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सुंकात मजूमदार के एक बयान ने बंगाल BJP की खेमेबाजी खोलकर रख दी, क्या है इनसाइड स्टोरी?

पश्चिम बंगाल बीजेपी अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने कहा कि शुभेंदु अधिकारी बीजेपी की ऑर्गेनाइजेशनल मीटिंग में सहज महसूस नहीं करते. ये पहला मामला है जब राज्य में बीजेपी की खेमेबाजी खुलकर सामने आ गई.

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West Bengal BJP
बाएं से दाहिने. बंगाल बीजेपी के अध्यक्ष सुकांत मजूमदार और नेता प्रतिपक्ष सुवेंदु अधिकारी. (Photo- @BJP4Bengal)
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सौरभ
22 जनवरी 2025 (Updated: 23 जनवरी 2025, 12:13 PM IST) कॉमेंट्स
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पश्चिम बंगाल बीजेपी अध्यक्ष सुकांत मजूमदार की एक टिप्पणी ने लंबे समय से दबी आपसी 'कलह' को खोलकर रख दिया. सुकांत ने विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी को लेकर एक बयान दिया है. उन्होंने कहा कि शुभेंदु अधिकारी बीजेपी की ऑर्गेनाइजेशनल मीटिंग में सहज महसूस नहीं करते. ये बयान इतना बताने के लिए काफी था कि पार्टी में सबकुछ ठीक नहीं है, जैसा बाहर से दिखाई देता है. इस पर शुभेंदु की भी प्रतिक्रिया आई है. लेकिन ये कहानी सिर्फ क्रिया-प्रतिक्रिया भर तक सीमित नहीं है. इसके तार कोलकाता से लेकर दिल्ली तक जुड़े हैं. तो क्या है पश्चिम बंगाल बीजेपी की पर्दे की पीछे की कहानी और सुकांत की इस टिप्पणी की वजह, ये समझने की कोशिश करते हैं. लेकिन पहले सुकांत और शुभेंदु के बयानों पर एक नज़र डाल लेते हैं.

21 जनवरी को कोलकाता के सॉल्ट लेक में बंगाल बीजेपी की संगठनात्मक बैठक थी. इसमें में बंगाल बीजेपी के प्रदेश के नेता तो मौजूद ही थे केंद्रीय नेतृत्व की ओर से मंगल पांडे, सुनील बंसल, अमित मालवीय उपस्थित थे. लेकिन एक शख्स नदारत थे, शुभेंदु अधिकारी. इस पर जब प्रदेश अध्यक्ष से सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा-

सांगठनिक बैठक में नेता प्रतिपक्ष को हमेशा नहीं बुलाया जाता है. उनके साथ हम अलग से बैठते हैं. आज ही नहीं, वह पहले भी इस बैठक में नहीं शामिल होते रहे हैं. सांगठनिक बैठक में वह कंफर्टेबल फील नहीं करते. क्योंकि हमारी सांगठनिक बैठक लंबी चलती है और उनके कई कार्यक्रम रहते हैं. वह पश्चिम बंगाल के सबसे व्यस्त नेता हैं. उनको काफी घूमना पड़ता है. स्वाभाविक रूप से उनको कहां समय मिलेगा.

आजतक के एडिटर अनुपम मिश्रा की रिपोर्ट के मुताबिक जब शुभेंदु से इस बारे में प्रतिक्रिया मांगी गई तो उन्होंने कहा-

इसका जवाब सुकांत बाबू दे सकते हैं. मैं क्यों जवाब दूं. जिसने यह कहा है, वही इसका जवाब देंगे. मैं मेदिनीपुर में डॉक्टरों के निलंबन से संबंधित एक कार्यक्रम में था. यह सबने देखा है और मैं संगठनात्मक पोर्टफोलियो से संबंधित नहीं हूं. मैं विपक्ष का नेता हूं और मुझे अपना काम पता है. इसलिए उन्हें जवाब देना होगा कि जिसने सवाल उठाया है.

ऐसा पहली बार हुआ है जब पश्चिम बंगाल के बीजेपी नेता आपस में इस तरह की बयानबाजी कर रहे हों. विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव के दौरान जो कुछ भी घटा, सब पर्दे के पीछे ही रहा. लेकिन सुकांत के बयान एक से अचानक काफी कुछ बाहर आ गया.

पश्चिम बंगाल बीजेपी की खेमेबाजी

पश्चिम बंगाल BJP को चलाने वाले फिलहाल तीन पावर सेंटर हैं. पहला दिल्ली आलाकमान, दूसरा बंगाल BJP अध्यक्ष का ऑफिस और तीसरा केशवकुंज यानी कोलकाता में RSS का हेडक्वॉटर. फिलहाल सबसे ज्यादा मजबूत दिल्ली है. सूत्र बताते हैं कि पार्टी का कोई भी फैसला दिल्ली की अनुमति के बिना नहीं लिया जाता है. एक समय पर RSS की सहमति भी अनिवार्य मानी जाती थी लेकिन बताया जाता है कि 2024 चुनाव के बाद दिल्ली जितनी मजबूत हुई केशवकुंज उतना ही कमजोर.

इन तीन पावर सेंटर्स से इतर दो खेमे भी हैं. पहला प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार और दूसरा खेमा है शुभेंदु अधिकारी का. एक और खेमा था दिलीप घोष का. ये तीन खेमे तब सक्रिय थे जब घोष को हटाकर मजूमदार को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया. इससे पहले तक सुकांत मजूमदार का कोई खेमा नहीं था. प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद तीसरा खेमा तैयार हुआ. लेकिन 2024 लोकसभा चुनाव में बर्धमान-दुर्गापुर सीट से चुनाव हारने के बाद दिलीप घोष को किनारे लगा दिया गया. हालांकि, नए प्रदेश अध्यक्ष की सुगबुगाहट के बीच घोष एक बार फिर एक्टिव हैं, मगर शांत हैं.

फिलहाल सूत्र बताते हैं कि पश्चिम बंगाल बीजेपी में सुकांत मजूमदार और शुभेंदु अधिकारी के दो खेमे सक्रिय हैं. बंगाल की राजनीति को नज़दीक से देखने वाले एक पत्रकार बताते हैं कि इनमें शुभेंदु अधिकारी का खेमा ज्यादा मजबूत माना जाता है क्योंकि वह विधायक दल के नेता हैं और विधायकों पर उनकी अच्छी पकड़ है. हालांकि, केंद्र में मंत्री बनने के बाद सुकांत का कद भी बढ़ा है. लेकिन इसी वजह से उन्हें प्रदेश अध्यक्ष का पद छोड़ना पड़ेगा. बंगाल में कुछ दिनों में नया प्रदेश अध्यक्ष चुना जाएगा. बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव बीएल संतोष फिलहाल बंगाल में हैं और सूत्रों के मुताबिक अगले प्रदेश अध्यक्ष को लेकर चर्चाओं का दौर चल रहा है.

सुकांत के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद से ही उन्हें दिलीप घोष और अधिकारी दोनों खेमों का सामना करना था. सुकांत पढ़े-लिखे नेताओं में गिने जाते हैं. बॉटनी के प्रोफेसर हैं. और शांत स्वभाव व साफ-सुधरी छवि के नेता माने जाते हैं. संघ की जड़ों से जुड़े हुए नेता हैं. स्कूल के दिनों से RSS से जुड़े हैं. जनसंघ के बड़े नेता रहे देबी दास चौधरी ने संघ के कार्यकर्ता के तौर पर उन्हें तैयार किया. आलाकमान अध्यक्ष पद के लिए एक मृदुभाषी, लो प्रोफाइल नेता को खोज रहा था. और संघ से जुड़े होने की वजह से सुकांत इस कैलकुलेशन में फिट बैठ गए. लेकिन तब ना तो वह बंगाल में बहुत बड़े नेता थे, ना ही पार्टी पर उनकी दिलीप घोष जैसी पकड़ थी. लेकिन राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से नज़दीकी ने सुकांत की राह थोड़ी आसान कर दी. फिर अमित शाह ने अपने एक बंगाल दौरे पर ये साफ किया किया कि प्रदेश अध्यक्ष पद पर कोई बदलाव नहीं किया जाएगा.

दूसरी तरफ है शुभेंदु अधिकारी का खेमा. शुभेंदु ने नंदीग्राम विधानसभा से ममता के खिलाफ चुनाव लड़ा और उन्हें हरा दिया. ममता को हराने के बाद शुभेंदु की राजनीतिक हैसियत पार्टी में बढ़ गई. ममता को हराते ही शुभेंदु आलाकमान के फेवरेट बन गए थे. उनको BJP ने विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के पद से नवाज़ा. शुभेंदु के बारे में कहा जाता है कि उनकी नज़र मुख्यमंत्री की कुर्सी पर है. इसी वजह से वो बंगाल में और किसी खेमे को देखना भी नहीं पसंद करते हैं.

शुभेंदु की अमित शाह के साथ काफी घनिष्ठता बताई जाती है. प्रदेश में संगठन सचिव अमिताव चक्रवर्ती भी शुभेंदु के करीबी हैं. सूत्र बताते हैं कि पार्टी आलाकमान शुभेंदु में दूसरे हिमंता बिस्वा सर्मा देख रहा है. इसीलिए उनको भरपूर समर्थन दिया जाता है. हालांकि, दूसरी पार्टी से आने वालों को RSS ज्यादा तवज्जो नहीं देता. लेकिन शुभेंदु के कद को देखते हुए और पार्टी में उनको मिलने वाली तवज्जो को देखते हुए RSS ने भी शुभेंदु को डाइजेस्ट कर लिया है.

इन दोनों खेमों की एक झलक सुकांत मजूमदार के हालिया बयान में देखने को मिली. हालांकि, बीजेपी इस बात को नकारती है कि पार्टी में किसी तरह की खेमेबाजी है. पार्टी का कहना है कि पश्चिम बंगाल की पार्टी इकाई में सबकुछ ठीक चल रहा है. कोई खेमेबाजी जैसी बात ही नहीं है. सभी नेता आपस में मिलकर पार्टी और प्रदेश के विकास में काम कर रहे हैं.

वीडियो: नंदीग्राम में ममता और शुभेंदु के मुकाबले में वोटिंग के दिन क्या बड़ा खेल हुआ?

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