मरवाने की कई कोशिशें की लेकिन हर बार वो बच निकला.

Chota Rajan caught at Bali
बाली में पकड़ा गया छोटा राजन (तस्वीर-AFP)

साल 2011 में छोटा राजन का नाम एक और बार सुर्ख़ियों में आया. जब उसने मिड डे न्यूज़ पेपर में काम कर रहे वरिष्ठ क्राइम रिपोर्टर ज्योतिर्मय डे की हत्या करवाई. ज्योतिर्मय की मुंबई के पवई में 11 जून 2011 को गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. इस हत्या के बाद मुम्बई पुलिस के लिए छोटा राजन सेकेण्ड मोस्ट वांटेड बन गया था. इंटरपोल ने छोटा राजन को पकड़वाने के लिए रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया. अंत में 25 अक्टूबर 2015 में उसे बाली से गिरफ्तार किया गया. वो मोहन कुमार नाम के पासपोर्ट से ट्रेवल कर रहा था. इस दौरान पता चला कि उसने कई साल ऑस्ट्रेलिया में बिताए थे. 6 नवंबर 2016 को उसे प्रत्यर्पित कर भारत लाया गया. रिपोर्टर ज्योतिर्मय डे की हत्या के केस में उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. और साल 2022 में वो तिहाड़ जेल में अपनी सजा काट रहा है.

वीडियो देखें-कहानी बंगाल के इतिहास के सबसे विवादित केस की

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