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भारत की वो सिंगिंग लेजेंड, जिन्होंने मुस्लिम होकर दंगों के बीच हिंदू से शादी की

लता के साथ गाने के दौरान इन्हें माइक से बहुत दूर रखना पड़ता था.

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14 अप्रैल 2020 (Updated: 14 अप्रैल 2020, 09:34 IST)
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क्या आप सोच सकते हैं कि बॉलीवुड की एक सुपरडुपर हिट सिंगर फोटो खिंचवाने से कतराती थीं? वो मुस्लिम थीं पर पंद्रह साल की उम्र में एक हिंदू से शादी रचाई थी. जबकि वो वक्त दंगों का था.
शमशाद बेगम नाम था इनका. वही जिनके बारे में 1998 में अखबारों ने खबर छापी कि लेजेंडरी सिंगर शमशाद बेगम नहीं रहीं. बाद में 'हमें खेद है', वाले कॉलम में उन्होंने छापा कि जिन शमशाद की मौत की खबर छापी गई थी वो सायरा बानो की नानी थीं. उनका नाम भी शमशाद बेगम था.
शमशाद बेगम छनकती हुई आवाज और रौबदार अंदाज की मल्लिका थीं. एक ऐसी आवाज, जिसको सुनकर लगता है मानो अल्लाह का नूर बरस रहा हो. हरकतों में ऐसी शोखी कि उनके सत्तर-अस्सी साल पहले गाए गानों पर आज सात-आठ साल की बच्चियां भी ठुमके लगाती हैं.
'कजरा मोहब्बत वाला'. स्कूल का कल्चरल फंक्शन हो या कोई डांसिंग कॉम्पीटिशन या घर में शादी. आज भी नाचने के लिए ये गाना सबका फेवरेट है. शमशाद जब गाती हैं, 'अपना बना ले मेरी जान, हाय रे मैं तेरे कुर्बान' तो हर बार इस लाइन के बाद वो हम सबकी और अपनी हो जाती हैं.
शमशाद बेगम का 'कजरा मुहब्बत वाला' गाना:
https://youtu.be/kItK3kQlyko
क्या है शमशाद की शादी का किस्सा?
शमशाद 1932 में गनपत से मिली थीं. उस जमाने में शादी छोटी उम्र में ही करा दी जाती थी. शमशाद के घर वाले भी उनके लिए लड़का ढूंढ रहे थे. लेकिन शमशाद अपने प्यार से ही शादी करने की बात पर अड़ी रहीं. 1934 में देश में हिंदू-मुसलमान दंगे हो रहे थे. लाहौर से लेकर अयोध्या नफरत में जल रहा था. पर शमशाद बेगम और गनपत लाल बट्टो शादी कर रहे थे. दोनों के घर वाले इस शादी के खिलाफ थे. दुनिया ताने कस रही थी. लेकिन दोनों का प्यार बाहर फैली नफरत से ऊपर ही रहा.
2009 में शमशाद को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया.
2009 में शमशाद को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया.

शमशाद की इतनी कम फोटो क्यों हैं?
शमशाद के अब्बा उन्हें गाने नहीं देना चाहते थे. लेकिन शमशाद की संगीत की धुन देखकर उन्हें इजाजत तो दे दी लेकिन ये तय करवा लिया कि वो कभी फोटो नहीं खिंचवाएंगी. इस वजह से ही शमशाद की इतनी कम फोटोज हैं. बस कुछ ही मौकों पर शमशाद कैमरे में कैद हो पाईं.
देश के सबसे उम्दा प्लेबैक सिंगरों में से एक शमशाद ने हिंदी, पंजाबी के साथ कई और भाषाओं में 6 हजार गाने गाए हैं. लेकिन मार्केट में कई सारी आवाजें आने के बाद शमशाद को अचानक से गाने मिलने बंद हो गए थे.
शमशाद ने तब कहा था: मैं जितने हिट गाने देती हूं, मुझे उतने ही कम गाने मिनते हैं. पर गौरतलब है, शमशाद को शुरूआत में हर गाने का 12 रुपए मिलता था, जो उस वक्त के हिसाब से बड़ी रकम थी.
शमशाद बेगम का 'ले के पहला-पहला प्यार' गाना:
https://youtu.be/vVmShhhiPPI
संगीतकार नौशाद ने एक इंटरव्यू में बताया था कि
'शमशाद और लता जब साथ में गाती थीं तो शमशाद को माइक से 10 गुना दूरी पर खड़े होकर गाना पड़ता था. शमशाद की आवाज में इतना वजन था कि लता की आवाज छुप जाती थी.'
पंडित जसराज ने एक बार कहा था: बड़ी से बड़ी सिंगर्स भी कभी न कभी शमशाद बेगम और नूरजहां की नकल करती हैं.
shamshad-begum_122413012153 एक फंक्शन में शमशाद बेगम
शमशाद 14 अप्रैल, 1919 में अमृतसर में पैदा हुई थीं. उनके टैलेंट को सबसे पहले पहचाना था उनकी प्रिंसिपल ने. 1924 में उन्होंने शमशाद की सुरीली आवाज सुनकर स्कूल की प्रेयर-हेड बना दिया. उन्होंने संगीत की कोई फॉर्मल ट्रेनिंग नहीं ली थी. लेकिन जो भी उनका गाना सुनता, मंत्रमुग्ध हो जाता था. 13 साल की ही उम्र से ही शमशाद ने जीनोफोन रिकॉर्ड के लिए गाना शुरू कर दिया था.
शमशाद बेगम का 'मेरे पिया गए रंगून' गाना:
https://youtu.be/Llo15FVtb0Y
1937 में ऑल इंडिया रेडियो लाहौर ने पंजाब का इकलौता रेडियो स्टेशन शुरू किया था. इसमें गाने के लिए लोकल टैलेंट ढूंढ़ने की कवायद शुरू कर दी. शमशाद ने ये ऑडीशन पास कर लिया. और वहां पर उन्होंने पंजाबी लोकगीतों में महारत हासिल कर ली. वो बहुत ज्यादा पॉपुलर हो गईं. क्योंकि रेडियो लाहौर का सिग्नल फैसलाबाद से लेकर रावलपिंडी और झांग तक जाता था.
शमशाद ने लंबी बीमारी के बाद 2013 में दुनिया को अलविदा कहा था.
लेजेंडरी म्यूजीशियन ओपी नैय्यर शमशाद की आवाज की साफगोई से इतना मुग्ध थे कि उन्होंने इसकी तुलना मंदिर में बजने वाली घंटी से की थी.  


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