स्टार वॉर्स: जो बस फिल्म नहीं, एक अलग ब्रह्मांड ही है
पढ़िए स्टार वॉर्स सीरीज का पूरा सफ़र. जानिए कैसे किसी फिल्म का 'साढ़े तीनवां' पार्ट आ सकता है.
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फोटो - thelallantop
शैलेंद्र लड़कपन में फ़िल्मकार बनना चाहते थे. पर लकीर के फ़क़ीर बच्चों की तरह चुपचाप इंजीनियर बन गए और अमेरिका में बस गए. फ़िल्मों का शौक़ पुश्तैनी है और वही लीगेसी अपने बच्चों को भी पास-ऑन कर रहे हैं. फ़िल्मी शौक़ किसी भाषा का मोहताज नहीं और 'गुंडा' से लेकर 'गुलाल' तक सब पचा जाने की कूवत रखते हैं. कॉलेज के दिनों में देखी थी Star Wars series, अब अपने दस साल के बेटे के साथ फिर से देख रहे हैं और नए नज़रिए से समझने की कोशिश कर रहे हैं. वही यहां पेश करने की कोशिश है.स्टार वॉर्स का नाम तो सुने होगे? याद है, मोदी जी न्यूयॉर्क में बोले थे, “May the force be with you.'' वही वाला स्टार वॉर्स. पिछले कुछ दिनों से चर्चा में है. इसमें प्रिन्सेस लीया का रोल करने वाली कैरी फ़िशर का असमय निधन हो गया. कहानी तो तब बनी जब 24 घंटे के अंदर ही उनकी मां डेबी रेनॉल्ड्स का भी इंतक़ाल हो गया, शायद सदमे से. मनोविज्ञानी से लेकर फ़िल्मों के जानकार सब जुट गए, एनालिसिस करने. स्टार वार्स का भी पोथी-पत्रा खुलने लगा. फ़िल्म चर्चा में रही एक और कारण से. कुछ हफ़्ते पहले फ़िल्म का साढ़े तीनवां संस्करण भी बाज़ार में आया. हमारे-तुम्हारे जैसे सामान्यजन तो सर ही पीट लें कि ये क्या बला है? साढ़े तीनवां क्यों ठेला जा रहा है? पर स्टार वॉर की तो अपनी ही अद्भुत कहानी है. 1977 में किसी साधारण Sci-Fi की तरह आयी थी फ़िल्म Star Wars- The Last Hope. जल्द ही फ़िल्म ने एक कल्ट फ़िल्म का दर्जा हासिल किया और एक नया अमेरिकी पॉप कल्चर शुरू हो गया. इस तरह फ़िल्मों की एक सफलतम फ्रेंचाइजी बनी और जॉर्ज लूकस बन गये अब तक के सबसे धनी फिल्मकार. सन 77 में फ़िल्म टेक्नोलॉजी इतनी बढ़िया नहीं थी जैसी आज-कल है. अपने सपने को साकार करने के लिए जॉर्ज लूकस ने एक कम्पनी बनायी- Industrial light and Magic. एक ज़माने में फ़िल्मों में स्पेशल इफ़ेक्ट्स के लिए यह एक शीर्ष कम्पनी हुआ करती थी. वैसे 77 की पहली स्टार वॉर्स फ़िल्म बहुत हद तक वीडियो गेम्स जैसी लगती है, पर फिल्म की कहानी और हरेक किरदार ने दूरगामी असर छोड़ा. फ़िल्म के विलेन डॉर्थ वेडर को वही मुक़ाम हासिल हुआ जो हिंदी फ़िल्मों में गब्बर सिंह या मोगैम्बो का है. जब कहानी चल पड़ी तो जॉर्ज लूकस ने इसका सीक्वल बनाने की योजना बनायी और फ़िल्म को 1981 में एक नए नाम से री-रिलीज़ किया. Star Wars Episode IV- The New Hope. इसके बाद आए - एपिसोड V और VI. तीन फ़िल्मों ने एक नये ब्रह्मांड का निर्माण किया था. इस कहानी में जहां विज्ञान कथाओं वाली टेक्नोलॉजी थी, नये विचार थे, भविष्य की आशा थी, तो वही जादू और तिलिस्म भी फैला हुआ है. भविष्यवाणियां हैं. एक Chosen One, पालनहार की तलाश भी है. बाप और बेटे के बीच का आर-पार की लड़ाई है. सरकार और विद्रोही दल के बीच संघर्ष है. पूंजीवाद और प्रजातंत्र का बीच का चिर परिचित विरोध है. मतलब कहानी पूरी फ़िल्मी और कालजयी है. ऐसे बड़े कैनवस पर मानवी कल्पना कई मुकाम हासिल करता है. जॉर्ज लूकस ने इसका भरपूर फ़ायदा उठाते हुए, कहानी पलट डाली और फ़िल्म का प्रीक्वल बनाया. डॉर्थ वेडर एक larger than life वाला विलेन था, उसकी कहानी में अनेक संभावनायें थी. उसमें कुछ मानवीय संवेदनाएं दिखाई जा सकती थी. वो “डार्क साइड” में क्यों गया, कैसे गया, बताना था. वो इतना क्रूर क्यों और कैसे हुआ? उसके प्रति दर्शकों की सहानभूति बटोरनी थी. इस बार बने एपिसोड 1, 2 और 3. कहानी वहां ख़त्म हुई जहां मूल स्टार-वार्स एपिसोड 4 शुरू हुई थी. इन छः फ़िल्मों में कैनवस इतना बड़ा बन गया कि हरेक किरदार की एक कहानी हो सकती थी. हर कहानी से निकलती कहानियों से बनी TV सीरीज़- The Clone Wars. पांच सीजन्स में. आगे भी बनती रहेगी. फिर 2015 में कहानी ने एक और जम्प लिया. फ़िल्म के सीक्वल की वापसी. एपिसोड 7 आया और बताया गया कि इसके बाद एपिसोड 8 और 9 भी आएंगे. फिर अचानक 2016 में साढ़े तीनवां संस्करण चेंप दिया गया- The Rogue One. इस तरह, प्रीक्वल और सीक्वल के अलावा एक और परिपाटी चली- ऐन्थॉलॉजी. माने- कहानी में से निकलती कहानियां. इन कहानियों में किरदार अलग हो सकते हैं, पर कहानी अपने आप में मुकम्मल होगी. इस ऐन्थॉलॉजी में मूल कहानी की किरदारों का ज़िक्र होता है या मेहमान कलाकार की तरह आ भी सकते हैं. कुछ-कुछ जेम्स बॉन्ड की फ़िल्मों की तरह. कहानी का ताना-बाना स्टार वार्स और डेथ स्टार के आस-पास बुना गया. नए किरदारों के साथ. कहानी एपिसोड 3 और 4 के बीच की है, इसलिये बनी साढ़े-तीन. डेथ स्टार बनाने की कहानी. प्रिन्सेस लीया और ग्रांड मोफ़्फ़ टार्किन के किरदारों को कम्प्यूटर से जवान और ज़िंदा किया गया. डॉर्थ वेडर अपना लाइटसेबर लहराते नज़र आए. मूल एपिसोड 4 में एक भारी कमी थी. बिल्कुल हिंदी फ़िल्मों जैसी. एम्पायर यानी सरकारी तंत्र ने भारी ताम-झाम और दाम ख़र्च कर के डेथ स्टार बनाया था. एक ऐसा अस्त्र जो एक पूरे के पूरे ग्रह को उड़ा देने की कूवत रखता था. The New Hope में रेबल आर्मी ने इस डेथ स्टार को ख़त्म कर डाला था. कैसे? क्योंकि उन्हें वो एक छोटा सा प्वाइंट मिल गया था, जिस पर हमला करते ही डेथ स्टार ख़ुद ही धमाके के साथ उड़ गया. बात कुछ समझ नहीं आयी. ऐसा छोटा सा लूप होल कोई क्यों छोड़ देगा? इसी को समझाने के लिए बना दी गयी- स्टार वार्स-साढ़े तीन. बताया गया कि डेथ स्टार के आर्किटेक्ट ने दबाव में डेथ स्टार बना तो दिया पर एक छोटा सा ग्लिच छोड़ दिया और गुप्त रूप से यह ख़बर बाहर अपनी बेटी तक पहुंचा दी, और वहां से पहुंच गई, रिबेल ग्रुप तक. तो यह है कहानी स्टार वॉर साढ़े तीन की. माना कि यह आगे-पीछे, दाएं- बाएं कूदती कहानी, दिमाग़ का दही कर डालती है, पर ग़ज़ब की सम्भावनाएं भी पैदा करती है. कहानी को अलग तरह से कहे जाने का मौक़ा देती है. एक पूरी पीढ़ी पगलाई हुई है इस कहानी पर. 10 साल के बुड्ढों से लेकर 90 साल तक के बच्चे तक इंतज़ार करते है, फ़िल्म के नये ऐपिसोड का. और तो और YouTube पर कहानी के एक-एक डायलॉग और सीन का पोस्टमॉर्टम करने वाली कहानियां. एक सी एक थ्योरी और कॉन्स्पिरेसी. दुनिया के आज-कल के हालत से तुलना और भविष्यवाणियां. भरे पड़े है ठलुए, दुनिया भर में. कैरी फ़िशर की अकस्मात मृत्यु के बाद कहानी में रोड़े आ सकते है. अब शायद एपिसोड 8 और 9 की कहानी बदलनी पड़ेगी. फिर से अफ़वाहों का बाज़ार गरम है. कहानी अब क्या पल्टी मारती है, यह तो देखने वाला होगा पर ये तो तय है कि जॉर्ज लूकस की कल्पना ने जिस ब्रह्मांड की रचना की है, वो हरि अनंत, हरिकथा अनंता की तरह अनंत सम्भावनाएं रखता है, आने वाली कई पीढ़ियां इस कहानी को अपने ढंग से कहती सुनाती रहेंगी. प्रीक्वल, सीक्वल, ऐन्थॉलॉजी, ऐन्थ्रॉपॉलॉजी, पारा-नार्मल, भूत-भविष्य काण्ड, बाल काण्ड, सुंदरकांड, लंका काण्ड बनता रहेगा और मनोरंजन करता रहेगा.
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