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इंडिया का वो बादशाह जिसके सामने मुगलों को छुपने की जगह नहीं मिली

इस बादशाह के काम का अकबर को बहुत फायदा हुआ था.

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ऋषभ
22 मई 2018 (Updated: 22 मई 2018, 11:56 AM IST)
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# भाजपा नेता तेजिंदर सिंह बग्गा ने मांग की कि बाबर रोड का नाम बदलकर उमर फैयाज रोड कर दिया जाए.
# इससे पहले औरंगजेब रोड का नाम बदलकर कलाम रोड कर दिया गया.
# गाहे-बगाहे बात उठती रहती है कि मुसलमान राजा बाहरी थे, जिन्होंने हिंदुस्तान को अंग्रेजों से पहले ही गुलाम बना लिया था.
# जिस अकबर को इतिहासकारों ने महान कहा है, उसे भी आज के दौर में अपमानित किया जाता है.
# टीपू सुल्तान के नाम पर हमेशा बवाल मचता है. लोग उसको इतिहास का पात्र मानने के लिए तैयार ही नहीं हैं. ऐसा लगता है कि टीपू अभी भी लोगों के बीच मौजूद है.
पर इन सबमें एक मुसलमान राजा है, जिसके नाम पर कभी इस तरह की आवाज नहीं उठी है. उस राजा की आज बरसी है. उसे लोग गर्व से याद करते हैं. शेरशाह सूरी नाम था इस राजा का. मात्र 5 साल राज कर पाया था.
बिहार के लोगों के लिए तो शेरशाह का नाम बहादुरी का प्रतीक है. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने कहा था कि मैं शेरशाह सूरी की तरह हूं, कम समय में मैंने भी बहुत काम कर लिए. नीतीश कुमार ने उनसे कई साल पहले ही कह दिया था कि शेरशाह सूरी मेरे आदर्श हैं. उनसे ही मुझे प्रेरणा मिलती है.
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क्या था इस बादशाह में कि मौत के 470 साल बाद भी लोग इसे सम्मान की नजर से देखते हैं?
शेरशाह का जन्म 1486 के आस-पास बिहार में हुआ था. हालांकि इसके जन्म वर्ष और जगह दोनों को लेकर मतभेद है. कई जगह ये कहा जाता है कि शेरशाह का जन्म हिसार, हरियाणा में हुआ था. साल भी बदल जाता है. शेरशाह का नाम फरीद खान हुआ करता था. इनके पिताजी का नाम हसन खान था. हसन खान बहलोल लोदी के यहां काम करते थे. शेरशाह के दादा इब्राहिम खान सूरी नारनौल के जागीरदार हुआ करते थे. नारनौल में इब्राहिम का स्मारक भी बना है. ये लोग पश्तून अफगानी माने जाते थे. सूरी टाइटल इनके अपने समुदाय सुर से लिया गया था. ऐसा भी कहा जाता है कि इनके गांव सुर से ये टाइटल आता है. इतिहास की बात है, जब तक तीन-चार वर्जन नहीं रहते एक ही स्टोरी के, मजा नहीं आता.
फरीद जब बड़ा हो रहा था, तभी उसने एक शेर मार डाला था. और इसी वजह से फरीद का नाम शेर खान पड़ गया. जहां शेर मारा था, उस जगह का नाम शेरघाटी पड़ गया. ये बातें भी कहानी हो सकती हैं. शेर खान के 8 भाई थे. सौतली मांएं भी थीं. शेर खान की घर में बनी नहीं, क्योंकि वो महत्वाकांक्षी था. वो घर छोड़कर जौनपुर के गवर्नर जमाल खान की सर्विस में चला गया. वहां से फिर वो बिहार के गवर्नर बहार खान लोहानी के यहां चला गया. यहां पर शेर खान की ताकत और बुद्धि को पहचाना गया. बहार खान से अनबन होने पर शेर खान ने बाबर की सेना में काम करना शुरू कर दिया. वहीं पर उसने नई तकनीक सीखी थी जिसके दम पर बाबर ने 1526 में बहलोल लोदी के बेटे इब्राहिम लोदी और बाद में राणा सांगा को हराया था. यहां से निकलकर फिर वो बिहार का गवर्नर बन गया.
शेरशाह शेरशाह

एक वक्त था कि मगध साम्राज्य इतना विशाल था कि सिकंदर भी हमला करने से मुकर गया था. पर बाद में धीरे-धीरे पावर सेंटर दिल्ली की तरफ शिफ्ट होने लगा था. शेर खान ने जब बिहार की कमान संभाली तो कोई भी बिहार को पावर सेंटर मानने को तैयार नहीं था. शेर खान ने अपनी ताकत बढ़ानी शुरू कर दी. अपनी सेना तैयार करने लगा.
1538 में शेर खान धीरे-धीरे अपने कदम बढ़ाने लगा. बाबर की मौत के बाद हुमायूं बादशाह बना था. मुगल हिंदुस्तान छोड़कर वापस नहीं गए थे. जब हुमायूं बंगाल रवाना हुआ तो शेर खान ने उससे लड़ने का मन बना लिया. 1539 में बक्सर के पास चौसा में दोनों की भिड़ंत हुई. हुमायूं को जान बचा के भागना पड़ा. 1540 में फिर दोनों की भिड़ंत कन्नौज में हुई. वहां भी हुमायूं को हारना पड़ा. बंगाल, बिहार और पंजाब तीनों छोड़ के हुमायूं देश से ही भाग गया. शेर खान ने दिल्ली में सूर वंश की स्थापना कर दी. धीरे-धीरे उसने मालवा, मुल्तान, सिंध, मारवाड़ और मेवाड़ भी जीत लिया. अपना नाम शेरशाह रख लिया. हुमायूं 15 साल तक देश से बाहर रहा.
शेरशाह के बारे में कई बातें फेमस हैं:
1. शेरशाह ने अपना प्रशासन हाई लेवल का रखा था. उसके रेवेन्यू मिनिस्टर टोडरमल को बाद में अकबर ने भी नियुक्त किया था. वो अकबर को नवरत्नों में से एक थे.
2. शेरशाह का दिमाग इतना तेज था कि उसने खावस खान को अपना कमांडर बना लिया था. खान बेहद गरीब व्यक्ति था. वो जंगल में लोमड़ियों का शिकार करता था. पर शेरशाह ने उसकी प्रतिभा को पहचाना.
3. शेरशाह के राज को लेकर कोई भी कम्युनल बात नहीं होती है. राज करने के मामले में वो अकबर से भी आगे थे. अकबर के चलते मुस्लिम नाराज थे क्योंकि वो हिंदुओं को प्रश्रय देता था. वहीं औरंगजेब के चलते हिंदू-मुस्लिम दोनों परेशान थे. पर शेरशाह ने सबको साध के रखा था. उसकी महत्वाकांक्षा सबसे अलग थी.
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4. शेरशाह दूरदर्शी व्यक्ति था. उसने फेमस जीटी रोड बनवाया था. जो पेशावर से लेकर कलकत्ता तक था. उस वक्त ये बहुत ही बड़ी बात थी. इससे ट्रांसपोर्ट और व्यापार काफी बढ़ गया था.
5. अकबर के एक अफसर ने लिखा था कि शेरशाह के राज में कोई सोने से भरा थैला लेकर रेगिस्तान में भी सो जाए तो चोरी-छिनैती नहीं होती थी.
6. अकबर के ही करीबी अतगा खान के बेटे मिर्जा अजीज कोका ने लिखा था कि शेरशाह ने मात्र 5 सालों में जो फाउंडेशन तैयाप किया था कि वो आगे भी चलता रहा.
7. अकबर को शेरशाह का बनाया राज्य मिला था. शेरशाह की असमय मौत नहीं हुई होती तो कुछ और ही इतिहास देखने को मिलता.
नवंबर 1544 में शेरशाह ने कालिंजर पर घेरा डाला था. वहां के शासक कीरत सिंह ने शेरशाह के आदेश के खिलाफ रीवा के महाराजा वीरभान सिंह बघेला को शरण दे रखी थी. महीनों तक घेराबंदी लगी रही. पर कालिंजर का किला बहुत मजबूत था. अंत में शेरशाह ने गोला-बारूद के प्रयोग का आदेश दिया. शेरशाह पीछे रहने वालों में से नहीं था. वो खुद भी तोप चलाता था. कहते हैं कि एक गोला किले की दीवार से टकराकर इसके खेमे में विस्फोट कर गया. जिसकी वजह से उसकी मौत हो गई.
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