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जब 29 बार चाकू मारकर जूलियस सीज़र की हत्या हुई और कालजयी मुहावरे का जन्म हुआ

रोम के विभीषण कहे जाने वाले मार्कस जूनियस ब्रूट्स को जूलियस सीज़र 'Et tu, Brute!' क्यूं कहा?

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जूलियस सीज़र की हत्या का सीन, कार्ल वॉन पिलवोटी की 1865 में बनाई एक पेंटिंग में. (तस्वीर: विकिपीडिया/पब्लिक डोमेन)
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15 मार्च 2021 (Updated: 14 मार्च 2021, 05:02 AM IST)
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आज 15 मार्च है और आज की तारीख़ का संबंध है, दुनिया भर में ताने के तौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले कुछ सबसे प्रमुख फ़्रेज़ेस में से एक से. ‘एट टू ब्रूट्स!’. मने, ‘ब्रूट्स, तुम भी?’
शुरू करते हैं ‘तारीख़’ से जुड़े एक ट्रिविया से. रोमन कैलेंडर में जूलियस सीज़र ने 46BC में काफ़ी सुधार किए और जो कैलेंडर बना, वो ‘जूलियन कैलेंडर’ कहलाया. पहली बार एक सौर वर्ष की लंबाई 365.25 दिन इसी कैलेंडर से मान्य हुई. और इसी के आधार पर बाद में ग्रेगोरियन कैलेंडर बना. वही जो आजकल चलन में है. जनवरी-फ़रवरी वाला. इस ग्रेगोरियन कैलेंडर में भी जुलाई का महीना, दरअसल जूलियस सीज़र के नाम पर ही है.
जूलियस सीज़र. जिन्होंने अपना कैरियर एक पुजारी के तौर पर शुरू किया लेकिन बाद में रोम के कुछ महान शासकों में से एक बन गए. रशिया का ज़ार, फ़ारसी का क़ैसर (राजा) उनके ही नाम का बदला हुआ रूप है. आज फ़ोकस उनकी हत्या वाले किस्से से.
जूलियस सीज़र. (तस्वीर: विकिपीडिया/पब्लिक डोमेन) जूलियस सीज़र. (तस्वीर: विकिपीडिया/पब्लिक डोमेन)


रोम तब, यानी आज से क़रीब दो-ढाई हज़ार साल पहले एक रिपब्लिक हुआ करता था. और ऐसा क़रीब साढ़े चार सौ से ज़्यादा सालों तक चला. 509BC से 27BC तक.
सीनेटर इस रिपब्लिक के सबसे मुख्य घटक थे. इन्हें आज के दौर के ससंद सदस्य मान लीजिए. काम भी कमोबेश संसद-सदस्यों वाला ही. मतलब पॉलिसी बनाना, खर्चे पानी का हिसाब रखना. हालांकि ये सीनेटर जनता द्वारा तो नहीं चुने जाते थे, पर बड़े संख्या बल के चलते, किसी भी एक व्यक्ति के ‘सुप्रीम लीडर’ बनने की व्यवस्था को समाप्त कर देते थे और गणतंत्र को जीवित रखते थे.
इन्हीं सिनेटर्स में से 60 के क़रीब ने मिलकर 15 मार्च को जूलियस सीज़र की हत्या कर दी. 29 बार चाकू से वार करके. तारीख़ थी ‘आइडिज़ ऑफ़ मार्च’. मतलब मार्च महीने की 15 तारीख़. जगह थी रोम का ‘पॉम्पेय थिएटर’.
रिपब्लिक रोम के सीनेटर और सीनेट. (तस्वीर: विकिपीडिया/पब्लिक डोमेन) रिपब्लिक रोम के सीनेटर और सीनेट. (तस्वीर: विकिपीडिया/पब्लिक डोमेन)


जूलियस सीज़र को ट्रैप करने के लिए ‘पॉम्पेय थिएटर’ में साज़िशकर्ता सिनेटर्स द्वारा ग्लैडिएटर खेलों का मंचन किया गया था. आपने ये खेल ख़ूब देखे होंगे, टीवी और मूवीज़ में. जिसमें एक बड़े से स्टेडियम में कभी सैनिक लड़ते, कभी घुड़सवार, तो कभी तलवारबाज़ी होती. बिना किसी रार के सिर्फ़ मनोरंजन के वास्ते. दर्शक इन ग्लैडिएटर गेम्स का आनंद ऐसे ही लेते थे, जैसे आजकल स्टेडियम में बैठकर क्रिकेट मैच का लेते हैं. तो ‘आइडिज़ ऑफ़ मार्च’ के दिन सीज़र को इस शो का मुख्य अतिथि बनाया गया. उसे आने में थोड़ी देर हो गई, तो साजिशकर्ताओं को चिंता होने लगी. ब्रूटस को, सीज़र को बुलाने के लिए भेजा गया. ब्रूट्स, सीज़र को थिएटर में ले भी आया. और बाद में उसकी मौत को भी. मरते हुए जूलियस सीज़र के आख़िरी शब्द थे-
एट टू ब्रूट्स?
मतलब, ‘ब्रूट्स, तुम भी?’
ऐसा जूलियस ने इसलिए कहा क्यूंकि जूलियस सीज़र को सबसे ज़्यादा आश्चर्य इस बात से था कि ब्रूट्स ने ऐसा किया था.
मार्कस जूनियस (जूनियर नहीं) ब्रूट्स. एक गृह युद्ध के दौरान जूलियस सीज़र के विरोध में लड़ा था. लेकिन इस गृह युद्ध में विजयी होने के बाद सीज़र ने ब्रूट्स को अभयदान दे दिया था. इतना ही नहीं, उसने ब्रूट्स को अपना करीबी भी बनाया. उसे सीनेट में जगह दी. उसके लिए इतना सब करने के बावज़ूद ब्रूट्स ने उसे ये सिला दिया था.
ग्लैडिएटर मूवी का एक सीन. (तस्वीर: यूनिवर्सल स्टूडियो) ग्लैडिएटर मूवी का एक सीन. (तस्वीर: यूनिवर्सल स्टूडियो)


अब ये सवाल कि क्या वाक़ई में मरते हुए जूलियस सीज़र ने ये शब्द कहे थे? देखिए, ये बात तो पूरी तरह सच है कि जूलियस सीज़र का क़त्ल आज ही के दिन किया गया था, और ये भी कि साज़िशकर्ताओं में ब्रूट्स भी शामिल था. लेकिन क्या ब्रूट्स को देखकर जूलियस सीज़र ने ‘एट टू ब्रूट्स!’ कहा था? इसको लेकर विवाद है. हालांकि ये शब्द विलियम शेक्सपियर के ‘प्ले अडॉप्शन’ का हिस्सा हैं, लेकिन कुछ इतिहासकार कहते हैं कि जूलियस सीज़र ने मरते हुए कोई शब्द नहीं बोला. कुछ कहते हैं कि उसने ‘ब्रूट्स तुम भी’ नहीं, ‘मेरे बच्चे, तुम भी?’ बोला.
और इस ‘मेरे बच्चे, तुम भी?’ की भी बड़ी इंट्रेस्टिंग स्टोरी है. ब्रूट्स की मां, जूलियस सीज़र की मिस्ट्रेस थी. कुछ रिसोर्सेज़ ये भी कहते हैं कि ब्रूट्स, जूलियस सीज़र की ही संतान थी. हालांकि ब्रूट्स, जूलियस सीज़र का बेटा हो या न हो, पर जूलियस उसे अपने बेटे जैसा ही ट्रीट करता था.
इसके अलावा कुछ इतिहासकार ये भी कहते हैं कि ब्रूट्स को देखकर उसे जितना ‘सो कॉल्ड’ आश्चर्य हुआ था, उससे ज़्यादा तो उसे कई और लोगों को देखकर होना चाहिए था. जैसे डेसिमस को देखकर. डेसिमस, ब्रूट्स का चचेरा भाई. जो ब्रूट्स की तरह कभी भी जूलियस के विरोध में नहीं रहा. बल्कि उसे तो जूलियस सीज़र का साया या राईट हैंड कहा जाता था.
लेफ़्ट में 'जूलियस सीज़र प्ले', पुस्तक के रूप में. राईट में विलयम शेक्सपियर. (तस्वीर: विकिपीडिया/पब्लिक डोमेन) लेफ़्ट में 'जूलियस सीज़र प्ले', पुस्तक के रूप में. राईट में विलयम शेक्सपियर. (तस्वीर: विकिपीडिया/पब्लिक डोमेन)


ज़्यादातर सोर्सेज़ से आपको ये पढ़ने-सुनने को मिलेगा कि जिस दौरान जूलियस पर चाकुओं से वार किए जा रहे थे, उस दौरान वो अपनी शक्ति के अनुसार अपना बचाव भी कर रहा था. लेकिन जैसे ही उसने ब्रूट्स को देखा, अपना चेहरा अपने दोनों हाथों से ढक लिया और विरोध करना बंद कर दिया.
एक और चीज़. कुछ इतिहासकार कहते हैं कि जूलियस सीज़र ने दरअसल ये कहा था कि-
तुम भी ब्रूट्स, एक दिन मेरी तरह सत्ता का स्वाद चखोगे.
अब दूसरा सवाल ये कि सिनेटर्स ने ‘जूलियस सीज़र’ की हत्या क्यूं की? इसको दो तरह से समझा जा सकता है:
पहला, सिनेटर्स एक बुर्जुआ क्लास था. उन्हें ग़रीबों के हितों से कोई मतलब नहीं था. बल्कि कई इतिहासकारों ने उन्हें काफ़ी भ्रष्ट और ग़रीबों का ख़ून चूसने वाला कहा. इसके उलट जूलियस सीज़र एक दौर में ग़रीबों के इलाक़े में रहा था. उनकी दिक़्क़तों से वाक़िफ़ था. इसलिए सत्ता में महत्वपूर्ण पदों पर आने के बाद उसने ग़रीबों के हित में काफ़ी फ़ैसले लिए. तो इस वाले कारण में सिनेटर्स ग़लत और जूलियस सीज़र सही का साथ देते हुए लगते हैं.
विलियम होम्स सुलिवन की पेंटिंग, ‘जूलियस सीज़र की हत्या’. (तस्वीर: विकिपीडिया/पब्लिक डोमेन) 1888 में बनी विलियम होम्स सुलिवन की पेंटिंग, ‘जूलियस सीज़र की हत्या’. (तस्वीर: विकिपीडिया/पब्लिक डोमेन)


लेकिन दूसरा कारण सिनेटर्स का पक्ष लेता है. वो ये कि, जैसा आपको शुरू में बताया कि सिनेटर्स को आप ‘गणतंत्र’ का रक्षक कह सकते हो. और उन्हें लगता था कि जूलियस सीज़र इस ‘गणतंत्र’ के लिए ख़तरा है. और इसलिए ही साज़िशकर्ता सिनेटर्स के ग्रुप ने अपना नाम ‘लिब्रेटर्स’ रखा था. मतलब ‘आज़ादी दिलाने वाले’.
और जूलियस सीज़र, इन सिनेटर्स को ‘गणतंत्र’ के लिए ख़तरा क्यूं लगता था? बेशक, एक बात तो यही थी कि जूलियस सीज़र अपने सुधार कार्यों के चलते जनता में पॉपुलर था और इसके चलते वो कभी भी वो हासिल कर सकता था, जो चाहता. राजशाही भी. लेकिन एक दूसरी बात थी, जो ‘आशंका’ नहीं ‘वास्तविकता’ थी.
जूलियस सीज़र ने रोम की सरकार का हिस्सा रहते हुए कई युद्ध लड़े और उसमें से ज़्यादातर जीते. वो कहता था, ‘वेनी, विडी, विचि’. मतलब, ‘मैं आया, मैंने देखा, मैं जीत गया’. और इन जीतों के चलते वो नेशनल हीरो बन गया. अब, जैसे भारत के संविधान में युद्ध या ऐसे ही किसी, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय संकट के चलते राष्ट्रपति शासन की व्यवस्था है, वैसी ही व्यवस्था रोम में भी थी. डिक्टेटर (तानाशाह) की व्यवस्था. और युद्ध उन दिनों होते भी ख़ूब थे. इसके चलते जूलियस सीज़र अल्प काल के लिए ही सही, लेकिन कई बार डिक्टेटर बनाए गए. और कई बार तो तानाशाही का एक कार्यकाल ख़त्म होने से पहले ही उन्हें दूसरा कार्यकाल मिल जाता था. फिर 44BC में उन्हें ‘अनंत काल के लिए’ तानाशाह बना दिया गया. इस के चलते सिनेटर्स डरते थे कि कहीं साढ़े चार सौ साल बाद तानाशाही के रास्ते राजशाही वापस न आ जाए.
वर्सिनेगोरेटिक्स, जूलियस सीज़र के पैरों पर अपने हथियार डालते हुए. पेंटिंग लियोनेल रॉयर की है, जिससे पता चलता है कि जूलियस सीज़र कैसे एक लीजेंड बना. (तस्वीर: विकिपीडिया/पब्लिक डोमेन) वर्सिनेगोरेटिक्स, जूलियस सीज़र के पैरों पर अपने हथियार डालते हुए. पेंटिंग लियोनेल रॉयर की है, जिससे पता चलता है कि जूलियस सीज़र कैसे एक लीजेंड बना. (तस्वीर: विकिपीडिया/पब्लिक डोमेन)


तो जूलियस की हत्या करने की वजह पहली थी या फिर दूसरी? दरअसल इन दोनों को ही मिला-जुला के एक कॉज़ बना, जिसका इफ़ेक्ट जूलियस सीज़र की मौत के रूप में सामने आया. कई सीनेटर तो इस पूरे हत्या के साज़िश वाले प्लॉट में इसलिए जुड़े क्यूंकि उन्हें जूलियस से निजी खुन्नस थी.
इसी के चलते ब्रूट्स की काउंटिंग भी ‘विभीषण’ वाली ‘ग्रे शेडेड’ केटेगरी में होती है. कुछ लोग उसे ‘आस्तीन का साँप’ कहते हैं, लेकिन कुछ कहते हैं कि उसने ‘बिग पिक्चर’ को ध्यान में रखा. बड़े समूह के फ़ायदे के लिए अपना और अपनी मित्रता का बलिदान कर दिया.
तो क्या ब्रूट्स और बाकी सिनेटर गणतंत्र बचा पाए? नहीं.
इस षड्यंत्र के बाद सिनेटर्स को देश निकाला मिला. रोम गृह युद्ध की आग में जलने लगा और कुछ ही सालों बाद ‘दी ग्रेट रोमन एंपायर’ की नींव पड़ी. मतलब राजशाही की. सैकड़ों वर्ष से चला आ रहा गणतंत्र समाप्त हो चुका था. जूलियस सीज़र की हत्या के कुछ ही दिनों बाद ब्रूट्स ने भी आत्महत्या कर ली थी.
हमने आपको आज का किस्सा सुनाते हुए कई ट्रिविया भी बताए. जाते-जाते एक और बता देते हैं, वो ये कि विशाल भारद्वाज ने आज तक शेक्सपियर के नाटक ‘जूलियस सीज़र’ का एडॉप्शन नहीं किया है.

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